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“बाराती की ठिठोली"

“बाराती की ठिठोली"

✍️ डॉ. रवि शंकर मिश्र "राकेश"
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क्या शानदार बारात है आई ,
भर मुंह गुटखा सबने चबाई।
अभी तो बस शुरुआत भाई,
किधर है बारात किधर जमाई।


बारात संग दूल्हा गाने गाए,
ऑर्केस्ट्रा पर सब धूम मचाए।
गुटखा चबाए, बीड़ी जलाए,
भांग के नशे में सब भरमाय।


चेहरे पर मुस्कान, आंखों में झलक,
बाराती बढ़े, जैसे हो कोई पलक।
गांजा, भांग, मस्ती का बना संग
देखो “कितनी गाढ़ी नशे का रंग!”


गांजा में मिल गया खैनी का पात,
रात भर होती रही,चीलम की बात।
बच्चे,युवा, बुज़ुर्ग नाचते रहे भर रात,
ठहाके में होती रही, दारू की बरसात।


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