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अन्याय है याचना करने वाले को उसकी भाषा में न्याय का न मिलना

अन्याय है याचना करने वाले को उसकी भाषा में न्याय का न मिलना

  • 'हिन्दी में न्याय हमारा जन्म सिद्ध अधिकार' विषय पर राजेंद्र सभागार पटना उच्च न्यायालय में हुई संगोष्ठी
पटना, ९ अक्टूबर। न्याय की याचना करने वाले पीड़ितों को उसकी भाषा में न सुना जाए और न्याय भी उसकी भाषा में न हो, तो इससे बड़ा अन्याय और क्या हो सकता है? कैसा देश है भारत, जिसमें विदेश की किसी भाषा में न्यायिक-प्रक्रिया चलती है। क्या इससे देश के कर्णधारों और न्यायकर्ताओं को लज्जा नहीं आती? अरब अमीरात में, जहां की भाषा 'अरबी' है, वहाँ की न्यायपालिका में हिन्दी तीसरी भाषा के रूपमे अपना स्थान बना चुकी है और भारत में ही 'भारती' की यह दशा, लोग कैसे देख पा रहे हैं, यही चिंता जनक है।

क्षोभ और पीड़ा से भरी यह बातें, वैश्विक हिन्दी सम्मेलन, मुंबई के तत्त्वावधान में, राजेंद्र सभागार,पटना उच्च न्यायालय में आयोजित संगोष्ठी को संबोधित करते हुए, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि यदि भारत में न्यायिक-व्यवस्था जनोनुकूल, न्यायसंगत और पारदर्शी बनानी है, तो सबसे पहले इसे अंग्रेज़ी से मुक्त करना होगा तथा झूठे मुक़दमे न हो, यह सुनिश्चित करना होगा। अन्यथा न्याय के नाम पर अन्याय होते रहेंगे। अवश्य ही प्रत्येक भारतीय नागरिक का यह जन्म-सिद्ध अधिकार है कि हिन्दी में उसे न्याय मिले। उसकी भाषा में उसकी याचना सूनी जाए और उसी की भाषा में उसे निर्णय भी मिले, ताकि वह समझने के लिए दूसरों पर निर्भर न रहे।

मुख्य वक्ता के रूप में अपना विचार व्यक्त करते हुए, वैश्विक हिन्दी सम्मेलन के निदेशक डा मोतीलाल गुप्ता ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद-३५० के अंतर्गत हमारा अधिकार है कि हम अपनी व्यथा को अपनी भाषा में उच्च न्यायालयों अथवा सर्वोच्च न्यायालय में रख सकें। उन्होंने कहा कि देश में अंग्रेज़ी शासन लागू रहे, इसलिए एक बडा षडयंत्र आज तक जारी है। इसे समझना होगा और इसके विरुद्ध खड़ा होना होगा।

अखिल भारतीय अधिवक्ता कल्याण समिति के अध्यक्ष और वरिष्ठ अधिवक्ता धर्मनाथ प्रसाद यादव की अध्यक्षता में आयोजित इस संगोष्ठी में वरीय अधिवक्ता डा उमाशंकर प्रसाद, अपर महाधिवक्ता, बिहार मो खुरशीद आलम, कुमार अनुपम, राम संदेश राय, अरुण कुशवाहा,सुनील कुमार सिन्हा और रण विजय सिंह ने भी अपने विचार व्यक्त किए तथा 'हिन्दी में न्याय हमारा जन्म-सिद्ध अधिकार है' इस विचार का समर्थन किया।

कार्यक्रम का संचालन संस्था के बिहार संयोजक और अधिवक्ता इंद्रदेव प्रसाद ने किया। इस अवसर पर अधिवक्ता डा ओम् प्रकाश जमुआर,सूर्यदेव सिंह, प्रो नागेश्वर शर्मा , पद्मश्री विमल जैन आदि सैकड़ों विद्वान अधिवक्ता उपस्थित थे।

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