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अंतरराष्ट्रीय आचार्यकुल सम्मेलन 2025 का प्रतिवेदन

अंतरराष्ट्रीय आचार्यकुल सम्मेलन 2025 का प्रतिवेदन 

सत्येन्द्र कुमार पाठक
अंतरराष्ट्रीय आचार्यकुल 2025 का त्रिदिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्धाटन समारोह गया जिले के बोधगया का बोधिट्री फाउंडेशन की बोधिट्री स्कूल श्रीपुर परिसर में विनोबा भावे विश्वविद्यालय, हजारीबाग, झारखंड के कुलपति, डाॅ शशिभूषण शर्मा ने कहा कि गांधी – विनोबा के विचार – मंथन ही समाजिक समरसता का द्योतक हैं। उन्होंने कहा कि विनोबा भावे के भूदान आन्दोलन और गांधीजी का सर्वज्ञा आन्दोलन देश ही नहीं,विदेश को नयी दिशा दिया। समारोह की अध्यक्षता आचार्यकुल के पूर्व कुलपति एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष,आचार्य धर्मेन्द्र ने किया। ज्ञान और मोक्ष की पवित्र भूमि बोधगया एक महत्वपूर्ण वैचारिक मंथन का केंद्र बनने जा रहा है।यह उद्बोधन आचार्य,धर्मेन्द्र ने किया। आचार्यकुल का तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन 16 से 18 दिसम्बर, 2025 को सम्पन्न हुआ । इस सम्मेलन का उद्देश्य महात्मा गांधी, संत विनोबा भावे और जयप्रकाश नारायण (जेपी) की रचनात्मक विचारधाराओं को अंगीकार करने वाले चिंतकों को एक मंच पर लाना है। इस महत्वपूर्ण आयोजन में देश के 12 राज्यों एवं अमेरिका , इंग्लैंड , वाशिंगटन, यूके आदि देशों के आचार्यकुल के सदस्य, भूदान यज्ञ के प्रतिनिधि, साहित्यकार, कवि, पत्रकार और समाजसेवी शामिल हुए। संत विनोबा भावे जी की मानस पुत्री और आचार्यकुल की स्थायी ब्रह्मचारिणी, सुश्री प्रवीणा देसाई ने बीमार होने के कारण अनुपस्थिति रही, परन्तु उसके संदेश को पढकर सुनाया गया। विश्वभर के निर्भिक, निष्पक्ष, अहिंसक, असंप्रदायिक, अराजनैतिक चिन्तकों के विचारों पर मंथन हुआ।यह अधिवेशन वर्तमान वैश्विक चुनौतियों के बीच गांधीवादी और रचनात्मक सोच की प्रासंगिकता को स्थापित करने का एक प्रयास है। आचार्यकुल की अंतरराष्ट्रीय अधिवेशन का मुख्य एजेंडा कई दूरगामी और ऐतिहासिक महत्व के विषयों पर विचार-विमर्श करना है। विचारणीय बिषयों में शामिल हैं:। 2027 में आचार्यकुल के 60वें वर्षगांठ की भव्य तैयारी की रूपरेखा। स्थापना वर्ष 2026, 2027 एवं 2028 हेतु आचार्यकुल के प्रमुख कार्यक्रम ‘जय जगत’ की गतिविधियों पर मंथन। भूदान यज्ञ आन्दोलन के 75वें वर्ष (2026) के उपलक्ष्य में विशेष कार्यक्रमों के आयोजन पर विचार। चरखा संघ के स्थापना वर्ष पर भी महत्वपूर्ण चर्चा। ग्राम सभा सहयोग अभियान को सशक्त बनाने की रणनीति। विभिन्न संगठनात्मक कोषांगों के कार्यों की समीक्षा और सदस्यता अभियान का विस्तार। साहित्य, कला, संस्कृति, पत्रकारिता प्रकोष्ठ और ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना को सशक्त बनाने, गठन और विस्तार पर गहन विचार। राष्ट्रीय अधिवेशन के दौरान कवि सम्मेलन का भी आयोजन किया गया। इस अवसर पर मधु गोयल ( लन्दन) एश्वर्य आर्य और कुशवाहा ( यूके), प्रशांति दीदी और गोविन्द ( वाशिंगटन) माँ ममता देवी, हेम भाई ( असम), अनुज, हृदयानन्द आदि ने अपने विचारों की अभिव्यक्ति किया।
