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रिवाज

रिवाज 

जय प्रकाश कुवंर
आज कल हमारे समाज में एक ऐसी प्रथा फैली हुई है कि जब किसी बिमार व्यक्ति को देखने और उससे मिलने कोई हास्पिटल जाता है तो अपने साथ कुछ फल लेकर जाता है। निरोगी अवस्था में कभी किसी अपने या पराया ने भले ही उसे कभी कोई फल नहीं खिलाया हो पर बिमार होकर हास्पिटल में भर्ती हुए अवस्था में हर कोई उसके लिए कोई न कोई फल अवश्य लेकर जाता है। ऐसा नहीं करने पर स्वजन उसे बुरा मानते हैं और उसकी हंसी उड़ाते हैं।
रमेश किसी गंभीर बीमारी के चलते हास्पिटल में भर्ती है, जहाँ उसका इलाज चल रहा है। उसे होशोहवास की सामान्य अवस्था में हास्पिटल के एक केबिन में रखा गया है। हर रोज उसके सगे संबंधियों का वहाँ मिलने के समय में आना जाना लगा रह रहा है, जो अपने साथ कुछ फल लेकर आते हैं।
रमेश का एक निकट संबंधी मोहन,जो गरीब है और गांव में रहता है, उसे रमेश के बीमारी और उसके हास्पिटल में भर्ती होने की जानकारी मिलती है। वह अपनी पत्नी राधा से यह बताता है और उसे देखने तथा मिलने जाने के लिए कहता है। राधा तैयार हो जाती है लेकिन कहती है कि सुने हैं कि हास्पिटल में रोगी से मिलने जाने के लिए कुछ फल लेकर जाना पड़ता है। हमलोगों के पास आने जाने और फल खरीदने के लिए उपयुक्त पैसे नहीं है। लेकिन अपने कटहल के पेड़ पर एक कटहल पका हुआ है और घर के आगे कुछ गन्ने के पौधे तैयार हैं। मैं आने जाने के पैसे का जुगाड़ कर लेती हूँ और तुम कटहल तोड़ लाओ तथा दो- चार गन्ने को काटकर टूकड़े कर बांध लो।
इस प्रकार एक पका हुआ कटहल का फल और गन्ने के टूकड़ों का एक छोटा सा बंडल लेकर मोहन और उसकी पत्नी राधा बिमार रमेश को देखने हास्पिटल पहुँच जाते हैं। कटहल और गन्ना टेबल पर रख कर वे रमेश तथा उनके स्वजनों से बात करने लगते हैं और उसके सेहत की जानकारी लेते हैं तथा ये भी बताते हैं कि वे रमेश के लिए कुछ फल लेकर आये हैं, जो उस टेबल पर पड़ा है।
पका हुआ कटहल और गन्ने का बंडल देखकर हास्पिटल में वर्तमान सभी हास्पिटल स्टाफ ,डाक्टर और रमेश के स्वजन मुंह बिचकाने तथा हंसने लगते हैं। 
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