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"विखंडित"

"विखंडित"

पंकज शर्मा
नयन नहीं ये,
आत्मा का द्वंद्व है,
एक पर आशा का आलोक,
दूजे पर पीड़ा का आवरण।


​भग्न दर्पण में,
उलझा एक विस्मृत अतीत,
विखंडित प्रतिबिंब,
कथा सुनाता,
अनकहे भावों की,
जिसने मेरे अस्तित्व को,
विभाजित कर दिया।


​इस पार मैं हूँ,
उस पार भी मैं ही हूँ,
पर दोनों के मध्य,
एक अदृश्य दीवार है,
मेरे ही मन की,
जो कभी मिल नहीं पाती।


​अनंत शून्य में,
खोई हुई चेतना,
आकाश को तकती,
ढूँढती खुद को,
उस विखंडित आकाश में,
जहाँ हर कण,
एक कहानी है,
मेरे ही बिखरे हुए अंश की।


​काँच का आवरण,
छल का पर्दा,
सच को ढके,
एक परित्यक्त भाव,
जो विस्मृत है,
पर अब भी जीवित है।


​टूटे प्रेम की,
टूटी हुई किताब,
जिसके पन्ने,
हवा में लहराते हैं,
बिना किसी कहानी के,
बस स्मृतियाँ हैं।


​धुँधली सी तस्वीर,
अनजानी सी परछाई,
जो मुझमें ही समाई है,
जिसे मैं पहचानता हूँ,
पर स्वीकार नहीं कर पाता।


​यह मौन,
यह शून्य,
यह विभाजन,
सब मेरे ही हैं,
मेरी ही कहानी,
मेरे ही दर्द,
जो अब मेरी,
पहचान बन गए हैं।


. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
✍️ "कमल की कलम से"
✍️ (शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान)
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