Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी : धर्मराज, मुक्ति और शक्ति का त्रिवेणी पर्व

कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी : धर्मराज, मुक्ति और शक्ति का त्रिवेणी पर्व

सत्येन्द्र कुमार पाठक
कार्तिक मास की कृष्ण चतुर्दशी, जिसे छोटी दीवाली या नरक चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है, भारतीय अध्यात्म और संस्कृति में एक अद्वितीय स्थान रखती है। यह तिथि मात्र एक पर्व नहीं, बल्कि प्रकाश, कर्म, न्याय और शक्ति के सिद्धांतों का एक जीवंत प्रतीक है। विश्व वांगमय में इसका उल्लेख यमराज की पूजा, नरकासुर के संहार और देवी काली के शक्ति-प्रदर्शन के रूप में किया गया है। कर्म, न्याय और दीर्घायु का सिद्धांत - कार्तिक चतुर्दशी का प्रथम और सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान मृत्यु के देवता यमराज से जुड़ा है, जो इस दिन को यम चतुर्दशी या यम दिवस बनाता है। यमराज केवल प्राण हरने वाले देवता नहीं हैं, वे धर्मराज हैं, जो जीवों के कर्मों का निष्पक्ष मूल्यांकन करते हैं।
यमराज की उत्पत्ति सूर्य देव (विवस्वान) और उनकी भार्या संज्ञा से हुई थी। वे संज्ञा के जुड़वाँ पुत्र थे, जबकि उनकी जुड़वाँ बहन का नाम यमी (जो बाद में यमुना नदी के रूप में प्रसिद्ध हुईं) था। यमराज को धर्मराज इसलिए कहा जाता है क्योंकि वे धर्म के नियमों का पालन करते हुए न्याय करते हैं। मनुष्य मरने के बाद सबसे पहले यमलोक पहुँचता है, जहाँ यमराज उसकी आत्मा को स्वर्ग या नर्क में भेजने का निर्णय लेते हैं। चौदह नाम और आराधना: स्मृतियों में यमराज के चौदह नामों का विशेष उल्लेख है—यम, धर्मराज, मृत्यु, अंतक, वैवस्वत, काल, सर्वभूतक्षय, औदुभ्बर, दघ्न, नील, परमेष्ठी, वृकोदर, चित्र और चित्रगुप्त। इन चौदह नामों से चतुर्दशी के दिन यमराज का तर्पण किया जाता है, जिसमें प्रत्येक नाम से तीन-तीन अंजलि जल अर्पित किया जाता है। स्वरूप और निवास: उनका वाहन महिष (भैंसा) है और वे दण्ड धारण करते हैं, इसलिए उन्हें दण्डधर भी कहते हैं। वे दक्षिण दिशा के दिक्पाल हैं। उनका दरबार उनकी राजधानी संयमनीपुरी में लगता है, जहाँ वे अपनी पत्नी देवी धुमोरना और मुंशी चित्रगुप्त के साथ विराजमान रहते हैं ।
कार्तिक चतुर्दशी की संध्या पर यम दीपदान की प्रथा इस पर्व का केंद्रीय अनुष्ठान है।।दिशा का महत्व: सरसों के तेल का दीया जलाकर उसे घर के बाहर किसी ऊँचे स्थान पर, विशेष रूप से दक्षिण दिशा की ओर मुख करके रखा जाता है। यह दिशा यमराज की मानी जाती है, और यह दीप उन्हें समर्पित किया जाता है।
राजा रंति देव की कथा: इस दीपदान की परंपरा पुण्यात्मा राजा रंति देव से जुड़ी है। अनजाने में हुए एक पाप (भूखे ब्राह्मण को लौटाने) के कारण जब उन्हें नर्क का भय हुआ, तब ऋषियों ने उन्हें कार्तिक चतुर्दशी का व्रत रखने और यमराज को दीप दिखाने की सलाह दी। इस अनुष्ठान से राजा पापमुक्त होकर विष्णु लोक गए। यह कथा दर्शाती है कि यमराज को दीप दिखाने का उद्देश्य उन्हें प्रसन्न करना और अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति पाना है।
चतुर्दशी के दो दिन बाद आने वाला भाई दूज (यम द्वितीया) भी यमराज और यमी के भाई-बहन के प्रेम को समर्पित है। इस दिन बहन के घर भोजन करने से भाई की उम्र बढ़ती है और वह यम की यातना से मुक्त रहता है, जो इस परिवार (सूर्य, यम, यमी) के महत्व को दिवाली के पाँच दिवसीय पर्व पर स्थापित करता है।
