"क्षण का रहस्य"
क्षण—
एक अदृश्य तरंग,
जो समय के महासमुद्र को
अचानक विदीर्ण कर देती है।
नयनों का संयोग,
हृदय का विच्छेदन,
वज्र सा आघात और अमृत सा आलोक—
सब कुछ उसी एक क्षण में घटित।
फिर शेष बचता है—
लंबा खिंचता हुआ समय,
मनुहार और विषाद,
अश्रु की धारा और संकल्प का निर्वाह।
गौतम की करुणा भी उसी क्षण उपजी थी
जब एक पीड़ित वृद्ध ने
उसके राजसी भ्रम को विदीर्ण किया।
बाकी का जीवन तो
तप और त्याग की तप्त संहिता मात्र।
धर्मराज की निष्ठा भी उसी पल डगमगाई थी
जब पासा ने उन्हें असहाय कर दिया।
बाकी का काल तो
रणभूमि की ध्वनियों और रक्तधाराओं का
दृश्य विन्यास भर था।
रावण की अधीर चेष्टा,
सीता का हरण—
एक क्षण की दुष्प्रेरणा,
जिसने अनंत शताब्दियों तक
रामकथा को मुखरित कर दिया।
जैसे नभ में तड़ित—
क्षणिक, तीक्ष्ण, विद्युन्मयी,
पर उसके पश्चात
केवल गगनविस्तार की नीरव गड़गड़ाहट।
क्षण,
वह गूढ़ बिंदु है
जहाँ नियति स्वयं को प्रकट करती है—
एक दृष्टि, एक निर्णय,
एक आघात, एक विस्मय।
और फिर—
शेष जीवन
उस एक क्षण की परिधि में
भटकता हुआ,
जैसे दीपक की लौ
तेल समाप्त होने तक
अपनी स्मृति से ही प्रकाशित रहती हो।
. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
✍️ "कमल की कलम से"✍️ (शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान)
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