अंतरराष्ट्रीय आचार्यकुल सम्मेलन 2025 में आचार्यकुल के राष्ट्रीय प्रवक्ता सत्येन्द्र कुमार पाठक , कला संस्कृति प्रकोष्ट आचार्यकुल के राष्ट्रीय प्रभारी डॉ उषाकिरण श्रीवास्तव द्वारा चयनित मुजफरपुर के कलाकारों के माध्यम से बंदे मातरम एवं जय जगत की प्रस्तुति कर राष्ट्रीय चेतना एवं जय जगत पर कला संस्कृति पर चर्चा हुई ।बोधगया की पावन धरती, जहाँ ढाई हज़ार वर्ष पूर्व ज्ञान का आलोक प्रस्फुटित हुआ था, वहीं अब भारत के महान दार्शनिक आचार्य विनोबा भावे द्वारा स्थापित आचार्यकुल अपने अंतर्राष्ट्रीय महाधिवेशन के माध्यम से ज्ञान, अध्यात्म और मानवतावादी शिक्षा के नए अध्याय लिखने जा रहा है। आगामी 16, 17 और 18 दिसंबर 2025 तक बोधि ट्री स्कूल, श्रीपुर में आयोजित यह तीन दिवसीय 'वैचारिक यज्ञ' वैश्विक समन्वय और स्वस्थ समाज निर्माण के संकल्प को समर्पित होगा। आचार्यकुल के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं प्रख्यात शिक्षाविद् आचार्य डॉ. धर्मेंद्र ने इस महाधिवेशन की विस्तृत रूपरेखा जारी करते हुए इसे 'वर्तमान चुनौतियों के बीच गांधी और विनोबा के दर्शन का पुनर्जागरण' बताया है। 150 से अधिक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधियों की उपस्थिति इस आयोजन की महत्ता को सिद्ध करती है, जो बिहार और आचार्यकुल के आध्यात्मिक-शैक्षणिक मूल्यों को वैश्विक मंच प्रदान करेगा।
विनोबा के दर्शन की गूँज: भूदान से पत्रकारिता तक - आचार्यकुल के राष्ट्रीय प्रवक्ता सत्येन्द्र कुमार पाठक ने कहा कि यह सम्मेलन केवल एक अकादमिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह भूदान यज्ञ और सर्वोदय की उस महान परंपरा का समागम है, जिसने भारत के सामाजिक ताने-बाने को नई दिशा दी। पाठक ने उद्घोष किया, "यह बोधगया में हो रहा समागम उस अमृत मंथन जैसा है, जहाँ शिक्षा, साहित्य, कला, संस्कृति और पत्रकारिता के पुरोधा एक मंच पर आकर मानवता के उत्थान पर विचार करेंगे। देश-विदेश के प्रतिनिधि भारत की ज्ञान परंपरा और अध्यात्म को विश्व के समक्ष पुनर्स्थापित करने का संकल्प लेंगे।"
उच्च शिक्षा जगत की सहभागिता 16 दिसंबर 2025 को : ज्ञान की धारा इस महाधिवेशन में देश के कई प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों के वर्तमान और पूर्व कुलपतियों की उपस्थिति विशेष आकर्षण का केंद्र होगी, जो उच्च शिक्षा के नैतिक दायित्वों पर विमर्श एवं सम्मेलन का उद्घाटन किया । सम्मेलन में उपस्थित होने वाले प्रमुख व्यक्तित्व डॉ. एस.पी. शाही, कुलपति, मगध विश्वविद्यालय , डॉ. तपन कुमार शांडिल्य, पूर्व कुलपति, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, रांची ,डॉ. रामजी यादव, कुलाधिपति, वाई.बी.एन. विश्वविद्यालय, रांची ,डॉ. एस.पी. अग्रवाल, कुलपति, साईनाथ विश्वविद्यालय, रांची , डॉ. चंद्रभूषण शर्मा, विनोबा भावे विश्वविद्यालय, हजारीबाग , ये सभी विद्वान, सरस्वती विद्या मंदिर, धनबाद के संस्थापक प्राचार्य डॉ. वासुदेव प्रसाद , डॉ . जंगबहादुर पांडेय के साथ मिलकर, शिक्षा में मूल्यों के समावेश और चारित्रिक विकास की आवश्यकता पर ज़ोर दिया ।
16 दिसंबर: संकल्प का सूत्रपात (उद्घाटन दिवस) - पंजीयन के उपरांत अंतरंग विमर्श एवं आचार्यकुल के राष्ट्रीय प्रवक्ता सत्येन्द्र कुमार पाठक द्वारा बिहार से डॉ उषाकिरण श्रीवास्तव , प्रो. डॉ पुष्पा गुप्ता , जी इन भट्ट , शम्भू प्रसाद सिंह सीतामढ़ी , अशोक कुमार , संजुदेवी , शैलेन्द्र कुमार सिंह , नीता सहाय , शुभांगी सुमन ,कोमल कुमारी ,आशा रघुदेव ,अनंता कुमारी ,राम कृष्ण पोद्दार ,राहुल कुमार , हरियाणा से त्रिलोकचंद फतेहपुरी , संतोषा देवी आदि 33 सदस्य आजीवन केवम वार्षिक सदस्य बने । , आचार्यकुल का सदस्य समारोह में आयोजित होने वाले उद्घाटन सत्र में भावी कार्यक्रमों की आधारशिला रखी गई ।काव्य संध्या और सांस्कृतिक कार्यक्रम में भारतीय कला और साहित्य की समृद्ध विरासत का प्रदर्शन होगा। अंतरराष्ट्रीय आचार्य कुल सम्मेलन में आचार्यकुल के राष्ट्रीय महासचिव धर्मेंद्र सिंह राजपूत , उपाध्यक्ष ओमप्रकाश द्विवेदी ,जेपी सिंह , प्रसन्न कुमार बम्ब सचिव , प्रेमचंद गुप्ता सचिव एवं कला संस्कृति प्रकोष्ट के राष्ट्रीय प्रभारी डॉ उषाकिरण श्रीवास्तव प्रमुख भूमिका रही । सम्मेलन उद्घाटन के पश्चात कला संस्कृति प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय प्रभारी डॉ. उषाकिरण श्रीवास्तब द्वारा स्वंर्णिम कला केंद्र मुजफ्फरपुर बिहार के कलाकारों ने जय जगत एवं वंदे मातरम की प्रस्तुति कर राष्ट्रीय एवं विश्व बंधुत्व के प्रति जागरूकता का संदेश दी ।
