"अनुगूँजों का प्रदेश"
पंकज शर्मावे कहाँ हैं—
जो यहाँ की भीड़ में दिखाई नहीं देते,
मानो समय की तहों में
अपनी छाया मोड़कर
किसी अनाम मार्ग पर चल पड़े हों।
उनकी अनुपस्थिति
उपस्थिति से अधिक भारी लगती है।
वे किधर हैं—
जो इस धरातल पर टिके प्रतीत नहीं होते,
जैसे दिशा और दूरी का बोध
उनकी यात्रा के आगे अर्थहीन हो गया हो।
हम उनकी खोज में
क्षितिजों की आँखों से झाँकते रह जाते हैं।
जो इधर नहीं हैं—
क्या वे किसी उधर में बसते हैं?
एक ऐसे उधर में
जहाँ प्रश्नों की रस्सियाँ टूटती नहीं,
केवल मन की हवा
उत्तर तलाशती भटकती है।
वे कौन हैं—
जो अपने ही स्वर में मौन हैं,
जिनके भीतर का कंपन
दुनिया की कोलाहल से
अलग किसी गहन सुर में डूबा है।
मौन का यह दायरा
अक्सर शब्दों से अधिक स्पष्ट होता है।
जो मौन हैं—
वे कौन-सी कथा रचते हैं?
उनकी चुप्पी
किसी प्राचीन ग्रंथ की तरह
अधूरी भी है, अनपढ़ी भी,
पर उतनी ही प्रखर
जितनी किसी उद्घोष का सत्य।
वे कौन हैं—
जो यहाँ, इधर, उधर
किसी भी ओर नहीं,
पर हमारे भीतर
एक स्थायी अनुगूँज की तरह
अक्सर लौट आते हैं?
मानो अस्तित्व का सारा रहस्य
उन्हीं अदृश्य यात्रियों के पथ पर
धीरे-धीरे खुलता हो।
. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
✍️ "कमल की कलम से"✍️ (शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान)
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