Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

पंचदेव संस्कृति: अध्यात्म, विज्ञान और सामाजिक समरसता का महासूत्र

पंचदेव संस्कृति: अध्यात्म, विज्ञान और सामाजिक समरसता का महासूत्र

सत्येन्द्र कुमार पाठक
सनातन धर्म, जिसे उसकी प्राचीनता और वैज्ञानिक आधार के लिए जाना जाता है, केवल एक धर्म नहीं, बल्कि एक व्यापक जीवन दर्शन है। इस दर्शन का मूल आधार है समग्रता (Holism) और संतुलन (Balance)। इन दोनों अवधारणाओं को मूर्तरूप देने वाली एक केंद्रीय व्यवस्था है: पंचदेव संस्कृति (Panchadeva Cult)। यह वह सिद्धांत है जो ब्रह्मांड की पाँच सर्वोच्च शक्तियों को पहचानता है और उन्हें दैनिक जीवन के केंद्र में स्थापित करता है।
पंचदेव उपासना की परंपरा का उद्गम आदि शंकराचार्य (8वीं शताब्दी ई.पू.) के समय में हुआ माना जाता है, जिन्होंने सनातन धर्म में व्याप्त विभिन्न सम्प्रदायों (शैव, वैष्णव, शाक्त, सौर, और गाणपत्य) के बीच समन्वय स्थापित करने के लिए यह व्यवस्था दी। उस समय, विभिन्न संप्रदायों के अनुयायी केवल अपने इष्ट देव को ही सर्वोच्च मानते थे, जिससे सामाजिक और धार्मिक मतभेद पैदा होते थे। आदि शंकराचार्य ने 'स्मार्त' परंपरा को पुनर्जीवित किया, जिसमें यह स्थापित किया गया कि यद्यपि एक व्यक्ति अपना 'इष्ट देव' चुन सकता है, उसे अन्य सभी प्रमुख देवताओं का सम्मान और नित्य पूजा करनी चाहिए। इस प्रकार, उन्होंने पंचदेव की अवधारणा दी: सूर्य (सौर) – प्रत्यक्ष ऊर्जा, स्वास्थ्य और प्रकाश के देवता। गणेश (गाणपत्य) – विघ्नहर्ता, बुद्धि और प्रथम पूज्य। शक्ति/दुर्गा (शाक्त) – ब्रह्मांडीय ऊर्जा, शक्ति और मातृसत्ता। , शिव (शैव) – संहारक, चेतना और योग के देवता। विष्णु (वैष्णव) – पालक, व्यवस्था और धर्म के संरक्षक। इस व्यवस्था ने सभी सम्प्रदायों को एक ही छत के नीचे लाकर धार्मिक समरसता स्थापित की और यह सिखाया कि ये सभी रूप एक ही परम सत्ता (परब्रह्म) की अलग-अलग अभिव्यक्तियाँ हैं। सनातन धर्म की संस्कृति , पंथ , सभ्यता में सौर संस्कृति के उपासक भगवान सूर्य , शाक्त संस्कृति के उपासक शक्ति माता दुर्गा , काली , लक्ष्मी , सरस्वती , शैव संस्कृति के उपासक भगवान शिव , वैष्णव संस्कृति के उपासक भगवान विष्णु , ब्रह्म संस्कृति के उपासक ब्रह्मा जी , आग्नेय संस्कृति के उपासक अग्नि , गणपत्य संस्कृति के उपासक गणेश जी , चंद्र संस्कृति के उपासक चंद्रमा भू संस्कृति का देवी माता भूमि पृथ्वी एवं विभिन्न संस्कृति का देवता भिन्न भिन्न है।
पंचदेव संस्कृति का सबसे गहन और वैज्ञानिक पहलू इसका पंचभूतों से सीधा संबंध है। सनातन दर्शन के अनुसार, संपूर्ण ब्रह्मांड और मानव शरीर पाँच मूल तत्वों से मिलकर बना है: पंचभूत (तत्व) पंचदेव (अधिपति में आकाश (ईथर) शिव शून्यता, विस्तार, चेतना ,वायु (एयर) शक्ति/दुर्गा गति, ऊर्जा, जीवन शक्ति (प्राण) , अग्नि (फायर) सूर्य प्रकाश, ऊष्मा, पाचन (अग्नि तत्व) ,जल (वॉटर) विष्णु जीवन, पोषण, प्रवाहशीलता , पृथ्वी (अर्थ) गणेश स्थिरता, आधार, जड़ता है।