17 दिसंबर: स्वस्थ समाज की मीमांसा (तकनीकी सत्र) - यह दिन वैचारिक गहराई को समर्पित है। सुबह के विशेष तकनीकी सत्रों का केंद्रीय बिंदु है: 'स्वस्थ समाज रचना एवं पत्रकारिता': जिसमें मीडिया की भूमिका पर विचार किया जाएगा। 'स्वस्थ समाज एवं साहित्यकार': जिसमें साहित्य के माध्यम से सांस्कृतिक उत्थान पर चर्चा हुई । शाम का सत्र विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जहाँ 'आचार्यकुल स्थापना के 60 वर्ष' की यात्रा का सिंहावलोकन किया जाएगा और आगामी 27-28 वर्षीय कार्यक्रमों की दीर्घकालिक योजना पर मंथन हुई । सम्मेलन में 200 पत्रकारों , साहित्यकारों , भुदानयज्ञ एवं आचार्यकुल सेवियों को आचार्यकुल के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. आचार्य धर्मेंद्र द्वारा सम्मान पत्र , स्मृति चिह्न केवम अंग वस्त्र देकर सम्मानित किया । सम्मेलन में आचार्यकुल के राष्ट्रीय प्रवक्ता साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक , कला संस्कृति प्रकोष्ट का राष्ट्रीय प्रभारी डॉ उषाकिरण श्रीवास्तव , निर्माण भारती ( हिंदी पाक्षिक के संपादक जी एन भट्ट , हरियाणा के साहित्यकार व कवि ड़ॉ त्रिलोक चंद फतेहपुरी , संपादक पत्रकार , प्रभात वर्मा आदि पत्रकारों , साहित्यकारों को अंग वस्त्र , स्मृति चिह्न केवम सम्मान पत्र आचार्यकुल के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ आचार्य धर्मेंद्र केवम राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य ममता पोद्दार द्वारा सम्मानित किया गया ।
समापन दिवस पर विशेष सत्र – 'अभिमत' के माध्यम से सभी प्रतिनिधियों के निष्कर्षों को संकलित किया जाएगा। तत्पश्चात समापन सत्र में समग्र प्रतिवेदन प्रस्तुत किया और भविष्य के राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय भावी सम्मेलनों की रूपरेखा को अंतिम रूप दिया जाएगा । 17 दिसंबर का विशेष सत्र,साहित्य , कला , संस्कृति और पत्रकारिता को उसके 'धर्म' की याद दिलाएगा और यह चर्चा की गई ।कि कैसे मीडिया, साहित्यकारों और कलाकारों के साथ मिलकर समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकता है। कला संस्कृति प्रकोष्ठ की राष्ट्रीय प्रभारी डॉ उषाकिरण श्रीवास्तव के समन्वय में, इस महाधिवेशन में उपस्थित होने वाले सभी गणमान्य प्रतिनिधियों, आचार्यों और मीडिया जगत के साथियों को उनके आजीवन समर्पण के लिए “कर्मवीर सम्मान” से अलंकृत किया गया । आचार्यकुल का यह तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय महाधिवेशन निश्चित रूप से केवल एक सम्मेलन नहीं, बल्कि एक वैचारिक महायज्ञ है, जिसका उद्देश्य मानवीय मूल्यों की पुनर्स्थापना और भारत को विश्वगुरु के पद पर स्थापित करने के लिए एक सुदृढ़ बौद्धिक आधार तैयार की गई है।
