मेरे लिए घर की जमीं तंग हो गई
ज्योतींद्र मिश्र
मेरे लिए घर की जमीं तंग हो गई
बे वजह अपनों से जंग हो गई
ना लड़कपन रहा, न नौजवानी रही
जईफ़ी में कैसी हुड़दंग हो गई
मयकदे से निकले तो रास्ता भूले
भटकी हुई जिंदगी , मलंग हो गई
या रब , हमने सूरज उगाए तो बहुत
मगर सारी गलियां , गुम- रंग हो गई
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