सबकुछ सिखा हमने, न सीखी होशियारी,सच है दुनियावाले, हम हैं अनाड़ी
— डॉ. राकेश दत्त मिश्र
जीवन की इस लंबी यात्रा में इंसान बहुत कुछ सीखता है। कोई दुनियादारी सीखता है, कोई व्यापार की कला, कोई राजनीति की चालाकियाँ तो कोई रिश्तों में लाभ-हानि का हिसाब। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो सबकुछ सीखने के बाद भी एक चीज़ नहीं सीख पाते—होशियारी।
वे झूठ बोलने की कला, धोखा देने की तकनीक, दूसरों के कंधों पर चढ़कर आगे बढ़ने की नीति, और छल-बल से फायदे उठाने का तरीका नहीं सीख पाते। ऐसे लोग दुनिया की नजरों में अक्सर "अनाड़ी" कहलाते हैं।
मेरा यही अनुभव है। मैंने भी जीवन में बहुत कुछ सीखा, बहुत संघर्ष किए, बहुत ऊँच-नीच देखी, लेकिन छल-कपट और झूठ की होशियारी कभी नहीं सीखी।
लोग कहते हैं—"आज के जमाने में अगर चालाकी नहीं सीखी तो पीछे रह जाओगे।" लेकिन मेरा मानना है कि अगर इंसानियत खो दी तो आगे निकलने का क्या फायदा?
1. बदलता समाज और स्वार्थ की दीवारें
- आज का समाज तेजी से बदल गया है।
- रिश्ते अब रक्त के बंधन से ज्यादा स्वार्थ के धागों से बंधे दिखाई देते हैं।
- परिवारों में "मेरा हिस्सा, तुम्हारा हिस्सा" की बातें आम हो गई हैं।
- दोस्ती भी अब लाभ और हानि के तराजू पर तोली जाती है।
- समाज में "तुम मेरे लिए क्या कर सकते हो?" यह सवाल रिश्तों की नींव बन चुका है।
ऐसा नहीं है कि पहले जमाने में स्वार्थ नहीं था। लेकिन तब भी रिश्तों और समाज की मजबूती इतनी थी कि स्वार्थ दबकर रह जाता था। आज तो स्थिति यह है कि हर इंसान अपने छोटे-छोटे फायदे के लिए भी रिश्ते तोड़ने से नहीं हिचकता।
2. दुनियादारी और होशियारी की परिभाषा
- दुनियादारी को लोग "समझदारी" मानने लगे हैं।
- झूठ बोलना "डिप्लोमेसी" कहलाता है।
- दूसरों को छलना "स्मार्टनेस" कहलाती है।
- रिश्वत देना-लेना "मैनेजमेंट" कहलाता है।
- दूसरों का हक छीन लेना "काबिलियत" समझा जाता है।
- यही आज की होशियारी है।
- इसके विपरीत, अगर कोई इंसान सच बोले, ईमानदारी से जिए, सबको अपना माने, दूसरों की मदद करे—तो लोग उसे बेवकूफ समझते हैं।
यही कारण है कि मैंने अपने अनुभव से कहा:
“सबकुछ सिखा हमने, न सीखी होशियारी। सच है दुनियावाले, हम हैं अनाड़ी।”
3. भोलेपन का मजाक
- भोलेपन को लोग कमजोरी मानते हैं।
- कोई भरोसा करता है तो लोग उसे कहते हैं—"अरे, तुम तो सीधे-सादे हो, कोई भी तुम्हें बेवकूफ बना देगा।"
- कोई दिल से मदद करता है तो लोग कहते हैं—"देखो, इसके पास दिमाग नहीं है, सबको अपनापन दे देता है।"
- कोई दूसरों के दुख में साथ देता है तो लोग कहते हैं—"भई, तुम्हें दुनिया की समझ नहीं है।"
- लेकिन असली सवाल यह है कि भोला होना क्या वाकई कमजोरी है? या फिर यही असली इंसानियत है?
4. व्यक्तिगत अनुभव
- मेरे अपने जीवन में यह अनुभव बार-बार सामने आया।
- जब मैंने किसी को अपना समझा, तो बदले में उसने मुझे इस्तेमाल किया।
- जब मैंने सच्चाई बोली, तो लोगों ने मुझे मूर्ख कहा।
- जब मैंने मदद की, तो लोग कृतज्ञ होने के बजाय अहंकारी हो गए।
- जब मैंने साथ दिया, तो बदले में पीठ में छुरा भोंका गया।
इन सबके बावजूद आज भी मेरा दिल यही कहता है—
"लोग चाहे कुछ भी कहें, मैं सबको अपना ही मानूँगा। क्योंकि अगर यह अनाड़ीपन है, तो मैं इस अनाड़ीपन को छोड़ना नहीं चाहता।"
5. धर्म और शास्त्रों की दृष्टि
- हमारे शास्त्रों ने भी यही कहा है कि सच्चाई और भोलेपन में ही जीवन का असली सुख है।
- भगवान राम ने हमेशा सच्चाई और धर्म का मार्ग चुना, भले ही उन्हें वनवास झेलना पड़ा।
- युधिष्ठिर ने सत्य के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया।
- महात्मा गांधी ने अहिंसा और सत्य को ही अपना सबसे बड़ा हथियार बनाया।
इन महापुरुषों को भी लोग अक्सर "अनाड़ी" कहते थे। लेकिन अंततः इतिहास ने उन्हें ही सबसे महान सिद्ध किया।
6. बेवकूफ कौन है?
- अब सवाल यह उठता है कि असली बेवकूफ कौन है?
- क्या वह जो दूसरों को धोखा देकर जीता है?
- या वह जो सच्चाई और इंसानियत से जीता है?
- जो इंसान सिर्फ अपने लिए जीता है, वह शायद समाज की नजर में होशियार हो, लेकिन आत्मा की नजर में सबसे बड़ा मूर्ख है।
- और जो इंसान सबको अपना मानकर जीता है, वह भले ही अनाड़ी कहलाए, लेकिन उसकी आत्मा हमेशा गर्व से कहेगी—"तुमने इंसानियत को जिया।"
7. आधुनिक समाज को क्या चाहिए?
आज के समाज को सबसे ज्यादा जरुरत है
- —ईमानदार लोगों की।
- सच्चाई से जीने वालों की।
- भरोसा करने और दिल से अपनाने वालों की।
अगर हर कोई सिर्फ स्वार्थ देखेगा, तो समाज टूट जाएगा।
अगर हर कोई केवल "मेरा-तुम्हारा" देखेगा, तो इंसानियत मर जाएगी।
8. अनाड़ीपन की ताकत
हाँ, मैं मानता हूँ कि मैं अनाड़ी हूँ।
क्योंकि मैं सबको अपना मानता हूँ।
क्योंकि मैं झूठ और छल की होशियारी नहीं जानता।
क्योंकि मैं दूसरों के दुख में उनके साथ खड़ा होता हूँ।
यह अनाड़ीपन मेरी कमजोरी नहीं, मेरी ताकत है।
दुनिया की नजर में भले ही मैं अनाड़ी हूँ, लेकिन मेरे लिए यह गर्व की बात है।
मैंने सीखा है कि सच्चाई और भोलेपन के साथ जीना ही असली जीवन है।
आज भले ही समाज स्वार्थ और होशियारी को महत्व दे, लेकिन कल इतिहास उन्हीं लोगों को याद रखेगा जिन्होंने इंसानियत को जिया।
इसलिए मैं गर्व से कहता हूँ:
“सबकुछ सिखा हमने, न सीखी होशियारी। सच है दुनियावाले, हम हैं अनाड़ी।”
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