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अखंड भारत के शिल्पकार: लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल

अखंड भारत के शिल्पकार: लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल

सत्येन्द्र कुमार पाठक
भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महानायकों में, एक नाम ऐसा है जिसने राष्ट्र के स्वरूप को न केवल स्वतंत्रता दिलाई, बल्कि उसे एकता के अटूट धागे में पिरोया—वह हैं वल्लभभाई झावेरभाई पटेल (31 अक्टूबर 1875 – 15 दिसंबर 1950), जिन्हें कृतज्ञ राष्ट्र 'सरदार' पटेल के नाम से जानता है। 'सरदार' यानी 'प्रमुख', और यह उपाधि उन्हें यूं ही नहीं मिली; उन्होंने अपने कर्मों और असाधारण नेतृत्व से इसे अर्जित किया। सरदार पटेल का जन्म गुजरात के नडियाद में एक लेवा पटेल (पाटीदार) परिवार में हुआ था। वह झवेरभाई पटेल और लाडबा देवी की चौथी संतान थे। उनकी शिक्षा मुख्यतः स्वाध्याय (स्वयं के अध्ययन) पर आधारित थी, जो उनकी आत्म-निर्भरता और गहन संकल्प को दर्शाती है। उन्होंने लंदन जाकर बैरिस्टर की पढ़ाई की और वापस आकर अहमदाबाद में सफल वकालत शुरू की।यह एक स्थापित और आरामदायक जीवन था, जिसे उन्होंने महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर त्याग दिया। गांधीजी के संपर्क ने उनके जीवन की दिशा बदल दी, और वह स्वयं को पूरी तरह से भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के लिए समर्पित कर चुके थे। स्वतंत्रता आंदोलन में सरदार पटेल का प्रवेश एक कुशल संगठनकर्ता और दृढ़ रणनीतिकार के रूप में हुआ। उनका पहला और महत्वपूर्ण योगदान 1918 का खेड़ा संघर्ष था। भयंकर सूखे से पीड़ित खेड़ा के किसानों पर अंग्रेज सरकार ने भारी कर लगाया। पटेल ने गांधीजी के साथ मिलकर किसानों को कर न देने के लिए प्रेरित किया। उनके सफल नेतृत्व के कारण, सरकार को झुकना पड़ा और करों में राहत देनी पड़ी। यह उनकी पहली बड़ी विजय थी।
पटेल के करियर का सबसे महत्वपूर्ण मोड़ 1928 का बारडोली सत्याग्रह था। प्रांतीय सरकार ने किसानों के लगान में तीस प्रतिशत तक की अन्यायपूर्ण वृद्धि कर दी थी। वल्लभभाई पटेल ने इस वृद्धि के विरोध में एक सशक्त किसान आंदोलन का नेतृत्व किया। सरकार के कठोर दमन के बावजूद, पटेल ने किसानों का मनोबल बनाए रखा, और अंततः सरकार को हार माननी पड़ी। एक न्यायिक जांच के बाद लगान वृद्धि को घटाकर मात्र 6.03 प्रतिशत कर दिया गया।
यह आंदोलन उनकी नेतृत्व क्षमता का प्रतीक बना। इस सफल सत्याग्रह के बाद, वहां की महिलाओं ने वल्लभभाई पटेल को 'सरदार' की उपाधि प्रदान की। गांधीजी ने इस संघर्ष को स्वराज के मार्ग में सहायक बताते हुए, सरदार के महत्व को रेखांकित किया। स्वतंत्रता के पश्चात, सरदार पटेल ने देश के पहले उप-प्रधानमंत्री और गृह मंत्री का पद संभाला। यद्यपि अधिकांश प्रांतीय कांग्रेस समितियां उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहती थीं, उन्होंने गांधीजी की इच्छा का सम्मान करते हुए प्रधानमंत्री पद की दौड़ से खुद को दूर रखा और नेहरू का समर्थन किया। नेहरू और पटेल के बीच कुछ वैचारिक और कार्यात्मक तनाव रहे, जो उनकी कार्यशैली में अंतर के कारण थे; नेहरू का झुकाव समाजवाद और अंतर्राष्ट्रीय मामलों की ओर था, जबकि पटेल एक व्यावहारिक, राष्ट्रवादी और कार्य-उन्मुख नेता थे। पटेल की यह भावना उनके स्वयं के कथन में झलकती है: "मैंने कला या विज्ञान के विशाल गगन में ऊंची उड़ानें नहीं भरीं। मेरा विकास कच्ची झोपड़ियों में गरीब किसान के खेतों की भूमि और शहरों के गंदे मकानों में हुआ है।"
