ममता की मूरत जगत में
रचना -------
डॉ. रवि शंकर मिश्र "राकेश"
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ममता की मूरत जगत में,
करुणा की है धारा।
स्कंदमाता सदा सहायिनी,
भक्तों का है सहारा॥
सिंह सवारिणि तेजवती,
तेज अपार विराजे।
हृदय लगाकर भक्तों को,
ममता से वो साजे॥
कुंद समान शीतल छाया,
गोदी में है माया।
संग स्कंद के रूप सजी,
शिव-पत्नी श्री राया॥
चार भुजाएं शोभित हैं,
अस्त्र लिये कर बाएँ।
सुगंधित कमल एक हाथ में,
भक्तों को सुखदाएँ॥
जग की पीड़ा हरने वाली,
सत्य-धर्म की रक्षी।
करुणा, शक्ति, प्रेममयी,
भवसागर की नक्षी॥
ज्ञान-ज्योति वह देती है,
मन पावन कर डाले।
वचन, कर्म जब निर्मल हों,
पुण्य फले मतवाले॥
जो भक्त वंदना करता है,
सच्चे मन से नित्य।
बंधन सारे टूटते हैं,
मिलती मुक्ति चिरसत्य॥
हे स्कंदमाता, कर दो कृपा,
जीवन में शुभ छाया।
नवदुर्गा की दिव्य ज्योति,
चरणों में बस माया॥
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