"प्रज्ञा का आह्वान : विवेक ही मुक्ति"
पंकज शर्मा
अंधभक्ति केवल किसी व्यक्ति या मत के प्रति मात्र समर्पण नहीं है; यह आत्मिक दासता की वह गहन अवस्था है जहाँ विवेक का सूर्य अस्त हो जाता है एवं प्रज्ञा कुंठित हो जाती है। चाहे हम धर्म की जड़ता में फँसकर सत्य के मूल स्वरूप को नकारें, राजनीति के उन्माद में मानवता को भूलें, या सामाजिक रूढ़ियों के अविचारित बोझ को ढोएँ, परिणाम एक ही है—स्वतंत्र चिंतन की शक्ति का ह्रास। यह पलायन हमें आत्मिक उन्नति के दुर्गम मार्ग से विचलित कर देता है, जहाँ सत्य का आलोक केवल तर्क एवं जागरूकता से ही प्राप्त होता है। हमें स्मरण रखना चाहिए कि मानव जीवन का चरम लक्ष्य किसी बाहरी शक्ति का अंधानुसरण नहीं, अपितु आत्म-बोध एवं सार्वभौमिक चेतना की प्राप्ति है।
अतः, मानव होने का गौरव इसी में निहित है कि हम अपने भीतर जागरूकता का दीप प्रज्वलित करें। दार्शनिक दृढ़ता के साथ हमें हर मान्यता, हर विचार को तर्क की कसौटी पर कसना होगा। अंधविश्वास की ये बेड़ियाँ हमारी आत्मा को सत्य के निर्बाध आकाश में उड़ान भरने से रोकती हैं। समग्र उत्थान की नींव किसी सत्ता या परंपरा की आज्ञाकारिता पर नहीं, बल्कि प्रत्येक मनुष्य की संवर्धित चेतना पर टिकी है। आइए, इस विषैले समर्पण का त्याग कर, ज्ञान एवं विवेक को अपना सर्वोच्च धर्म बनाएँ, ताकि हमारा जीवन केवल अस्तित्व न रहे, अपितु एक सार्थक खोज बन सके।
. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार)
पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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