आ जाओ मेरे प्यारे बच्चे ,
मन के भोले मन के सच्चे ।तुम्हीं हो भारत के भविष्य ,
मिलने आए तेरे प्यारे चच्चे ।।
कठिन तप आजादी पाई ,
बड़े संघर्ष से ध्वज लहरा ।
गोली खाकर फाॅंसी पाकर ,
राष्ट्र पर बैठा अपना पहरा ।।
बहुत लंबी कहानी इसकी ,
बहुत लंबा इसका दास्तान ।
भारत भूमि बहुत है पावन ,
बहुत लंबी यह व्याख्यान ।।
आज सौंप रहा तुम्हें धरोहर ,
इसका अतीत रखना ध्यान ।
पथ से तू विचलित न होना ,
निज को तू स्वयं पहचान ।।
न जाति थी न धर्म कहीं था ,
आजादी की लंबी लडाई में ।
कर्म ही धर्म तब था हमारा ,
जाति भारतीय भाई भाई में ।।
भारती माता एक माॅं हमारी ,
जिसका शान ध्वज तिरंगा ।
बच्चा बच्चा है वीर सिपाही ,
जहाॅं बहती पावन माॅं गंगा ।।
अब तुम्हीं इसके खेवनहारे ,
जन्मदिन निज तुम्हारे नाम ।
अब तुम्हीं हो सच्चा सुबह ,
होने न पाए जीवन में शाम ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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