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शिकस्ता साज भी लगता सुहाना है।

शिकस्ता साज भी लगता सुहाना है।

डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•

(पूर्व यू.प्रोफेसर)
शिकस्ता साज भी लगता सुहाना है।
दिले दीवाना में गर सचमुच तराना है।
पुरजिल्लत जिंदगी से तो बेहतर,
बेशक ममात का ही नजराना है।
जीना है तो जिओ मानिंदे रख़्शा ,
अबस ताउम्र धुएँ-सा धुँआना है।
खुदा की नेमत नायाब है जिंदगी,
खुदकुशी जबूँ हर्कते कायराना है।
लैला में अल्लाह का दीदारे क़ैस ,
इबादत है,नहीं बाजिएतिफ्लाना है।
बह्रे बेपायाँ से डूबकर लाए हीरा,
मरजीवा की हिम्मते मरदाना है।
ताबाँ हो शख्सीयत से तमाम दुनिया,
उम्र हर्गिज़ नहीं जिंदगी का पैमाना है।
 
(रख़्शा =आग की लपट। ताबाँ =रौशन। अबस =व्यर्थ। बह्रे बेपायाँ =अथाह समुद्र। बाजिए तिफ्लाना =बच्चों का खेल। )

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