नरक चतुर्दशी: प्राग्ज्योतिषपुर का उद्धार और मुक्ति का पर्व यम चतुर्दशी के साथ ही यह तिथि नरक चतुर्दशी के रूप में भी प्रसिद्ध है, जो दैत्यराज नरकासुर के वध से जुड़ी है। यह कथा अत्याचार पर शक्ति की विजय और असहायों की मुक्ति का प्रतीक है। दैत्यराज नरकासुर का उदय और आतंक उत्पत्ति: नरकासुर की उत्पत्ति भगवान विष्णु के वराह अवतार के समय भूमि देवी के गर्भ से हुई थी। वह भौमासुर के नाम से जाना जाता था, लेकिन क्रूर कर्मों के कारण नरकासुर कहलाया। साम्राज्य और क्रूरता: उसने अपनी राजधानी प्राग्ज्योतिषपुर (आधुनिक गुवाहाटी) में स्थापित की। अपनी शक्ति से उसने इंद्र, वरुण, वायु जैसे देवताओं को भी परास्त किया। उसके अत्याचारों की पराकाष्ठा तब हुई जब उसने 16,100 राजकुमारियों और संतों की स्त्रियों को बंदी बनाकर रखा और उनका शोषण किया। उसने अदिति के कुण्डल और देवताओं की मणि भी छीन ली थी।
श्रीकृष्ण और सत्यभामा का विजय अभियान के तहत द्वापरयुग में नरकासुर को एक स्त्री के हाथों मरने का श्राप प्राप्त था। देवताओं और ऋषियों की प्रार्थना पर, द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा (जो पृथ्वी की अवतार थीं) को अपना सारथी बनाया। कार्तिक मास की कृष्ण चतुर्दशी को, श्रीकृष्ण ने सत्यभामा की सहायता से भीषण युद्ध के उपरांत नरकासुर का वध किया। वध के बाद, श्रीकृष्ण ने सभी 16,100 कन्याओं को बंधन से मुक्त किया। समाज में उनके सम्मान की रक्षा के लिए, उन कन्याओं ने श्रीकृष्ण से विवाह करने की इच्छा व्यक्त की। श्रीकृष्ण ने उन्हें स्वीकार कर लिया और उन्हें अपनी पत्नी के रूप में प्रतिष्ठित कर सम्मान प्रदान किया ।
नरकासुर की मृत्यु के कारण, इस दिन को शुभ आत्माओं की मुक्ति और दुष्टता के नाश के रूप में मनाया जाता है।
इस दिन सूर्योदय से पूर्व उबटन लगाकर स्नान (अभ्यंग स्नान) करना अनिवार्य माना गया है। यह स्नान नरक के भय से मुक्ति दिलाता है और व्यक्ति को रूप (सौंदर्य) प्रदान करता है।
विभिन्न। स्थानों पर, विशेष रूप से उत्तर भारत में, इसी दिन हनुमान जयंती भी मनाई जाती है। यह हनुमान जी की शक्ति और पराक्रम को याद करने का दिन है।।कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को विशेष रूप से पश्चिमी राज्यों ( गुजरात) में काली चौदस या भूत पूजा के रूप में भी मनाया जाता है। यह शक्ति की देवी मां काली की पूजा का दिन है। कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी दिन मां काली ने दुष्टों, अत्याचारियों और नरकासुर के सहयोगी असुरों का संहार किया था। यह पूजा बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। काली चौदस की रात को तांत्रिक साधना और भूत पूजा का विशेष महत्व होता है। मां काली की आराधना करने से भक्तों को जादू-टोना, शनि दोष, कर्ज दोष, बेरोजगारी और बीमारियों से मुक्ति मिलती है। यह रात नकारात्मक शक्तियों के प्रभाव को खत्म करने के लिए अत्यंत शक्तिशाली मानी जाती है । काली चौदस की पूजा में काली उरद दाल, हल्दी, हवन सामग्री, देसी घी, नारियल और लाल-पीले रंग की रंगोली का उपयोग किया जाता है। मां काली की मूर्ति को चौकी पर स्थापित कर दीप जलाया जाता है और उनसे शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने का आशीर्वाद मांगा जाता है।कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी एक ऐसा बहुआयामी पर्व है जो हमें कर्म के सिद्धांत (यमराज), न्याय की स्थापना (नरकासुर वध) और शक्ति के आह्वान (काली चौदस) के माध्यम से जीवन की नश्वरता और दिव्यता के बीच संतुलन सिखाता है। यम दीप से लेकर नरकासुर की हार तक, हर अनुष्ठान यह संकल्प दोहराता है कि अंधकार कितना भी घना क्यों न हो, प्रकाश की विजय निश्चित है। यह छोटी दीवाली, हमें अगली अमावस्या पर आने वाली महा-दीवाली के लिए शारीरिक और आत्मिक रूप से शुद्ध करती है।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews #Divya Rashmi News, #दिव्य रश्मि न्यूज़ https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