इस महत्वपूर्ण आयोजन में देश के 12 राज्यों एवं अमेरिका , इंग्लैंड , वाशिंगटन, यूके आदि देशों के आचार्यकुल के सदस्य, भूदान यज्ञ के प्रतिनिधि, साहित्यकार, कवि, पत्रकार और समाजसेवी शामिल हुए। संत विनोबा भावे जी की मानस पुत्री और आचार्यकुल की स्थायी ब्रह्मचारिणी, सुश्री प्रवीणा देसाई ने बीमार होने के कारण अनुपस्थिति रही, परन्तु उसके संदेश को पढकर सुनाया गया। विश्वभर के निर्भिक, निष्पक्ष, अहिंसक, असंप्रदायिक, अराजनैतिक चिन्तकों के विचारों पर मंथन हुआ।यह अधिवेशन वर्तमान वैश्विक चुनौतियों के बीच गांधीवादी और रचनात्मक सोच की प्रासंगिकता को स्थापित करने का एक प्रयास है।
आचार्यकुल की अंतरराष्ट्रीय अधिवेशन का मुख्य एजेंडा कई दूरगामी और ऐतिहासिक महत्व के विषयों पर विचार-विमर्श करना है। विचारणीय बिषयों में शामिल हैं:। 2027 में आचार्यकुल के 60वें वर्षगांठ की भव्य तैयारी की रूपरेखा। स्थापना वर्ष 2026, 2027 एवं 2028 हेतु आचार्यकुल के प्रमुख कार्यक्रम ‘जय जगत’ की गतिविधियों पर मंथन। भूदान यज्ञ आन्दोलन के 75वें वर्ष (2026) के उपलक्ष्य में विशेष कार्यक्रमों के आयोजन पर विचार। चरखा संघ के स्थापना वर्ष पर भी महत्वपूर्ण चर्चा। ग्राम सभा सहयोग अभियान को सशक्त बनाने की रणनीति। विभिन्न संगठनात्मक कोषांगों के कार्यों की समीक्षा और सदस्यता अभियान का विस्तार। साहित्य, कला, संस्कृति, पत्रकारिता प्रकोष्ठ और ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना को सशक्त बनाने, गठन और विस्तार पर गहन विचार। राष्ट्रीय अधिवेशन के दौरान कवि सम्मेलन का भी आयोजन किया गया। इस अवसर पर मधु गोयल ( लन्दन) एश्वर्य आर्य और कुशवाहा ( यूके), प्रशांति दीदी और गोविन्द ( वाशिंगटन) माँ ममता देवी, हेम भाई ( असम), अनुज, हृदयानन्द आदि ने अपने विचारों की अभिव्यक्ति किया। अंतरराष्ट्रीय आचार्यकुल सम्मेलन 2025 में आचार्यकुल के राष्ट्रीय प्रवक्ता सत्येन्द्र कुमार पाठक , कला संस्कृति प्रकोष्ट आचार्यकुल के राष्ट्रीय प्रभारी डॉ उषाकिरण श्रीवास्तव द्वारा चयनित मुजफरपुर के कलाकारों के माध्यम से बंदे मातरम एवं जय जगत की प्रस्तुति कर राष्ट्रीय चेतना एवं जय जगत पर कला प्रदर्शन किया गया ।
साहित्य, कला और पत्रकारिता की विभूतियों का हुआ समागम विश्व शांति और महात्मा बुद्ध की ज्ञानस्थली बोधगया में 'अंतरराष्ट्रीय आचार्यकुल सम्मेलन - विश्व समन्वय कुम्भ 2025' का ऐतिहासिक आयोजन अत्यंत भव्यता के साथ संपन्न हुआ। 17 दिसंबर 2025 को बोधिट्री स्कूल परिसर में आयोजित इस त्रिदिवसीय अंतरराष्ट्रीय अधिवेशन में देश-दुनिया के साहित्यकारों, पत्रकारों, कलाकारों और समाजसेवियों ने हिस्सा लिया। यह सम्मेलन संत विनोबा भावे द्वारा संस्थापित अहिंसक राजनैतिक व्यासपीठ (वर्धा, महाराष्ट्र) तथा राष्ट्रीय आचार्यकुल आश्रम (ब्रह्मपुर, बिहार) के तत्वावधान में आयोजित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता आचार्यकुल के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. धर्मेंद्र ने की। अधिवेशन का मुख्य आकर्षण 'सम्मान समारोह' रहा, जहाँ विभिन्न क्षेत्रों में समाज को दिशा देने वाले मनीषियों को सम्मानित किया गया। शांति स्मृति संभावना आवासीय उच्च विद्यालय (आरा) के विशेष सौजन्य से प्रदत्त सम्मान पत्र, स्मृति चिह्न और अंग वस्त्र प्रदान कर राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. धर्मेंद्र ने विभूतियों का अभिनंदन किया। सम्मानित होने वाले प्रमुख नामों में सत्येन्द्र कुमार पाठक: आचार्यकुल के राष्ट्रीय प्रवक्ता एवं सुप्रसिद्ध साहित्यकार व इतिहासकार। वसुंधरा के संपादिका कवयित्री व लेखिका डॉ. उषाकिरण श्रीवास्तव: संस्कृति एवं कला प्रकोष्ठ की राष्ट्रीय प्रभारी। जी. एन. भट्ट: 'निर्माण भारती' हिंदी पाक्षिक के संपादक। हरियाणा के वरिष्ठ कवि एवं लेखक डॉ. त्रिलोकचंद फतेहपुरी: हरियाणा के प्रख्यात आशुकवि। ममता: सदस्य, राष्ट्रीय महिला आयोग। शम्भू प्रसाद सिंह: वरिष्ठ समाजसेवी , लेखिका प्रो. . डॉ , सुधा गुप्ता , आशा रघुदेव , नीता सहाय सम्मानित हुए ।