"एकता का फल"
✍️ डॉ. रवि शंकर मिश्र "राकेश"अकेली उंगली कुछ कर न पाए,
मुट्ठी बन जाए तो पर्वत हटाए।
अकेली बूँद गिरे ज़मीं पे खो जाए,
सागर बने तो तूफ़ान ले आए।
पन्ना अकेला कहानी अधूरी,
संग में जुड़कर बनती दस्तूरी।
तिनका अकेला हवा से डरे,
झुंड बने तो घरों का छत धरे।
मनुष्य अकेला हो तो कमज़ोर,
समूह बने तो खोले हर भोर।
अकेला चना भांड़ नहीं फोड़े,
संग चले तो पर्वत भी तोड़े।
शेर अकेला जंगल में राज करे,
गांव-शहर में वो भी इन्सान से डरे।
संग हो साथी, विश्वास का साथ,
तभी तो कटते हैं जीवन के रात।
तो मत बाँटो खुद को सीमाओं में,
जुड़ो दिलों से, भावनाओं में।
जब साथ जुड़ता सबका हाथ,
तभी बदलता है हर एक बात।
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