सोन नदी में सोना भरा है ,
गंगा में समा है गंगटोक ।
सरयू में है सार समाहित ,
यह कोशी नदी है शोक ।।
यमुना नदी में यम बसे हैं ,
त्रिवेणी में त्रिदेव बसे हैं ।
गंडक नदी में ठंडक बहुत ,
सतलज सत्य लाज कसे है ।।
भारत देश का भार इन्हीं पे ,
सींचना जल पिलाना है ।
हुई क्रोधित कोई भी नदी ,
धन जन मिट्टी मिलाना है ।।
इन्हीं से भारत हरा भरा है ,
प्रकृति ने भारत को वरा है ।
प्रकृति से जो हुआ वंचित ,
प्रकृति ने उसे हीन करा है ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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हुई क्रोधित कोई भी नदी ,
धन जन मिट्टी मिलाना है ।।
इन्हीं से भारत हरा भरा है ,
प्रकृति ने भारत को वरा है ।
प्रकृति से जो हुआ वंचित ,
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