शब्दवीणा ने दिवंगत साहित्यकार पद्मश्री प्रो रामदरश मिश्र तथा गीतकार योगेन्द्र शुक्ल 'सुमन' को अर्पित की भावपूर्ण काव्यांजलि

- स्मरणांजलि सभा का आयोजन शब्दवीणा, राष्ट्रीय कवि संगम, कथा कुंज, तक्षवी एवं नवसृजन : एक सोच संस्थाओं के संयुक्त तत्वावधान में हुआ।
- हम भी चले चलेंगे कुछ दिन यहाँ बिताकर, कुछ अश्रुकण लुटाकर, कुछ गीत गुनगुनाकर
- तुम तो गये हंँसते-हँसते, पर सबको रुलाकर चले गये
गया जी। राष्ट्रीय साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था 'शब्दवीणा' की पश्चिम बंगाल प्रदेश इकाई ने 'राष्ट्रीय कवि संगम', 'कथा कुंज', 'तक्षवी' एवं 'नवसृजन : एक सोच' के संयुक्त तत्वावधान में दिवंगत साहित्यकार पद्मश्री प्रो रामदरश मिश्र तथा गीतकार योगेन्द्र शुक्ल 'सुमन' को कविताओं के माध्यम से श्रद्धांजलि अर्पित की। स्मरणांजलि की अध्यक्षता शब्दवीणा पश्चिम बंगाल समिति के अध्यक्ष जाने-माने ग़ज़लकार राम नाथ बेख़बर ने की। प्रदेश अध्यक्ष श्री बेख़बर ने अपने अध्यक्षीय अभिभाषण में प्रोफेसर रामदरश मिश्र एवं योगेन्द्र शुक्ल 'सुमन' के जीवन दर्शन एवं साहित्यिक उपलब्धियों पर सविस्तार चर्चा की। इन दोनों साहित्यिक विभूतियों के निधन को साहित्यिक जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति बतलाते हुए शब्दवीणा की पश्चिम बंगाल समिति की ओर से उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।
श्री बेख़बर ने बतलाया कि कोलकाता के प्रसिद्ध गीतकार और वरिष्ठ कवि योगेंद्र शुक्ल 'सुमन' का 31 अक्टूबर को निधन हो गया। श्री 'सुमन' का जन्म बिहार के वैशाली जिले में 5 जून 1951 को एक कृषक परिवार में हुआ था। बहुमुखी प्रतिभा के धनी श्री सुमन ने गीतों के साथ-साथ कविताएँ एवं ग़ज़लें भी लिखी हैं। सुमन जी की रचनाओं का संग्रह 'सबको गीत सुनाता चल' नाम से प्रकाशित हो चुका है, जिसमें 48 गीत, 31 कविताएँ, और कई ग़ज़लें शामिल हैं। योगेंद्र शुक्ल 'सुमन' ने "हम भी चले चलेंगे, कुछ दिन यहाँ बिताकर, कुछ अश्रुकण लुटाकर, कुछ गीत गुनगुनाकर" जैसे अमर गीत का सृजन किया है, जो आज भी लोगों के दिलों में बसा हुआ है। उनकी विरासत उनके गीतों के माध्यम से हमेशा जीवित रहेगी। श्री बेख़बर ने प्रो रामदरश मिश्र के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता रामदरश मिश्र को महान कवि, उपन्यासकार, कहानीकार व आलोचक बतलाया। कहा कि "बनाया है मैंने ये घर धीरे-धीरे, खुले मेरे ख़्वाबों के पर धीरे-धीरे" जैसी अमर पंक्तियों के रचयिता प्रो मिश्र को हम कभी भी नहीं भुला सकते।

तक्षवी की सचिव प्रणति ठाकुर की "गीतों का गह्वर स्तब्ध है, मुखर मौन की भाषा है। तेरी अस्थि भी गंगा में गीत रचेगी आशा है" पंक्तियाँ सुन सभी भावुक हो उठे।स्मरणांजलि सभा में "नवसृजन - एक सोच" संस्था के अध्यक्ष अमित अंबष्ट, राष्ट्रीय कवि संगम के उमेश चंद्र तिवारी, कवयित्री पुष्पा मिश्रा, शिविर ढांढनिया, समीर पासवान, सौमी मजुमदार, विजय शर्मा आदि कलमकारों ने भी श्रद्धासुमन अर्पित किया। राष्ट्रीय कवि संगम, मध्य कोलकता की महामंत्री तथा तक्षवी की अध्यक्ष स्वागता बसु के धन्यवाद ज्ञापन के साथ ही समरणांजलि सभा संपन्न हुई। प्रो. मिश्र एवं श्री सुमन के प्रशंसकों और साहित्य प्रेमियों ने उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। कार्यक्रम का सफल संयोजन रामाकांत सिन्हा ने किया।
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