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राजनीतिक दलों की उपेक्षा को ब्राह्मण गंभीरता से लें------- रानी मिश्रा

राजनीतिक दलों की उपेक्षा को ब्राह्मण गंभीरता से लें:-रानी मिश्रा

स्थानीय गयाजी, डॉक्टर विवेकानंद पथ, गोल बगीचा बिहार के एक गरिमामय प्रांगण में, भारतीय राष्ट्रीय ब्राह्मण महासभा की एक आभासीय बैठक का आयोजन प्रसिद्ध समाजसेवी सामाजिक चेतना के संवाहक आचार्य सच्चिदानंद मिश्रा (नैकी) की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। इस अवसर पर महासभा के प्रदेश सचिव एवं सुप्रसिद्ध कवयित्री श्रीमती रानी मिश्र ने अपने प्रखर वक्तव्य में कहा कि आज का यह राजनीतिक परिदृश्य ब्राह्मण समाज के लिए अपमान और चुनौती दोनों है। संपूर्ण मगध क्षेत्र में जहाँ छब्बीस विधानसभाएँ आती हैं, वहाँ स्वतंत्रता प्राप्ति से लेकर आजतक किसी भी प्रमुख दल ने ब्राह्मणों को अपना उम्मीदवार बनाना उचित न समझा। यह स्थिति न केवल अन्याय की प्रतीक है, अपितु सामाजिक संतुलन के लिए भी घोर संकट का संकेत है।

मगध विश्वविद्यालय के पूर्व विभाग अध्यक्ष रहे साइंस ऑफ इंडिया अध्यक्ष डॉक्टर बी एन पांडे ने कहा कि यह कैसी विडंबना है कि जिन ब्राह्मणों ने भारत की आत्मा को वेद, उपनिषद और संस्कारों से सिंचित किया, जिन्होंने राष्ट्र को दिशा दी, उन्हीं ब्राह्मणों को राजनीति के प्रांगण से अपात्र मानकर बाहर कर दिया गया।
आचार्य सुनील कुमार पाठक हरि नारायण त्रिपाठी ने कहा हम ब्राह्मणों की राजनीतिक उपेक्षा कुटिल राजनीतिकों द्वारा एक सोची समझी साजिश के तहत की जाती रही है यह उपेक्षा अब सहन नहीं होगी। याद रखें ब्राह्मण अब केवल पूजन या कर्मकांड तक सीमित नहीं रहेगा, वह अपने राजनीतिक अधिकारों की रक्षा के लिए संगठित होगा।
समाजसेवी जितेंद्र दूबे , अधिवक्ता अच्युत मराठे, किरण पाठक ने कहा कि जब समाज अपने पुरोहितों का सम्मान करना भूल जाता है, तब अधर्म और अराजकता का वास होता है। आज राजनीतिक दलों ने जातीय समीकरणों की आड़ में ब्राह्मणों को हाशिये पर धकेल दिया है। किन्तु यह भूल रहे हैं कि जहाँ ब्राह्मण मौन रहता है, वहाँ सत्य भी मौन हो जाता है। अब समय आ गया है कि ब्राह्मण अपने बौद्धिक सामर्थ्य और सामाजिक प्रभाव से इस उपेक्षा का उत्तर दे।
सभा के अध्यक्षता करते हुए प्रसिद्ध समाजसेवी राजनीतिक चेतना के संवाहक, आचार्य सचिदानंद मिश्र (नैकी) ने अपने गंभीर और ओजस्वी स्वर में कहा कि ब्राह्मण केवल एक जाति नहीं, एक चेतना है — जो राष्ट्र की आत्मा में बसी है। जब-जब इस चेतना को दबाने का प्रयास हुआ, तब-तब इतिहास ने नए युग का जन्म देखा। उन्होंने कहा कि ब्राह्मण समाज को अब आत्मविस्मृति से बाहर आना होगा, अपनी ज्ञानशक्ति और संगठनशक्ति दोनों का परिचय देना होगा।

वहीं भारतीय राष्ट्रीय ब्राह्मण महासभा के संरक्षक सम्मानित साहित्यकर राधा मोहन मिश्र माधव, एवं आचार्य वल्लभ जी महाराज ने कहा कि अब ब्राह्मणों को केवल विचारक नहीं, कर्मशील योद्धा बनना होगा। वेद और ग्रंथों का अध्ययन तभी सार्थक है जब उसका प्रकाश समाज में न्याय और सम्मान का मार्ग प्रशस्त करे। यदि राजनीतिक दल हमें अनदेखा करते हैं, तो उन्हें यह स्मरण रहना चाहिए कि ब्राह्मण की उपेक्षा अंततः राष्ट्र की आत्मा की उपेक्षा है।
सभा के अंत में यह सर्वसम्मति से निश्चय किया गया कि ब्राह्मण समाज अब अपनी उपेक्षा पर मौन नहीं रहेगा।
धन्यवाद ज्ञापित करते हुए प्रसिद्ध समाजसेवी ब्राह्मणों में राजनीतिक चेतना जगाने वाले क्रांतिकारी विचारों के समर्थक अरुण ओझा ने कहा हमें अपनी गौरव गरिमा को नहीं भूलना चाहिए। और राजनीतिक दलों द्वारा दी गई चुनौती को स्वीकार कर संघर्ष के लिए आगे बढ़े। स्वामी सुमन गिरि, आचार्य अरुण मिश्र मधुप, आचार्य विनय कांत मिश्रा, आचार्य अभय पाठक,पंडित दामोदर मिश्र, डॉक्टर अजय कुमार मिश्र, जितेंद्र मिश्रा, राजीव नयन पांडे, डा मंटु मिश्रा, कृष्णा बाबू टईया, विश्वजित चक्रवर्ती, मनीष मिश्र, गजाधर लाल कटरियार, मांडवी गुर्दा, किशोर बाबू अग्निवार, मुन्नू दूबे, ऋषिकेश गुर्दा, रंजीत पाठक, पवन मिश्रा, पंडित वरिष्ठ अधिवक्ता एस के पाठक, शैलेंद्र मिश्रा, अमरनाथ पांडे, राकेश पांडे, अमरनाथ पांडे, राकेश पांडे, ज्ञानेश पांडेय, अधिवक्ता दीपक पाठक, अधिवक्ता जगन्नाथ मिश्रा, प्रोफेसर सुनील कुमार मिश्रा, डॉक्टर छोटे बाबू, अधिवक्ता उत्तम पाठक, श्याम किशोर मिश्रा, शंभू गिरि, चंद्रभूषण मिश्रा, रचना मिश्रा, अधिवक्ता क्रिनेश मिश्र, सुनील गिरि, सुरेंद्र उपाध्याय, अशोक दूबे, हरिद्वार मिश्र मिश्रा, डॉक्टर गोपी, अरविंद मिश्रा, सुनीता देवी, रंजना पांडेय, संदीप पाठक, शिला त्रिपाठी, पुष्पलता चौबे, डॉक्टर पी पी मिश्रा, गौरी शंकर मिश्र, राजेश त्रिपाठी, शंकरी अपराजिता चक्रवर्ती,
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