यह कैसा संविधान है?
जाति धर्म में बाँट रहा जो, सनातन की पहचान को,
क्यों स्वीकार किया राष्ट्र ने, ऐसे खंडित संविधान को?
मुस्लिम को बस मुस्लिम कहता, ईसा भी ईसा ही रहता,
अगडे पिछड़े सवर्ण दलित में, सनातन की सन्तान को।
आरक्षण की बैसाखी देकर, माना कुछ का भला किया,
कुंठाओं के भँवर फँसा दिया, प्रतिभाओं के सम्मान को।
अयोग्य निकम्मे शीर्ष पदों पर, आरक्षण के बलबूते पर,
योग्यतायें सिसक रही हैं, अपनी सफल पहचान को।
ब्राह्मण को पन्डत कह दो, या बनिए का करो उपहास,
किसी ख़ास पर मुँह खोला तो, तैयार रहो अपमान को।
सनातन में सब भाई बन्धु, विशेषज्ञ सभी अपने फ़न के,
जाति का नहीं कहीं महत्व, सम्मान मिला था काम को।
सबके साझा इष्ट देव थे, साझा सबके पर्व त्योहार,
संविधान ने बाँट दिया है, वाल्मीकि और राम को।
भ्रष्टाचार की वैतरणी में, नग्न नहाने को सब आतुर,
निज स्वार्थ में आग लगाते, भारत के स्वाभिमान को।
है आज़ादी सभी दलों को, सनातन पर प्रहार करें,
आतंकी को आतंकी कहने से, चोट लगे संविधान को।
आरक्षण में भी आरक्षण हो, माँग सभी आरक्षित की,
नेताओं को स्वार्थ दिखता, पुनः सत्ता में अरमान को।
युद्ध क्षेत्र में नाकाराओं संग, युद्ध नहीं जीते जाते हैं,
इतिहास साक्षी वीर समर्पित, राष्ट्र के अभिमान को।
अ कीर्ति वर्द्धन
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