डॉ. श्रीरंजन सूरिदेव
( दोहा-माला )✍️ रचनाकार –
डॉ. रवि शंकर मिश्र ‘राकेश’
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शुंभेश्वर में जन्म ले, रंजन ज्योति प्रखर।
साहित्याकाश उदित हुए, सूरिदेव अमर ॥
ताऊ से प्रेरित हुए, लेखन की अभिराम।
शब्द-शिल्प में गढ़ दिए, अमर विचारों धाम ॥
संस्कृत-पाली-प्राकृतमय, जिनका ज्ञान विशाल।
शोध सुधा के सिन्धु थे, अति उज्ज्वल मिसाल ॥
छब्बीस वर्ष समर्पिते, परिषद संपादक।
शब्द साधना में लीन थे, कर्मप्रेम रचक ॥
‘वासुदेव हिन्दी’ लिखी, भारत का इतिहास।
संस्कृति का बृहत् कथा, दिया अनूप प्रकाश ॥
‘मेघदूत’ का अनुचिंतन, किया सुधा संचार।
प्रकृति-मानव एक में, देखा भाव अपार ॥
‘बहुत है’ के गीत में, झलके हृदय उमंग।
चांद-चांदनी छवि लिए, गूँजे रस तरंग ॥
शिवपूजन से सीख ली, शुचिता लेखन-नीति।
संपादन के क्षेत्र में, की अनुपम प्रीति ॥
बाल-कथा ‘पिटारी’ लिखी, ‘काठ-तलवार’ महान।
बालमन के मनोरथों, का रच दी आभान ॥
पुरस्कार-अभिनंदन मिले, उज्ज्वल रहा प्रताप।
‘राकेश’ वाणी गा उठे, जय-जय हिन्दी ताप ॥
गए न भूलें सूरिदेव, ज्योति शेष रहि जाय।
साहित्याकाश अमर रहे, उनकी दिव्य काया ॥
ज्ञान-भक्ति के संग थे, रंजन दीपकधाम।‘राकेश’ नमित नयन से, करता शत-प्रणाम ॥
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