दीपावली कब मनाये (शंका समाधान)
आनन्द हठीला
प्रदोष व्यापिनी कार्तिक कृष्ण अमावस्या के दिन दीपावली का पर्व मनाया जाता है।
भविष्यपुराण का कथन है कि "प्रदोषसमये लक्ष्मीं पूजयित्वा यथाक्रमम् । दीपवृक्षास्तथा कार्याः शक्त्यादेव गृहेषु च।।"
विक्रम् संवत् 2082 में कार्तिक कृष्ण पक्ष में 20 अक्टूबर को चतुर्दशी अपराह्न 03:45 तक है, और इस दिन सूर्यास्त सायं 05:50 पर हुआ, जबकि 21 अक्टूबर 2025 को अमावस्या सायं 05:55 तक है और इस दिन सूर्यास्त सायं 05:49 पर हुआ है अर्थात् इस वर्ष अमावस्या 20 अक्टूबर और 21 अक्टूबर, दोनों दिन प्रदोष काल मे व्याप्त है। पहले दिन सम्पूर्ण प्रदोष काल में दूसरे दिन केवल 07 मिनट ही व्याप्त है। निर्णय सिन्धु प्रथम परिच्छेद के पृष्ठ 26 के अनुसार जब तिथि दो दिन कर्मकाल में विद्यमान हो तो निर्णय युग्मानुसार करें। इस हेतु अमावस्या प्रतिपदा का युग्म शुभ माना गया है अर्थात् अमावस्या को प्रतिपदा युता ग्रहण महाफलदायी होता है और लिखा है कि उलटा होय (अर्थात् पहले दिन चतुर्दशी युता अमावस्या ग्रहण की जाये) तो महादोष होता है और पूर्व किये पुण्यों को नष्ट करता है। दीपावली निर्णय प्रकरण में धर्मसिन्धु में लेख है कि
"तत्र सूर्योदयं व्याप्यास्तोत्तरं घटिकादि रात्रि व्यापिनी दर्श न सन्देहः"
अर्थात् जहाँ सूर्योदय में व्याप्त होकर अस्तकाल के उपरान्त एक घटिका से अधिक व्याप्त होकर अमावस्या होवे, तब सन्देह नहीं है। तदनुसार 21 अक्टूबर 2025 को दूसरे दिन सिन्धुकार आगे लिखते है
"तथा च परदिने एव दिनद्वये वा प्रदोषव्याप्तौ परा।
पूर्वत्रैव प्रदोषव्याप्ती लक्ष्मीपूजादौ पूर्वा, अभ्यंग स्नानादौ पदा, एवमुभयत्र प्रदोष व्याप्त्यभावेऽपि ।।"
निर्णयसिन्धु के द्वितीय परिच्छेद के पृष्ठ 300 पर लेख है कि
"दण्डैक रजनी योगे दर्शः स्यात्तु परेऽहवि। तदा विहाये पूर्वेद्युः परेऽहनि सुखरात्रिकाः ।।"
अर्थात् यदि अमावस्या दोनों दिन प्रदोष व्यापिनी होवे तो अगले दिन ही करना चाहिए क्योंकि तिथि तत्त्व के अनुसार एक घड़ी रात्रि का योग होये तो अमावस्या दूसरे दिन होती है, तब प्रथम दिन छोड़कर अगले दिन सुखरात्रि होती है। व्रतपर्व-विवेक के अनुसार...
"इयं प्रदोषव्यापिनी ग्राह्या, दिनद्वये सत्त्वाऽसत्त्वे परा" (तिथिनिर्णय)
अर्थात् यदि अमावस्या दोनों दिन प्रदोष को स्पर्श न करें तो दूसरे दिन ही लक्ष्मीपूजन करना चाहिए, इसमें यह अर्थ भी अन्तर्निहित है कि अमावस्या दोनों दिन प्रदोष को स्पर्श करे तो लक्ष्मीपूजन दूसरे दिन ही करना चाहिए।
इस प्रकार उपरोक्त सभी ग्रन्थों का सार यह है कि अमावस्या दूसरे दिन प्रदोषकाल में एक घटी से अधिक व्याप्त है तो प्रथम दिन प्रदोष में सम्पूर्ण व्याप्ति को छोड़कर दूसरे दिन प्रदोषकाल में महालक्ष्मी पूजन करना चाहिए, किन्तु कहीं भी ऐसा लेख नहीं मिलता है कि दो दिन प्रदोष में व्याप्ति है तो अधिक व्याप्ति वाले प्रथम दिन लक्ष्मी पूजन करना चाहिए।
अतः उपरोक्त सभी तथ्यों का परिशीलन करने के उपरान्त यह निर्णय लिया जाना शास्त्र सम्मत है कि दूसरे दिन अर्थात् 21 अक्टूबर 2025 को श्रीमहालक्ष्मी पूजन (दीपावली) किया जाना शास्त्र सम्मत है। इस दिन सूर्योदय से सूर्यास्त उपरान्त विद्यमान होने से अमावस्या साकल्यापादिता तिथि जो सम्पूर्ण रात्रि और अगले दिन सूर्योदय तक विद्यमान मानी जाकर सम्पूर्ण प्रदोषकाल, वृषलग्न, निशीथ में सिंहलग्न में लक्ष्मीपूजन के लिए प्रशस्त होगी।