इस तालमेल के माध्यम से, यह संस्कृति हमें सिखाती है कि हम देवताओं की पूजा करके, वस्तुतः प्रकृति (पंचभूतों) के प्रति आभार व्यक्त कर रहे हैं और उनके साथ संतुलन स्थापित कर रहे हैं। नित्य पूजा में पंचदेवों का आह्वान, इन पाँच तत्वों के प्रति हमारी चेतना को जागृत करता है और पर्यावरण के संरक्षण के प्रति हमारे दायित्व को सुनिश्चित करता है।
पंचदेव संस्कृति ने भारतीय समाज को एक सूत्र में पिरोने का काम किया: समन्वय और सहिष्णुता: इसने लोगों को यह सिखाया कि किसी एक देवता को नीचा दिखाए बिना सभी देवताओं का सम्मान किया जा सकता है। यह धार्मिक असहिष्णुता को दूर करने का एक सफल सामाजिक प्रयोग था। दैनिक जीवन का विनियमन: पंचदेवों की पूजा (जैसे सूर्य को अर्घ्य देना, गणेश की प्रथम पूजा) दैनिक जीवन का एक अभिन्न अंग बन गई। इससे जीवन में अनुशासन, नियमितता और आध्यात्मिक जागरूकता आई। पंचदेवों की पूजा का एक निश्चित क्रम है (सूर्य → गणेश → शक्ति → शिव → विष्णु), जो सृष्टि के क्रम को दर्शाता है: उत्पत्ति (सूर्य/शक्ति) → व्यवस्था (गणेश) → संहार (शिव) → पालन (विष्णु)। यह क्रम हमें जीवन के चक्र और निरंतरता की याद दिलाता है।आध्यात्मिक स्तर पर, पंचदेव पूजा मनुष्य के मन और चेतना पर गहरा प्रभाव डालती है:।सूर्य (प्रकाश/ऊर्जा): मन में सकारात्मकता और जीवन शक्ति लाता है। गणेश (बुद्धि): विचारों में स्पष्टता और निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करता है। शक्ति (ऊर्जा): इच्छाशक्ति और कर्म करने की क्षमता को बढ़ाता है। शिव (चेतना): ध्यान और आत्म-ज्ञान (Self-realization) की ओर प्रेरित करता है। विष्णु (व्यवस्था): जीवन में संतुलन और शांति बनाए रखता है। इस प्रकार, पंचदेवों की उपासना व्यक्ति के भीतर पाँच आंतरिक शक्तियों (बुद्धि, ऊर्जा, स्थिरता, चेतना और संतुलन) को जगाने का एक मनोवैज्ञानिक है। पंचदेव संस्कृति सनातन धर्म का वह मजबूत स्तंभ है जो केवल धार्मिक नहीं, बल्कि ऐतिहासिक समन्वय, वैज्ञानिक तत्वों के प्रति जागरूकता, सामाजिक समरसता और गहन मनोवैज्ञानिक लाभ प्रदान करता है। यह सिखाता है कि सत्य एक है, लेकिन उसे जानने के रास्ते और रूप अनेक हो सकते हैं।पंचदेवों की यह समन्वित उपासना ही हिन्दू सभ्यता की वह अनूठी विशेषता है जो इसे इतना लचीला, समावेशी और कालातीत बनाती है। यह मानव चेतना को ब्रह्मांड की पाँच मूलभूत शक्तियों के साथ जोड़कर एक पूर्ण, संतुलित और मोक्षदायक जीवन जीने का मार्ग प्रशस्त करती है।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews #Divya Rashmi News, #दिव्य रश्मि न्यूज़ https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