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लोकतंत्र का टुकड़ा जो खानेवाला है।

लोकतंत्र का टुकड़ा जो खानेवाला है।

डा• मेधाव्रत शर्मा, डी.लिट.
(पूर्व यू.प्रोफेसर)
लोकतंत्र का टुकड़ा जो खानेवाला है।
लोकतंत्र से सत्ता जो पानेवाला है ।
जिस पत्तल में खाए उसमें छेद करे,
नमकहरामी दोज़ख जानेवाला है ।
गाँधी का यह देश रहेगा गाँधी का,
पागल है जो धूल उड़ानेवाला है।
लोकतंत्र भारत का चिर अक्षयवट,
महाकाल को धूल चटानेवाला है।
गणतंत्र-जनित्री वैशाली का घोष,
लोकतंत्र के प्राण जगाने वाला है।
सावधान,यह राहु महाखल आतुर,
जनतंत्र-चन्द्रमा को खाने वाला है।

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