सरदार पटेल का सबसे महान और विश्व-ऐतिहासिक योगदान 562 छोटी-बड़ी देसी रियासतों को भारतीय संघ में विलीन करना था। स्वतंत्रता के समय, इन रियासतों का क्षेत्रफल भारत का 40% था। यह एक भयानक चुनौती थी जो देश को सैकड़ों टुकड़ों में बांट सकती थी। गृह मंत्री के रूप में, उनकी पहली प्राथमिकता इस विकेंद्रीकरण को रोकना और भारतीय एकता का निर्माण करना था।पटेल ने अपने सचिव वी.पी. मेनन के साथ मिलकर एक अथक प्रयास शुरू किया। उन्होंने राजाओं को समझाया कि स्वायत्तता अब संभव नहीं है, और देश की एकता के लिए उन्हें भारत में विलय करना होगा। इस कूटनीति, दृढ़ता और यदा-कदा बल प्रयोग के संयोजन को विश्व इतिहास में एक रक्तहीन क्रांति के रूप में जाना जाता है। पाकिस्तान में विलय की घोषणा करने वाले जूनागढ़ को जनमत संग्रह के माध्यम से 9 नवंबर 1947 को भारत में मिलाया गया। हैदराबाद: निजाम ने स्वतंत्र राज्य का दावा किया और हथियार जमा करने लगा। पटेल ने केवल चार दिन की 'ऑपरेशन पोलो' (पुलिस कार्रवाई) के माध्यम से 13 सितंबर 1948 को हैदराबाद को भारत में मिला लिया, जिससे यह सुनिश्चित हुआ कि भारत के केंद्र में कोई विदेशी शक्ति न रहे। इस महान एकीकरण के कारण ही उन्हें 'भारत का लौह पुरुष' (Iron Man of India) कहा जाता है। गांधीजी ने स्वयं स्वीकार किया था कि "रियासतों की समस्या इतनी जटिल थी जिसे केवल तुम ही हल कर सकता है। पटेल की दूरदर्शिता वर्तमान समस्याओं को देखते हुए और भी स्पष्ट होती है। 1950 में नेहरू को लिखे एक पत्र में उन्होंने चीन और उसकी तिब्बत नीति से सावधान किया था, और चीन के व्यवहार को "कपटपूर्ण तथा विश्वासघाती" बताया था। यदि उनकी बात मानी गई होती, तो कई वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय समस्याएं जन्म न लेतीं।गृह मंत्री के रूप में, उन्होंने भारतीय नागरिक सेवाओं का भारतीयकरण करके इन्हें भारतीय प्रशासनिक सेवाएं बनाया, और 'राजभक्ति' की भावना को 'देशभक्ति' में बदला। सरदार पटेल का देहांत 15 दिसंबर 1950 को हुआ। उनके निधन के बाद, नेहरू का कांग्रेस के भीतर विरोध बहुत कम रह गया। उन्हें 1991 में मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया।उनकी विरासत को सम्मान देने के लिए, गुजरात में नर्मदा नदी के तट पर, सरदार सरोवर बांध के सामने, 'स्टैच्यू ऑफ यूनिटी' का निर्माण किया गया है। यह 182 मीटर ऊंची प्रतिमा (जो स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी से लगभग दोगुनी है) अखंड भारत के उनके स्वप्न का एक शाश्वत प्रतीक है। 31 अक्टूबर 2018 को राष्ट्र को समर्पित यह प्रतिमा, उनके महान योगदान को श्रद्धांजलि देती है।हाल ही में, 5 अगस्त 2019 को, अनुच्छेद 370 और 35(अ) को समाप्त करके जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया, जिससे वह पूरी तरह से भारतीय संघ का अभिन्न अंग बन गया। कई विद्वानों ने इसे सरदार पटेल के अखंड भारत के स्वप्न को साकार करने की दिशा में एक सच्ची श्रद्धांजलि माना है।सरदार पटेल केवल एक राजनेता नहीं थे; वे भारत की एकता और अखंडता की नींव थे। उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति, अद्वितीय कूटनीति और व्यावहारिक राष्ट्रवाद ने आधुनिक भारत की भौगोलिक और राजनीतिक रूपरेखा को स्थायी रूप से ढाला। वह सही मायनों में मनु के शासन की कल्पना, कौटिल्य की कूटनीतिज्ञता और महाराज शिवाजी की दूरदर्शिता का संगम थे, जो हमेशा भारतीयों के हृदय के सरदार बने रहेंगे।
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