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बूढ़ाअमरनाथ की कथा।

बूढ़ाअमरनाथ की कथा।

आनन्द हठीला
पाकिस्तानी क्षेत्र से तीन ओर से घिरी सीमावर्ती पुंछ घाटी के उत्तरी भाग में पुंछ कस्बे से 23 किमी की दूरी पर स्थित का मंदिर सांप्रदायिक सौहार्द की कथा भी सुनाता है जो इस क्षेत्र में है। वैसे यह भी कहा जाता है कि भगवान शिव ने कश्मीर में स्थित अमरनाथ की गुफा में माता पार्वती को जो अमरता की कथा सुनाई थी।


उसकी शुरुआत बुड्ढा अमरनाथ के स्थान से ही हुई थी और अब यह मान्यता है कि इस मंदिर के दर्शनों के बिना अमरनाथ की कथा ही नहीं, बल्कि अमरनाथ यात्रा भी अधूरी है। कितने आश्चर्य की बात है कि हिन्दुओं का धार्मिक स्थल होने के बावजूद इसके आसपास कोई हिन्दू घर नहीं है और इस मंदिर की देखभाल आसपास रहने वाले मुस्लिम परिवार तथा सीमा सुरक्षा बल के जवान ही करते हैं।


बुड्ढा अमरनाथ मंदिरों की नगरी जम्मू से 246 किमी दूरी पर स्थित पुंछ घाटी के राजपुरा मंडी क्षेत्र, जहाँ तक पहुँचने के लिए किसी प्रकार की पैदल यात्रा नहीं करनी पड़ती है और जिसके साथ ही कश्मीर का क्षेत्र तथा बहुत ही खूबसूरत लोरन घाटी लगती है, में स्थित बुड्ढा अमरनाथ का मंदिर चकमक पत्थर से बना हुआ है।


यह सभी अन्य शिव मंदिरों से पूरी तरह से भिन्न है। मंदिर की चारदीवारी पर लकड़ी के काम की नक्काशी की गई है जो सदियों पुरानी बताई जाती है। कहा जाता है कि भगवान शिव द्वारा सुनाई जाने वाली अमरता की कथा की शुरुआत भी यहीं से हुई थी।


पीर पंजाल पर्वत श्रृंखला के कदमों में ही स्थित मंदिर के आसपास के पहाड़ सालभर बर्फ की सफेद चादर से ढँके रहते हैं जो हमेशा ही एक अद्भुत नजारा प्रस्तुत करते हैं। मंदिर के एक ओर लोरन दरिया भी बहता है जिसे 'पुलस्त्य दरिया' भी कहा जाता है और उसका पानी बर्फ से भी अधिक ठंडक लिए रहता है।


सनद रहे कि पुंछ कस्बे का पहला नाम पुलस्त्य ही था। बर्फ से ढँके पहाड़, किनारे पर बहता शुद्ध जल का दरिया तथा चारों ओर से घिरे ऊँचे पर्वतों के कारण यह रमणीक स्थल हिल स्टेशन से कम नहीं माना जाता है।


राजपुरा मंडी तक जाने के लिए चंडक से रास्ता जाता है जो जम्मू से 235 किमी की दूरी पर है तथा जम्मू-पुंछ राजमार्ग पर पुंछ कस्बे से 11 किमी पहले ही चंडक आता है। बुड्ढा अमरनाथ के दर्शनार्थ आने वाले किसी धर्म, मजहब, जाति या रंग का भेदभाव नहीं करते हैं।


इसकी पुष्टि इससे भी होती है कि मुस्लिम बहुल क्षेत्र में स्थित इस मंदिर की रखवाली मुस्लिम ही करते हैं। सिर्फ राजौरी-पुंछ से ही नहीं, बल्कि देशभर से लोग चकमक पत्थर के लिंग के रूप में विद्यमान भगवान शिव के दर्शनार्थ इस मंदिर में आते हैं। विभाजन से पहले यहाँ पाकिस्तान तथा पाक अधिकृत कश्मीर से आने वालों का ताँता भी लगा रहता था जो पुंछ कस्बे से मात्र तीन किमी की दूरी पर ही है।


जिस प्रकार कश्मीर में स्थित अमरनाथ गुफा में श्रावण पूर्णिमा के दिन, जब रक्षाबंधन का त्योहार होता है, प्रत्येक वर्ष मेला लगता है ठीक उसी प्रकार इस पवित्र स्थल पर भी उसी दिन उसी प्रकार का एक विशाल मेला लगता है और अमरनाथ यात्रा की ही भाँति यहाँ भी यात्रा की शुरुआत होती है और उसी प्रकार 'छड़ी मुबारक' रवाना की जाती है।


त्रयोदशी के दिन पुंछ कस्बे के दशनामी अखाड़े से इस धर्मस्थल के लिए छड़ी मुबारक की यात्रा आरंभ होती है। पुलिस की टुकड़ियाँ इस चाँदी की पवित्र छड़ी को, उसकी पूजा के उपरांत, इसका आदर सम्मान करती हैं और फिर अखाड़े के महंत द्वारा पुंछ से मंडी की ओर जुलूस के रूप में ले जाई जाती है।


इस यात्रा में हजारों साधु तथा श्रद्धालु भी शामिल होते हैं जो भगवान शिव के लिंग के दर्शन करने की इच्छा लिए होते हैं। हालाँकि हजारों लोग पूर्णिमा से पहले भी सालभर लिंग के दर्शन करते रहते हैं।
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