इनके अतिरिक्त भूदान यज्ञ और आचार्यकुल के माध्यम से ग्रामीण और सामाजिक उत्थान में सक्रिय भूमिका निभाने वाले कई जमीनी कार्यकर्ताओं को भी मंच पर सम्मानित किया गया। समारोह को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. धर्मेंद्र ने कहा, "आचार्यकुल केवल एक संगठन नहीं, बल्कि संत विनोबा भावे का वह सपना है जो राजनीति से ऊपर उठकर समाज को सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलाने का आह्वान करता है। आज के इस 'विश्व समन्वय कुम्भ' का उद्देश्य ही यही है कि हम साहित्य, कला और सेवा के माध्यम से विश्व में समन्वय स्थापित करें।" उन्होंने आगे कहा कि शांति स्मृति संभावना आवासीय उच्च विद्यालय, आरा जैसे संस्थानों का सहयोग यह दर्शाता है कि शिक्षा और संस्कार एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। सम्मेलन में वक्ताओं ने भूदान आंदोलन की वर्तमान प्रासंगिकता और समाज में पत्रकारों एवं साहित्यकारों की बदलती जिम्मेदारी पर भी गहन प्रकाश डाला। अधिवेशन के दौरान विभिन्न सांस्कृतिक सत्रों का आयोजन हुआ, जिसमें कलाकारों ने शांति और सौहार्द के संदेशों को अपनी कला के माध्यम से प्रस्तुत किया। हरियाणा से आए डॉ. त्रिलोकचंद फतेहपुरी की कविताओं और अन्य साहित्यकारों की चर्चाओं ने इस कुम्भ को बौद्धिक रूप से समृद्ध किया। समारोह के समापन पर उपस्थित प्रतिनिधियों ने सामूहिक रूप से समाज में व्याप्त विसंगतियों को दूर करने और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का संकल्प लिया। बोधिट्री स्कूल परिसर 'जय जगत' और 'अहिंसा परमो धर्मः' के नारों से गुंजायमान रहा। इस अंतरराष्ट्रीय समागम ने न केवल बिहार बल्कि पूरे भारत की सांस्कृतिक और नैतिक छवि को वैश्विक पटल पर मजबूती से प्रस्तुत किया।
अंतरराष्ट्रीय आचार्यकुल 2025 का त्रिदिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्धाटन 16 दिसंबर को परिसर में विनोबा भावे विश्वविद्यालय, हजारीबाग, झारखंड के कुलपति, डाॅ शशिभूषण शर्मा ने कहा कि गांधी – विनोबा के विचार – मंथन ही समाजिक समरसता का द्योतक हैं। उन्होंने कहा कि विनोबा भावे के भूदान आन्दोलन और गांधीजी का सर्वज्ञा आन्दोलन देश ही नहीं,विदेश को नयी दिशा दिया। समारोह की अध्यक्षता आचार्यकुल के पूर्व कुलपति एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष,आचार्य धर्मेन्द्र ने किया। ज्ञान और मोक्ष की पवित्र भूमि बोधगया एक महत्वपूर्ण वैचारिक मंथन का केंद्र बनने जा रहा है।यह उद्बोधन आचार्य,धर्मेन्द्र ने किया। आचार्यकुल का तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन 16 से 18 दिसम्बर, 2025 को सम्पन्न हुआ । इस सम्मेलन का उद्देश्य महात्मा गांधी, संत विनोबा भावे और जयप्रकाश नारायण (जेपी) की रचनात्मक विचारधाराओं को अंगीकार करने वाले चिंतकों को एक मंच पर लाना है। इस महत्वपूर्ण आयोजन में देश के 12 राज्यों एवं अमेरिका , इंग्लैंड , वाशिंगटन, यूके आदि देशों के आचार्यकुल के सदस्य, भूदान यज्ञ के प्रतिनिधि, साहित्यकार, कवि, पत्रकार और समाजसेवी शामिल हुए। संत विनोबा भावे जी की मानस पुत्री और आचार्यकुल की स्थायी ब्रह्मचारिणी, सुश्री प्रवीणा देसाई ने बीमार होने के कारण अनुपस्थिति रही, परन्तु उसके संदेश को पढकर सुनाया गया। विश्वभर के निर्भिक, निष्पक्ष, अहिंसक, असंप्रदायिक, अराजनैतिक चिन्तकों के विचारों पर मंथन हुआ।