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तुम्हारें प्रेमिल नयनों में,आज छाई प्रियल मस्ती

तुम्हारें प्रेमिल नयनों में,आज छाई प्रियल मस्ती

कुमार महेन्द्र
नयन सह नयन मिलाप,
नेह प्रस्ताव स्वीकृति ।
मृदुल भाव तरंगिणी ,
उर शोभ सुप्रिय आकृति ,
आनंद निर्झर परिवेश,
गौण बिंदु निज हस्ती ।
तुम्हारे प्रेमिल नयनों में,आज छाई प्रियल मस्ती ।।


चाल ढाल हाव भाव ,
अब परिवर्तन ओर ।
पुनीत भाव भंगिमा,
कामना मिलन छोर ।
जग पटल विजय भव ,
पर प्रीत संग पस्ती ।
तुम्हारे प्रेमिल नयनों में,आज छाई प्रियल मस्ती ।।


विस्मृत आत्म अस्मिता,
निहार मद मस्त चक्षु ।
उपमा वैभव पराकाष्ठा ,
स्व आकलन सदृश भिक्षु ।
कोष्ठ प्रकोष्ठ अभिलाष रस ,
भाव विभोर चितवन बस्ती ।
तुम्हारे प्रेमिल नयनों में,आज छाई प्रियल मस्ती ।।


स्वर व्यंजना विश्रांत,
मौन रूप शब्द कोश ।
अंतःकरण पट परिशुद्घ ,
मुस्कान सम परितोष ।
अंतरंग दिव्य प्रेम सिंधु,
तृषा तृप्ति अवस्ती ।
तुम्हारे प्रेमिल नयनों में,आज छाई प्रियल मस्ती ।।


कुमार महेन्द्र
(स्वरचित मौलिक रचना)
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