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“भद्रकाली धाम इटखोरी में गूँजा हिंदू राष्ट्र का स्वर – दो हजार से अधिक लोगों की भागीदारी से संपन्न हुई संगोष्ठी”

“भद्रकाली धाम इटखोरी में गूँजा हिंदू राष्ट्र का स्वर – दो हजार से अधिक लोगों की भागीदारी से संपन्न हुई संगोष्ठी” 

इटखोरी (चतरा, झारखंड)।
जय जगन्नाथ जी – जय गुरुदेव के मंगलमय उद्घोष के साथ आज झारखंड प्रांत के चतरा जिले स्थित प्राचीन एवं ऐतिहासिक भद्रकाली मंदिर प्रांगण, इटखोरी में हिंदू राष्ट्र संगोष्ठी का सफल आयोजन संपन्न हुआ। इस संगोष्ठी ने न केवल सनातन धर्मावलंबियों को एकत्र किया बल्कि समाज के विभिन्न वर्गों और समुदायों को एकजुट कर हिंदू राष्ट्र निर्माण के अभियान में एक नई चेतना भी जगाई।

🔸 तैयारी और सहभागिता


संगोष्ठी की सफलता का श्रेय योजनाबद्ध तैयारी और सतत प्रचार-प्रसार को जाता है। गया पितृपक्ष मेले में आए श्रद्धालुओं से विशेष संवाद स्थापित कर उन्हें आमंत्रित किया गया था। साथ ही, पंद्रह दिनों तक आस-पास के गांवों और कस्बों में व्यापक प्रचार किया गया। गुरुदेव के बताए मार्गदर्शन का अनुसरण करते हुए कार्यकर्ताओं ने जन-जन तक इस अभियान का संदेश पहुँचाया। परिणामस्वरूप, आज की संगोष्ठी में दो हजार से भी अधिक लोगों की उपस्थिति रही, जो अपने आप में उल्लेखनीय उपलब्धि है।

गया से विशेष रूप से चार गाड़ियों में कुल चौबीस लोग शामिल हुए— जिनमें क्षत्रिय, ब्राह्मण, पंडा समाज और वैश्य समाज के प्रतिनिधि थे। स्थानीय स्तर पर भी सभी वर्ण और जातियों के साथ-साथ आदिवासी समाज ने भी संगोष्ठी में उत्साहपूर्वक भाग लिया, जिससे कार्यक्रम की सामाजिक एकता और भी सशक्त हुई।

🔸 चर्चा के प्रमुख विषय

संगोष्ठी में कई महत्वपूर्ण विषयों पर गहन विमर्श हुआ, जिनमें प्रमुख थे –

  • साप्ताहिक गोष्ठी का नियमित आयोजन : ताकि सनातन विचार और चेतना का सतत प्रवाह बना रहे।
  • वैदिक सनातन हिंदू धर्म की परिभाषा और वर्तमान स्थिति : इसकी जड़ों, महत्व और वर्तमान चुनौतियों पर विचार-विमर्श।
  • सनातन धर्म का पोषण, संवर्धन और पुनर्स्थापना : किस प्रकार हम समाज के स्तर पर इसे जीवंत बनाए रख सकते हैं।
  • हिंदू और हिंदुत्व का स्वरूप : इसका व्यापक दृष्टिकोण और व्यवहारिक अर्थ।

🔸 संगोष्ठी का संकल्प

संगोष्ठी का समापन एक सामूहिक संकल्प के साथ हुआ :

🛕🚩 “सनातनी मान-बिंदुओं की रक्षा के लिए हम सभी पूर्ण समर्पण के साथ कार्य करेंगे। हिंदू राष्ट्र अभियान को मार्गदर्शनानुसार धरातल पर उतारते हुए निरंतर संगठित कार्यक्रमों के माध्यम से इसे गति देंगे।” 🚩🛕

🔸 कार्यक्रम का महत्व

वक्ताओं ने कहा कि वर्तमान समय में जब सनातन संस्कृति और परंपराओं पर अनेक चुनौतियाँ मंडरा रही हैं, तब आवश्यक है कि समाज संगठित होकर धर्म, संस्कृति और राष्ट्र के संरक्षण व संवर्धन में अपना योगदान दे। संगोष्ठी ने यह संदेश स्पष्ट किया कि अब केवल चिंतन नहीं, बल्कि संगठन और क्रियान्वयन ही समय की मांग है।

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