यह अधिवेशन वर्तमान वैश्विक चुनौतियों के बीच गांधीवादी और रचनात्मक सोच की प्रासंगिकता को स्थापित करने का एक प्रयास है। आचार्यकुल की अंतरराष्ट्रीय अधिवेशन का मुख्य एजेंडा कई दूरगामी और ऐतिहासिक महत्व के विषयों पर विचार-विमर्श करना है। विचारणीय बिषयों में शामिल हैं:। 2027 में आचार्यकुल के 60वें वर्षगांठ की भव्य तैयारी की रूपरेखा। स्थापना वर्ष 2026, 2027 एवं 2028 हेतु आचार्यकुल के प्रमुख कार्यक्रम ‘जय जगत’ की गतिविधियों पर मंथन। भूदान यज्ञ आन्दोलन के 75वें वर्ष (2026) के उपलक्ष्य में विशेष कार्यक्रमों के आयोजन पर विचार। चरखा संघ के स्थापना वर्ष पर भी महत्वपूर्ण चर्चा। ग्राम सभा सहयोग अभियान को सशक्त बनाने की रणनीति। विभिन्न संगठनात्मक कोषांगों के कार्यों की समीक्षा और सदस्यता अभियान का विस्तार। साहित्य, कला, संस्कृति, पत्रकारिता प्रकोष्ठ और ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना को सशक्त बनाने, गठन और विस्तार पर गहन विचार। राष्ट्रीय अधिवेशन के दौरान कवि सम्मेलन का भी आयोजन किया गया।
इस अवसर पर मधु गोयल ( लन्दन) एश्वर्य आर्य और कुशवाहा ( यूके), प्रशांति दीदी और गोविन्द ( वाशिंगटन) माँ ममता देवी, हेम भाई ( असम), अनुज, हृदयानन्द आदि ने अपने विचारों की अभिव्यक्ति किया। अंतरराष्ट्रीय आचार्यकुल सम्मेलन 2025 में आचार्यकुल के राष्ट्रीय प्रवक्ता सत्येन्द्र कुमार पाठक , कला संस्कृति प्रकोष्ट आचार्यकुल के राष्ट्रीय प्रभारी डॉ उषाकिरण श्रीवास्तव द्वारा चयनित मुजफरपुर के कलाकारों के माध्यम से बंदे मातरम एवं जय जगत की प्रस्तुति कर राष्ट्रीय चेतना एवं जय जगत पर कला प्रदर्शन किया गया । विश्व शांति और महात्मा बुद्ध की ज्ञानस्थली बोधगया में 'अंतरराष्ट्रीय आचार्यकुल सम्मेलन - विश्व समन्वय कुम्भ 2025' का ऐतिहासिक आयोजन अत्यंत भव्यता के साथ संपन्न हुआ। 17 दिसंबर 2025 को बोधिट्री स्कूल परिसर में आयोजित इस त्रिदिवसीय अंतरराष्ट्रीय अधिवेशन में देश-दुनिया के साहित्यकारों, पत्रकारों, कलाकारों और समाजसेवियों ने हिस्सा लिया। यह सम्मेलन संत विनोबा भावे द्वारा संस्थापित अहिंसक राजनैतिक व्यासपीठ (वर्धा, महाराष्ट्र) तथा राष्ट्रीय आचार्यकुल आश्रम (ब्रह्मपुर, बिहार) के तत्वावधान में आयोजित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता आचार्यकुल के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. धर्मेंद्र ने की। अधिवेशन का मुख्य आकर्षण 'सम्मान समारोह' रहा, जहाँ विभिन्न क्षेत्रों में समाज को दिशा देने वाले मनीषियों को सम्मानित किया गया। शांति स्मृति संभावना आवासीय उच्च विद्यालय (आरा) के विशेष सौजन्य से प्रदत्त सम्मान पत्र, स्मृति चिह्न और अंग वस्त्र प्रदान कर राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. धर्मेंद्र ने विभूतियों का अभिनंदन किया। सम्मानित होने वाले प्रमुख नामों में सत्येन्द्र कुमार पाठक: आचार्यकुल के राष्ट्रीय प्रवक्ता एवं सुप्रसिद्ध साहित्यकार व इतिहासकार। वसुंधरा के संपादिका कवयित्री व लेखिका डॉ. उषाकिरण श्रीवास्तव: संस्कृति एवं कला प्रकोष्ठ की राष्ट्रीय प्रभारी। जी. एन. भट्ट: 'निर्माण भारती' हिंदी पाक्षिक के संपादक। हरियाणा के वरिष्ठ कवि एवं लेखक डॉ. त्रिलोकचंद फतेहपुरी: हरियाणा के प्रख्यात आशुकवि। ममता: सदस्य, राष्ट्रीय महिला आयोग। शम्भू प्रसाद सिंह: वरिष्ठ समाजसेवी , लेखिका प्रो. . डॉ , सुधा गुप्ता , आशा रघुदेव , नीता सहाय सम्मानित हुए ।