आज की राजनीति: सियासत का सर्कस
सत्येन्द्र कुमार पाठक।
"सियासत का सर्कस: जहाँ नेता रस्सी पर नाचते हैं और जनता तालियाँ बजाती है" आज की भारतीय राजनीति को एक गहरी निराशा और व्यंग्य के साथ प्रस्तुत करता है। यह लेख कई प्रमुख बिंदुओं को उजागर करता है जो समकालीन राजनीति की पहचान बन गए हैं। केंद्रीय रूपक 'सर्कस' और 'रंगमंच' का है। यह इंगित करता है कि राजनीति अब जन सेवा के बारे में नहीं है, बल्कि एक ऐसा प्रदर्शन बन गई है जिसका उद्देश्य जनता का मनोरंजन करना और उन्हें हेरफेर करना है। नेता अब 'जादूगर' और 'कलाकार' हैं जो दर्शकों (मतदाताओं) के लिए प्रदर्शन करते हैं। उनके कार्य ईमानदारी से अधिक दिखावे पर आधारित होते हैं। चुनाव के वादे खोखले और अर्थहीन हो गए हैं। यह एक ऐसे 'वादों के मौसम' का वर्णन करता है जहाँ नेता समाज की सभी समस्याओं (गरीबी, किसान मुद्दे, बेरोजगारी) को हल करने का वादा करते हैं। लेकिन चुनाव खत्म होते ही ये वादे 'पोस्टर की तरह दीवारों से गायब' हो जाते हैं। यह चुनावी वादों और उनके वास्तविक कार्यान्वयन के बीच के बड़े अंतर को दर्शाता है। जनता को भी इस खेल का हिस्सा दिखाया गया है, जो बार-बार ठगे जाने के बावजूद 'उसी उत्साह के साथ' तैयार रहती है।
'दलबदल' की घटना की कड़ी आलोचना की गई है। लेख इसे एक तरह का 'योगा' कहता है, जहाँ नेता 'जनता के हित' के लिए नहीं, बल्कि 'खुद के हित' के लिए पार्टियां बदलते हैं। बार-बार और आसानी से पाला बदलना, दृढ़ सिद्धांतों या विचारधारा की कमी को दर्शाता है। जब कोई नेता दल बदलता है, तो वह अचानक से 'नैतिक ज्ञान' से भर जाता है और अपनी पुरानी पार्टी को भ्रष्ट बताने लगता है, जिसे पाखंडपूर्ण और हास्यास्पद कृत्य के रूप में दर्शाया गया है।
टीवी चैनलों पर होने वाली बहसें ज्ञानवर्धक कम और मनोरंजन का साधन ज्यादा बन गई हैं। लेख इन बहसों को 'अखाड़े में पहलवानों' की लड़ाई की तरह बताता है, जहाँ चिल्लाना, अपशब्दों का प्रयोग करना और अपनी बात को थोपना ही रणनीति है। जनता इस तमाशे को एक क्रिकेट मैच की तरह देखती है। यह दर्शाता है कि सार्थक संवाद की जगह आक्रामक टकराव ने ले ली है।
मीडिया, जिसे कभी 'लोकतंत्र का चौथा स्तंभ' कहा जाता था, अब अपनी स्वतंत्रता खो चुका है। लेख के अनुसार, कुछ चैनल नेताओं की 'आरती उतारते हैं', जबकि कुछ अन्य सिर्फ विरोध करते हैं। मीडिया अब समाचार दिखाने के बजाय 'राजनीतिक मनोरंजन' का एक माध्यम बन गया है, जहाँ हर शाम एक नया नाटक होता है।आज की राजनीति दिखावे, अवसरवाद, टकराव, और मीडिया के पक्षपात से भरी हुई है। यह दर्शाता है कि सच्चे लोकतंत्र की भावना को एक ऐसे नाटक ने बदल दिया है जहाँ नेता खेल खेलते हैं और जनता सिर्फ दर्शक बनी रह जाता है ।
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