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छठ महापर्व गीत

छठ महापर्व गीत

सत्येन्द्र कुमार पाठक
कार्तिक शुक्ल चौथ सुहाई, नहाय खाय की बेला आई।
घर-घर पावनता छा जाती, व्रत संकल्प की ज्योति जगाती।
पंचमी तिथि को लोहंडा होता, मन पावन, निर्जल व्रत सोता।
षष्टी पावन पर्व महान, सांझ ढले होता प्रथम अर्घ्य दान।
अस्ताचलगामी रवि पूजन, सुख-समृद्धि भरे हर आँगन।
फिर अगले दिन सप्तमी आती, प्रातः अर्घ्य की बेला भाती।
उगते दिनकर को करे प्रणाम, पूर्ण होय व्रती के सब काम।
देवार्क, उमग्यार्क की पूजा, हर बाधा को करे दूर दूजा।
गयार्क और पुण्यार्क ध्याएँ, कोन्यार्क में शीश झुकाएँ।
अँगयार्क, बाल्यार्क़ को पूजें, मन की पीड़ाएँ सब उल्यार्क़ बूझें।
लोल्यार्क़ रूप भी अति पावन, करें सकल कष्टों का श्रावण।
विष्णु आदित्य, मित्र आदित्य, सबकी महिमा है अति दिव्य।
वरुणादित्य, धातादित्य नाम, करें सफल जीवन के सब काम।
मार्त्तण्ड आदित्य हैं प्रकाश, दूर करें सब मन का त्रास।
सूर्य देव और छठी मैया, कृपा करो, पार लगाओ नैया।
चौदह आदित्य की है शक्ति, देते जीवन में नव अनुरक्ति।
शुभ हो छठ पर्व का प्रकाश, पूरो सबकी सुंदर आस।


॥ द्वादश आदित्य वंदन गीत ॥
जयति धाता प्रथम आदित्य, मास चैत्र के स्वामी।
विवस्वान् हैं दिव्य प्रकाश, हरें तिमिर हर गामी।
वैशाख में पूजे अर्यमा, ज्येष्ठ में मित्र महान।
अंशुमान भादव में पूजें, दें सबको यश और मान॥
पूषा हैं आषाढ़ के पालक, भग का श्रावण वास।
पर्जन्य देव हैं कार्तिक के, वर्षा के हैं खास॥
वरुण मार्गशीर्ष के रक्षक, त्वष्टा पौष के देव।
इंद्र हैं माघ के तेजस्वी, करें देवगण सेव॥
विष्णु नाम फाल्गुन में पूजित, सविता आश्विन सार।
ये द्वादश आदित्य स्वरूप, जगत के सृजनहार॥
सृष्टि के ये आधार बारहों, दूर करें सब पीर।
तेरा मेरा, सबका जीवन, करें ये अति गंभीर॥