इनके अतिरिक्त भूदान यज्ञ और आचार्यकुल के माध्यम से ग्रामीण और सामाजिक उत्थान में सक्रिय भूमिका निभाने वाले कई जमीनी कार्यकर्ताओं को भी मंच पर सम्मानित किया गया। समारोह को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. धर्मेंद्र ने कहा, "आचार्यकुल केवल एक संगठन नहीं, बल्कि संत विनोबा भावे का वह सपना है जो राजनीति से ऊपर उठकर समाज को सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलाने का आह्वान करता है। आज के इस 'विश्व समन्वय कुम्भ' का उद्देश्य ही यही है कि हम साहित्य, कला और सेवा के माध्यम से विश्व में समन्वय स्थापित करें।" उन्होंने आगे कहा कि शांति स्मृति संभावना आवासीय उच्च विद्यालय, आरा जैसे संस्थानों का सहयोग यह दर्शाता है कि शिक्षा और संस्कार एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। सम्मेलन में वक्ताओं ने भूदान आंदोलन की वर्तमान प्रासंगिकता और समाज में पत्रकारों एवं साहित्यकारों की बदलती जिम्मेदारी पर भी गहन प्रकाश डाला। अधिवेशन के दौरान विभिन्न सांस्कृतिक सत्रों का आयोजन हुआ, जिसमें कलाकारों ने शांति और सौहार्द के संदेशों को अपनी कला के माध्यम से प्रस्तुत किया। हरियाणा से आए डॉ. त्रिलोकचंद फतेहपुरी की कविताओं और अन्य साहित्यकारों की चर्चाओं ने इस कुम्भ को बौद्धिक रूप से समृद्ध किया। समारोह के समापन पर उपस्थित प्रतिनिधियों ने सामूहिक रूप से समाज में व्याप्त विसंगतियों को दूर करने और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का संकल्प लिया। बोधिट्री स्कूल परिसर 'जय जगत' और 'अहिंसा परमो धर्मः' के नारों से गुंजायमान रहा। इस अंतरराष्ट्रीय समागम ने न केवल बिहार बल्कि पूरे भारत की सांस्कृतिक और नैतिक छवि को वैश्विक पटल पर मजबूती से प्रस्तुत किया ।
1. उद्धाटन समारोह: गांधी-विनोबा के विचारों का पुनर्जागरण - सम्मेलन का औपचारिक उद्घाटन 16 दिसंबर 2025 को विनोबा भावे विश्वविद्यालय (हजारीबाग) के कुलपति डॉ. शशिभूषण शर्मा द्वारा किया गया। अपने उद्घाटन संबोधन में डॉ. शर्मा ने कहा कि गांधी और विनोबा के विचारों का मंथन ही सामाजिक समरसता का वास्तविक आधार है। उन्होंने रेखांकित किया कि विनोबा भावे का 'भूदान आंदोलन' और गांधीजी का 'सर्वोदय' दर्शन केवल भारत के लिए नहीं, बल्कि संपूर्ण विश्व के लिए एक मार्गदर्शक प्रकाश स्तंभ है। - समारोह की अध्यक्षता आचार्यकुल के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं प्रख्यात शिक्षाविद् आचार्य डॉ. धर्मेंद्र ने की। उन्होंने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा, "बोधगया की यह पवित्र भूमि एक बार फिर वैचारिक क्रांति का केंद्र बन रही है। आचार्यकुल का यह अधिवेशन वर्तमान संकटों के बीच गांधी और विनोबा के दर्शन का पुनर्जागरण है।"
2. अंतरराष्ट्रीय सहभागिता और वैचारिक मंथन - इस सम्मेलन की महत्ता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसमें भारत के 12 राज्यों के अतिरिक्त अमेरिका, इंग्लैंड (यूके), वाशिंगटन और अन्य देशों के प्रतिनिधियों ने सक्रिय भागीदारी की। प्रमुख अंतरराष्ट्रीय वक्ताओं में शामिल थे: मधु गोयल (लंदन) , ऐश्वर्य आर्य और कुशवाहा (यूके) , प्रशांति दीदी और गोविंद (वाशिंगटन) यद्यपि संत विनोबा भावे की मानस पुत्री और आचार्यकुल की स्थायी ब्रह्मचारिणी सुश्री प्रवीणा देसाई अस्वस्थता के कारण व्यक्तिगत रूप से उपस्थित नहीं हो सकीं, परंतु उनके द्वारा भेजे गए प्रेरणादायी संदेश को सभा में पढ़कर सुनाया गया, जिसने सभी सदस्यों में नई ऊर्जा का संचार किया। - 3. सम्मेलन का मुख्य एजेंडा और दूरगामी लक्ष्य सम्मेलन के दौरान 'आचार्यकुल' के भविष्य और सामाजिक सुधार के कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर गहन चर्चा हुई। मुख्य एजेंडा इस प्रकार रहा:
आचार्यकुल की 60वीं वर्षगांठ (2027): वर्ष 2027 में होने वाले हीरक जयंती समारोह की भव्य रूपरेखा तैयार की गई। जय जगत अभियान: वर्ष 2026, 2027 और 2028 के लिए 'जय जगत' गतिविधियों का निर्धारण। भूदान आंदोलन के 75 वर्ष: वर्ष 2026 में भूदान यज्ञ आंदोलन की 75वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में राष्ट्रव्यापी विशेष कार्यक्रमों की योजना। संगठनात्मक विस्तार: ग्राम सभा सहयोग अभियान को सशक्त बनाना और सदस्यता अभियान को वैश्विक स्तर पर ले जाना। प्रकोष्ठों का गठन: साहित्य, कला, संस्कृति और पत्रकारिता प्रकोष्ठों के माध्यम से 'वसुधैव कुटुम्बकम्' की भावना को धरातल पर उतारना।
4. उच्च शिक्षा और नैतिक मूल्यों पर विमर्श- 16 दिसंबर को आयोजित विशेष सत्र में उच्च शिक्षा जगत की दिग्गज हस्तियों ने शिरकत की। शिक्षा में चारित्रिक विकास और नैतिक मूल्यों के समावेश पर ज़ोर देने वाले प्रमुख विद्वानों में शामिल थे: डॉ. एस.पी. शाही (कुलपति, मगध विश्वविद्यालय) ,डॉ. तपन कुमार शांडिल्य (पूर्व कुलपति, रांची) ,डॉ. रामजी यादव (कुलाधिपति, YBN विश्वविद्यालय) ,डॉ. एस.पी. अग्रवाल (कुलपति, साईनाथ विश्वविद्यालय) ,डॉ. वासुदेव प्रसाद एवं डॉ. जंगबहादुर पांडेय। इन विद्वानों ने सर्वसम्मति से स्वीकार किया कि केवल किताबी ज्ञान पर्याप्त नहीं है; शिक्षा का मूल उद्देश्य व्यक्ति के चरित्र का निर्माण होना चाहिए। 5. 'कर्मवीर सम्मान' और साहित्यिक समागम - सम्मेलन का दूसरा दिन (17 दिसंबर) वैचारिक गहराई और सम्मान समारोह को समर्पित रहा। इस अवसर पर देश-विदेश के 200 पत्रकारों, साहित्यकारों और भूदान कार्यकर्ताओं को आचार्यकुल की ओर से "कर्मवीर सम्मान" प्रदान किया गया प्रमुख सम्मानित विभूतियाँ: में सत्येन्द्र कुमार पाठक: राष्ट्रीय प्रवक्ता, साहित्यकार व इतिहासकार (जिन्होंने सम्मेलन की रूपरेखा और विनोबा के दर्शन पर ओजस्वी विचार रखे)। डॉ. उषाकिरण श्रीवास्तव: राष्ट्रीय प्रभारी (कला एवं संस्कृति), जिन्होंने मुजफ्फरपुर के कलाकारों के माध्यम से 'वंदे मातरम' और 'जय जगत' की मनमोहक प्रस्तुति का समन्वय किया। ,जी. एन. भट्ट: संपादक, 'निर्माण भारती'।
डॉ. त्रिलोकचंद फतेहपुरी: हरियाणा के प्रख्यात कवि। , , ममता पोद्दार: सदस्य, राष्ट्रीय महिला आयोग। , आप्रभात वर्मा , को शांति स्मृति संभावना आवासीय उच्च विद्यालय (आरा) के सहयोग से प्रदत्त इन सम्मानों ने समाज सेवा के प्रति समर्पित लोगों का मनोबल बढ़ाया।
6. कला, संस्कृति और पत्रकारिता का धर्म - सम्मेलन में सांस्कृतिक चेतना जगाने के लिए 'स्वर्णिम कला केंद्र, मुजफ्फरपुर' के कलाकारों ने राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत कार्यक्रम प्रस्तुत किए। पत्रकारिता प्रकोष्ठ के प्रभारी कुमुद रंजन सिंह ने 'स्वस्थ समाज की रचना में मीडिया की भूमिका' पर तकनीकी सत्र का संचालन किया। चर्चा का मुख्य निष्कर्ष यह था कि मीडिया को केवल सूचना प्रदाता नहीं, बल्कि सकारात्मक सामाजिक परिवर्तन का वाहक बनना
18 दिसंबर को समापन सत्र में 'अभिमत' के माध्यम से सम्मेलन का समग्र प्रतिवेदन प्रस्तुत किया गया। राष्ट्रीय महासचिव धर्मेंद्र सिंह राजपूत और उपाध्यक्ष ओमप्रकाश द्विवेदी सहित पूरी आयोजन समिति ने भविष्य के सम्मेलनों की रूपरेखा को अंतिम रूप दिया । सम्मेलन के अंत में सभी 150+ प्रतिनिधियों ने सामूहिक संकल्प लिया कि वे राजनीति से ऊपर उठकर सत्य, अहिंसा और करुणा के मार्ग पर चलेंगे। बोधगया का बोधि ट्री स्कूल परिसर 'जय जगत' के नारों से गुंजायमान रहा, जो इस बात का प्रतीक था कि भारत की प्राचीन ज्ञान परंपरा और विनोबा का अध्यात्म आज भी वैश्विक शांति का एकमात्र समाधान है।


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