छठि मइया के बियाह
-मार्कण्डेय शारदेयशंकरपुत्र कार्तिकेय के साथे लेके जइसही देवगण चलल कि एगो अत्यन्त नीलवर्णा गजगामिनी सुन्दरी उपस्थित भइलि।सभे ओकर रूप-यौवन से पूर्ण सौन्दर्ये देखत रहि गइल।नख से शिखा तक अइसन अद्भुत जे कतहूँ से केहू छिब ना काटि सके।अंग-अंग मनोहर। कोमल कलित चरण आ पादांगुलि, भरल-भरल गुल्फ, ऊरु आ नितम्बदेश भारी, कटिभाग कृश, दक्षिणावर्त नाभि, लवंगलता-अस पातर आ लचकदार काया, लोमहीन सब अंग, सघन, सुदृढ़ आ भारमय कुचद्वय, सुघर गला, भरल-पुरल गोल-गोल गाल, सरस ओठ, पातर आ लम्बा नाक, पानीदार बड़-बड़ आँखि, परस्पर सटल कुटिल दूनो भौंह, करिया कुचु-कुचु केश आ वस्त्राभूषण से सुसज्जित काय; देखते सभे चिहा गइल जे ई के हिय? एहिजा काहें खातिर आइल बिया?
प्रकृति के सहज प्रवृत्ति हिय जे सुन्दर युवती का ओर युवा के आ पौरुषमय युवा का ओर युवती के मन आकृष्ट होला।शंकरपुत्र कार्तिकेय जइसही सेना के देखलें, देखते रहि गइलें। अइसन बुझाउ जे देखते काठ हो गइल बाड़ें।बाकिर; तबो आँखि चलत रहे।ऊपर से नीचे तक निहारत रहे।सेनो शांकरि के पहचानिके एकटक उनुके के निहारत रहे आ जइसे साधक के साधना के फल मिल गइल होखे, ओसही मने-मने गील रहे।
ई देखिके सभ देवता अचरज में पड़ल रहन।तब देवगण के अवाक् देखिके वागीश बृहस्पति ओह युवती से पुछलें; ‘देवि! तू के हऊ? एहिजा काहें खातिर आइल बाड़ू’?
‘हम मृत्यु के पुत्री सेना हईं।ब्रह्माजी वरदान देले बाड़ें जे शांकरि स्कन्द से हमार विवाह होई। एही से पतिप्राप्ति खातिर इहाँ आइल बानी।ब्रह्मवरदान के अनुसार जहिया देवसेनानी के पद प अभिषेक होखी, ओही दिने हमार विवाह होई।हमरा जसही पता चलल जे आजु नियुक्ति हो गइल त हम तपःसाधना से भागल चलल आवतानी’।
अब ई सुनिके सभ एक-दोसराके आ कार्तिकेय के मुँह देखे लागल।देवगण के चिन्ता हो गइल जे ई कवन विघ्न आइल! अगर विवाह हो जाई त शांकरि सेनापतित्व कइसे सम्हरिहें! इन्द्रदेव के बुझाइल जे स्वर्गसुख भा विजय तरकुल से गिरबो कइल त खजूर प अँटकल।
ब्रह्मेजी के योजना रहल, एसे उनुका पता रहबे कइल।ऊ विष्णु आ महेश्वर के सँघे ओही घरी ओहिजा आ गइलें।हरि आ हर जसही सेना के ओहिजा देखिके चिहइलें, तसही विरंचि सभ बात बता देलें आ कार्तिकेय के साथ विवाह खातिर राजी क लिहलें।
जब एह बात के पता पार्वती, कृत्तिका आदि के लागल त उहो लोग ओहिजा आ गइल।उहो लोग सेना के सेनानी के वधू बनावे में खुशी देखावल।तब का! लगलही पाणिग्रहण करा दियाइल।कैलास प सेनापति पद के उत्सव अभी बसियाइलो ना रहे कि विवाहोत्सव तन-मन में एगो नया मोद घोरि दिहलस।अब लागल शंख, ढोल, मृदंग, नगाड़ा, धौंसा, दुन्दुभि आ डिमडिम बाजे।गन्धर्व लोग गायन-वादन करे लागल त अप्सरा लोग नृत्य।गीत-संगीत से धरती आ आकाश गुलजार हो गइल।
