झूठ को जितना भी चाहे, महिमा मंडित कीजिये,
स्वर्ण अलंकरण से सज़ा, सिर पर चढ़ा लीजिये।झूठ जानता औकात अपनी, खुद ही घुटता रहता,
झूठ को भी एक बार, सच कहने का मौक़ा दीजिये।
झूठ खुद व्यथित है, झूठ बोझ से दबा,
सच कहने को आतुर, पाप बोध से दबा।
भयाक्रांत रहता सदा, सच से रहता डरा,
झूठ छोड़ पाता नही, स्वार्थ लोभ में दबा।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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