भाई दूज
मानव मान है मानवता ,मानव मान या न मान ।
मानव मन समझ गए तो ,
युग करे तेरा यशगान ।।
जीवन मूल व्यवहार है ,
व्यवहार मूल त्यवहार ।
त्यवहार सार्थक है तब ,
जब हृदय उपजे प्यार ।।
प्यार से जीवन है पिश्ता ,
जीवन में है प्यारा रिश्ता ।
जीवन में प्यार नहीं जब ,
रिश्ता भी तब है रिसता ।।
जीवन प्यारा है प्यार से ,
जैसे खग प्यारी है कूज ।
मानव हेतु त्यौहार बना ,
बहन भाई हेतु भाई दूज ।।
सुगंधित भाई बहन प्यार ,
सदा प्यार रहे सुवासित ।
फैले जग में प्यारा सुगंध ,
जीवन सदा रहे प्रकाशित ।।
मानवता हेतु व्यौहार बना ,
मानवता हेतु ही है त्यौहार ।
गमकता रहे प्यारा रिश्ता ,
गमकता रहे सदा आचार ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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