21 अक्टूबर के सभी शुभ मुहूर्त
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व्यवसायियों के लिये गद्दी स्थापना-स्याही भरना-कलम दवात संवारने हेतु शुभ मुहूर्त
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प्रातः मुहूर्त 21 अक्टूबर प्रातः 06:33 से 10:45 तक (इस अवधि मे चंचल की चौघड़ी रहेगी)।
- दिन 10:45 से 01:47, लाभ व अमृत
- दिन 12:00 से 12:45 तक अभिजीत मुहूर्त,
- दिन 03:11 से 04:36 तक शुभ की चौघड़ी तथा सायं 05:45 से 08:33 तक प्रदोष काल में करना श्रेष्ठ रहेगा।
- (दिन 02:55 से 04:20 तक राहुकाल रहेगा इस अवधि मे पूजन से बचे)
प्रदोष काल में लक्ष्मी पूजन मुहूर्त
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गौधुली प्रदोष वेला👉 सायं 05:46 से रात्रि 08:33 तक प्रदोष काल रहेगा दीपावली पूजन के लिये यह समय उपयुक्त माना जाता है।
शुभ लग्न में पूजन का मुहूर्त
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प्रदोष काल👉 सायं 05:46 से रात्रि 08:33 तक।
वृषभ लग्न👉 07:25 से 08:22 तक वृष लग्न रहेगा प्रदोष काल व स्थिर लग्न दोनों रहने से गृहस्थ और व्यापारी वर्ग के लिये लक्ष्मी पूजन के लिये यही मुहुर्त सर्वाधिक शुभ रहेगा।
सिंह लग्न
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रात्रि 01:53 से 04:05 तक सिंह लग्न रहेगी इस समयावधि में श्रीकनकधारा स्तोत्र का पठन पाठन विशेष श्रीकर सिद्ध होता है।
निशिथ काल
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निशिथ काल में स्थानीय प्रदेश समय के अनुसार इस समय में कुछ मिनट का अन्तर हो सकता है। रात्रि 11:40 से 12:31 तक निशिथ काल रहेगा। निशिथ काल में सन्यासी एवं तांत्रिक वर्ग के लिये लक्ष्मी पूजन के लिये यह समय अधिक उपयुक्त रहेगा।
महानिशीथ काल
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महानिशीथ काल मे धन लक्ष्मी का आहवाहन एवं पूजन, गल्ले की पूजा तथा हवन इत्यादि कार्य किया जाता है। श्री महालक्ष्मी पूजन, महाकाली पूजन, लेखनी, कुबेर पूजन, अन्य वैदिक तांत्रिक मंन्त्रों का जपानुष्ठान किया जाता है।
महानिशीथ काल रात्रि में 11:40 से 12:50 मिनट तक महानिशीथ काल रहेगा। इस समयावधि में कर्क लग्न और सिंह लग्न होना शुभस्थ है। इसलिए अशुभ चौघडियों को भुलाकर यदि कोई कार्य प्रदोष काल अथवा निशिथ काल में शुरु करके इस महानिशीथ काल में संपन्न हो रहा हो तो भी वह अनुकूल ही माना जाता है।
जो जन शास्त्रों के अनुसार दिपावली पूजन करना चाहते हो, उन्हें इस समयावधि को पूजा के लिये प्रयोग करना चाहिए।
दीपदान मुहूर्त
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लक्ष्मी पूजा दीपदान के लिए प्रदोष काल (रात्रि का पंचमांष प्रदोष काल कहलाता है) ही विशेषतया प्रशस्त माना जाता है। दीपावली के दिन प्रदोष काल सायं 05:45 से रात्रि 08:33 बजे तक रहेगा।
धन तेरस 18 तारीख, नरक (काली) चौदस 19 तारीख एवं रूप चतुर्दशी का अभ्यंग (प्रातः उबटन स्नान) 20 अक्टूबर की प्रातः, (अन्नकूट) गोवर्धन पूजा 22 अक्टूबर एवं भाई दूज (यम द्वितीया) 23 अक्टूबर को ही किया जाना शास्त्र के अनुरूप है।
विशेष 👉 कृपया भ्रम मे ना रहे आपको अपने शास्त्र अनुसार कर्म करने है या तथाकथित ज्योतिषीयो द्वारा अपने विवेक से निर्णय ले शास्त्र के अनुसार निर्णय लेख मे दिया गया है।
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