सौर सम्प्रदाय और सूर्योपासना
सनातन धर्म के सौर सम्प्रदाय के सौर ग्रंथ में सूर्य को 'आदित्य' नाम से पूजा जाता है, जो देवी अदिति के पुत्र माने जाते हैं। ये द्वादश आदित्य (12 सूर्य) प्रत्येक मास में भिन्न-भिन्न रूप में गतिशील रहते हैं, जिससे वर्ष के 12 महीनों और ऋतुओं का चक्र संचालित प्रत्येक माह में आदित्य का स्थान पर होते हैं 1. धाता माह चैत्र , 2. अर्यमा वैशाख ,3. मित्र ज्येष्ठ ,4. वरुण आषाढ़ ,5. इंद्र श्रावण ,6. विवस्वान् भाद्रप ,7. पूषा आश्विन ,8. पर्जन्य कार्तिक , 9. अंशुमान मार्गशीर्ष ,10. भग पौष ,11. त्वष्टा माघ , 12. विष्णु (या सविता) माह फाल्गुन है।
द्वादश आदित्यों को केवल काल के चक्र में ही नहीं, बल्कि विभिन्न तीर्थ स्थानों पर भी स्थापित माना गया है। उदाहरण के लिए, भगवान शिव की नगरी काशी (वाराणसी) में इन द्वादश आदित्यों के प्राचीन मंदिर या टीले हैं, जहाँ श्रद्धालु इनकी परिक्रमा (प्रदक्षिणा) करते हैं, जिनमें लोलार्कादित्य (लोलार्क कुंड) और उत्तरार्कादित्य प्रमुख हैं। वृंदावन में भी द्वादशादित्य टीला नामक स्थान है, जहाँ सूर्य पूजा का महत्व है। सूर्य उपासना का ऋग्वेद , पुराणों , संहिताओं में अत्यंत प्राचीन है, लेकिन इसकी मूर्ति पूजा और विशेष अनुष्ठानों का एक महत्वपूर्ण आयाम शाकद्वीप और मग ब्राह्मणों से जुड़ा है। विष्णु पुराण , सूर्यपुरण , भविष्य पुराण, वायु पुराण में शाकद्वीप का उल्लेख एक ऐसे द्वीप के रूप में है, जहाँ सूर्य की विशेष पूजा होती थी। कई विद्वान शाकद्वीप को भारत के बाहर, संभवतः प्राचीन ईरान क्षेत्र से जोड़ते हैं, जिसे प्राचीन समय में सूर्योपासना का एक प्रमुख केंद्र माना जाता था।।मग ब्राह्मण, जिन्हें शाकद्वीपीय ब्राह्मण भी कहा जाता है, मूलतः शाकद्वीप के निवासी माने जाते हैं। साम्ब पुराण के अनुसार, भगवान कृष्ण के पुत्र साम्ब को कुष्ठ रोग होने पर उन्हें सूर्य की पूजा करने की सलाह दी गई। जब भारत में सूर्य की मूर्तिपूजा के विशेषज्ञ पुरोहित नहीं मिले, तब शाकद्वीप से मग ब्राह्मणों को बुलाया गया, जो सूर्य की मूर्ति पूजा के विशिष्ट जानकार थे। मग ब्राह्मण भारत के विभिन्न हिस्सों, विशेषकर मगध (बिहार/झारखंड) क्षेत्र में बसे और यहाँ सूर्योपासना को मजबूत किया। बिहार का महापर्व छठ पूजा भी इसी प्राचीन सूर्योपासना की परंपरा से जुड़ा हुआ है।
मग ब्राह्मण न केवल पुजारी थे, बल्कि ज्योतिष और आयुर्वेद के भी महान विद्वान माने जाते थे, जो सूर्य (आरोग्य के देवता) की उपासना से प्राप्त ज्ञान का उपयोग करते थे। सौर संप्रदाय सनातन धर्म के उन छह प्रमुख संप्रदायों (षन्मत) में से एक है, जिसके अनुयायी भगवान सूर्य को ही सर्वोच्च देवता (परब्रह्म) मानकर उपासना करते हैं। सौर संप्रदाय वैदिक काल से ही विद्यमान रहा है, लेकिन मूर्ति पूजा और तांत्रिक अनुष्ठानों के साथ इसका प्रभाव गुप्त काल और मध्यकाल में पूरे भारत में फैला।।मग ब्राह्मणों के आगमन और उनके द्वारा लाई गई सूर्य की विशिष्ट उपासना पद्धति ने भारत में सौर संप्रदाय के विस्तार और सूर्य मंदिरों की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कोणार्क (ओडिशा), मोढेरा (गुजरात), और देव (बिहार) के सूर्य मंदिर इस परंपरा के प्रमाण हैं। सूर्य और द्वादश आदित्य की उपासना सनातन धर्म का अभिन्न अंग है: सनातन धर्म में सूर्य को एकमात्र प्रत्यक्ष देवता माना जाता है, जिनके दर्शन रोज़ किए जा सकते हैं।'पंचदेवों' (गणेश, शिव, विष्णु, शक्ति और सूर्य) में से एक हैं, जिनकी पूजा हर सनातनी को करनी अनिवार्य मानी जाती है।।वेदों में गायत्री मंत्र और आदित्य हृदय स्तोत्र जैसे शक्तिशाली मंत्र सूर्य की आराधना के लिए ही समर्पित हैं। छठ पूजा जैसा पर्व सनातन परंपरा में सूर्य के प्रति गहरी आस्था, प्रकृति प्रेम और अनुशासन को दर्शाता है, जो सूर्य की जीवनदायिनी शक्ति को समर्पित है। द्वादश आदित्य, शाकद्वीप से आए मग ब्राह्मणों की विशेषज्ञता और सौर संप्रदाय की विचारधारा मिलकर सनातन धर्म में सूर्योपासना की समृद्ध और व्यापक परंपरा का निर्माण करते है।
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