कबो-कबो रंग में भंगो सम्भव होला।एह उत्सव में उहो आ गइल।बात रहे जे स्कन्द के माई एगो त रहली ना आ बेटा के बियाह के खुशी माई के सबसे अधिका होइबे करेला।जब पार्वती कहे लगली जे हमार बेटा के बियाह-हमार बेटा के बियाह त कृत्तिका के बाउर लागे लागल। अब ऊ कहे लगली जे तहार कइसन, हमार बेटा-हमार बेटा।इहाँ ले कि गिरिजा के पक्ष में जया आ विजयो खड़ा होके कहे लगलीजा जे हमनी के बेटा।तब कृत्तिका के साथे छवो ऋषिपत्नी एकवटिके कहे लगली ना-ना, तोहन लोग के ना; हमनी के बेटा।
तब नारदजी मेहरारून के मुँहचोथउल देखिके कहलें; ‘रउरा सभे काहें के नासमझी करतानी! ई रउरा सभे के पुत्र हवें आ पतोहियो रउरा सभे के हिय।शांकरि के जनम देवकार्य के सिद्धि खातिर भइल बा।हँउजार कके बिघिन मत डालीं सभे’।देवर्षि के बात सुनिके सभे चुपा गइलि।
अब कार्तिकेय कृत्तिका आदि से कहलें; ‘हम पहिलहूँ कहले बानी आ आजुओ कहतानी जे तूहू लोग हमार माई हऊ।बाबुओजी आजुए सभा में कहलींहा जे हमार दसगो माई बाड़ी।फिर झगरा कइला के का जरूरत बा? अबही हम दोसरा काम खातिर जातानी।तारकासुर के मारिके देवता लोग के स्वर्ग-साम्राज्य दियावल हमार मुख्य उद्देश्य बा।एसे तू लोग आशीर्वाद देत नक्षत्रलोक जा आ हमरा के देवसैन्य के साथे प्रस्थान करे द’।
पुत्र के बाति सुनिके कृत्तिका आदि आशीर्वाद देके चलि गइल लोग।फिर अपना गणन के साथे महेश्वर-महेश्वरी आ ब्रह्मा-विष्णुओ अपना-अपना स्थान चलि दिहलें।
अब स्कन्द पत्नी से कहलें; ‘देवि! हमनी के विवाह अइसना समय प भइल जे हमनी के साहचर्य अबही सम्भव नइखे।हम एगो सैनिक पहिले हईं, ओकरा बादे पति भा पुत्र।एसे हमार कर्तव्य देवकार्य के ओर खींचता।पति-पत्नी के एकमत होखले प दाम्पत्य सुख सम्भव होला। अभी हम सैन्यसंचालन में लागम एसे तू हमार प्रतीक्षा कर।तू चाह त कैलास प पार्वती माई के साथे रहि सकेलू भा नक्षत्रलोको में कृत्तिका माता के साथे।भा, कह त तहरा खातिर अलग रनिवास बना दीं।भा, मृत्युदेव किहाँ, भा ब्रह्माजी किहाँ रह सकेलू’।
तब ऊ कहली; ‘पतिदेव!अब से हमनीका दू ना, एगो बानी।हमार नाँव ह सेना आ रउरा बानी सेनापति।रउरा से का बतावे के बा; रउरा खुदे जानतानी जे सेना के अर्थ होला इन, अर्थात् स्वामी के साथ।ना हमही रउरा बिना रहि सकींला आ ना देवसेने।एसे हम राउर छाया बनिके रउरा साथे गुप्त रूप से रहम।बाकिर; रउरा कार्य में कवनो तरह के बाधा ना बनम।रउरा के बुझाहूँ ना देम जे हमहूँ बानी’।
ई सुनिके कार्तिकेय कहलें; ‘चल; ठीक बा’।
***(हमरा भोजपुरी उपन्यास 'तारक' के 69वाँ भाग)
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