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हे शारदे मां, काव्य रस मधुरिम कर दो

हे शारदे मां, काव्य रस मधुरिम कर दो

कुमार महेंद्र
सृजन अठखेलियां सहज सरस,
नवल धवल शब्द श्रृंगार ।
भाव भंगिमा मस्त मलंग,
यथार्थ धरा कल्पना साकार ।
हिय हिलोर मृदुल मधुर,
संप्रति स्पर्श तरुणिम स्वर दो।
हे शारदे मां, काव्य रस मधुरिम कर दो ।।


हिंदी काव्य अपनत्व सरिता,
शुभ मंगल एकादश रस ।
दृष्टि विलोप विचलन घटक,
ध्येय स्वत्व आनंद कस ।
श्रृंगार रस पावन निर्झरणी,
उद्गम श्रोत प्रेम हरितिम भर दो ।
हे शारदे मां, काव्य रस मधुरिम कर दो ।।


हास्य पटल हंसी ठिठोली,
करुण दुःख नैराश्य गागर ।
रौद्र उग्र आवेश तरंगिणी,
वीर जोश उत्साह शौर्य सागर ।
डर आतंक पर्याय भयानक,
स्थाई घृणा वीभत्स अरुणिम वर दो ।
हे शारदे मां,काव्य रस मधुरिम कर दो ।।


अद्भुत पट विस्मय आश्चर्य ,
वैराग्य त्याग शांत रस झलक ।
वात्सल्य संतति स्नेह सरोवर,
भक्ति स्पंदन शीर्ष सत्ता ललक ।
काव्य रस प्रेयसी कौमार्य,
प्रणय उड़ान स्वर्णिम पर दो ।
हे शारदे मां, काव्य रस मधुरिम कर दो ।।


कुमार महेंद्र
(स्वरचित मौलिक रचना)
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