पटना में 'सम्मानित साहित्यकार' पुस्तक का लोकार्पण: साहित्य को 'समाज को दिशा देने वाली दिव्य रश्मि' बताया गया

पटना: बिहार की राजधानी पटना में साहित्य, संस्कृति और इतिहास के संगम वाले एक गरिमामय समारोह में, जाने-माने साहित्यकार एवं इतिहासकार श्री सत्येन्द्र कुमार पाठक द्वारा रचित महत्वपूर्ण कृति "सम्मानित साहित्यकार" का लोकार्पण किया गया। इस अवसर पर वक्ताओं ने साहित्य की मानवीय, नैतिक और सामाजिक भूमिका पर ज़ोर देते हुए इसे वर्तमान भौतिकवादी दौर में अत्यंत निर्णायक बताया।
✨ 'दिव्य रश्मि' के रूप में साहित्य की भूमिका
पुस्तक का लोकार्पण 'दिव्य रश्मि' पत्रिका के संपादक डॉ. राकेश दत्त मिश्र ने किया। अपने मुख्य संबोधन में, डॉ. मिश्र ने साहित्यकार के कर्तव्य को रेखांकित करते हुए कहा कि:
"साहित्यकार केवल शब्दों का ताना-बाना नहीं बुनते, बल्कि वे अपने लेखन के माध्यम से मानवीय जीवन को दिशा देने, नैतिक मूल्यों की स्थापना करने और समाज में चेतना जगाने का अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य करते हैं।"
डॉ. मिश्र ने स्पष्ट किया कि साहित्य किसी भी समाज का आईना होता है, और यह समाज को दिशा देने वाला 'दिव्य रश्मि' है। उन्होंने कहा कि आज के भौतिकवादी दौर में जब मानवीय संवेदनाएं खोती जा रही हैं, तब साहित्य ही वह दीपक है जो अपने विचारों की लौ से सामाजिक कुरीतियों, अन्याय और रूढ़िवादिता को दूर कर समाज को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जा सकता है।
📘 'सम्मानित साहित्यकार' - एक ऐतिहासिक दस्तावेज़
डॉ. राकेश दत्त मिश्र ने सत्येन्द्र कुमार पाठक की कृति 'सम्मानित साहित्यकार' की प्रशंसा करते हुए इसे "साहित्यिक इतिहास का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़" बताया।
मूल्यांकन: उन्होंने कहा कि लेखक श्री पाठक ने अथक परिश्रम से उन साहित्यकारों के योगदान को एकत्रित और मूल्यांकित किया है, जिन्होंने अपनी लेखनी से राष्ट्र और समाज को समृद्ध किया।
प्रेरणा स्रोत: यह पुस्तक न केवल गुमनाम विभूतियों को उचित सम्मान प्रदान करती है, बल्कि यह नई पीढ़ी के लेखकों के लिए एक महत्वपूर्ण प्रेरणा का स्रोत भी बनेगी।
स्वर्णिम कला केंद्र की अध्यक्षा और कवित्री डॉ. उषाकिरण श्रीवास्तव ने भी पुस्तक की महत्ता दोहराते हुए कहा कि "'सम्मानित साहित्यकार' पुस्तक साहित्यिक इतिहास का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है।"
🗣️ लेखक का वक्तव्य: इतिहास के मूक निर्माता
पुस्तक के लेखक और इतिहासकार श्री सत्येन्द्र कुमार पाठक ने अपने विचार साझा करते हुए बताया कि इस कृति को रचने का उनका मुख्य उद्देश्य उन गुमनाम या कम चर्चित साहित्यकारों के कृतित्व को सामने लाना था, जिनके विचारों ने समाज के ताने-बाने को बुना है।
श्री पाठक ने साहित्यकारों को "इतिहास के मूक निर्माता" बताया, क्योंकि उनके विचार ही आगे चलकर युग और सभ्यता की दिशा तय करते हैं। उन्होंने पाठकों से अपील की कि वे साहित्य को केवल पाठ्य सामग्री न मानें, बल्कि इसे जीवन का मार्गदर्शक समझें।
🌟 सर्वसम्मति और संदेश
लोकार्पण समारोह में उपस्थित बुद्धिजीवियों, साहित्य प्रेमियों और शिक्षाविदों ने सर्वसम्मति से स्वीकार किया कि साहित्य समाज में सद्भाव, प्रेम और ज्ञान के प्रसार के लिए अपरिहार्य है।
यह गरिमामय आयोजन इस बात का संदेश देता है कि शब्दों की शक्ति अपार है और एक सच्चा साहित्यकार अपने लेखन के माध्यम से एक बेहतर और अधिक संवेदनशील समाज का निर्माण कर सकता है। पुस्तक 'सम्मानित साहित्यकार' निस्संदेह साहित्य जगत में एक नया मील का पत्थर साबित होगी।
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