बोडोलैंड की समस्या , मोदी और हिमंता कुमार विश्वास
डॉ राकेश कुमार आर्य
असम में बोडो समुदाय के द्वारा किया गया बोडोलैंड आंदोलन पिछले कई दशकों से सुर्खियों में रहा है। वास्तव में बोडो लोगों ने अपने अस्तित्व की पहचान के लिए इस आंदोलन को प्रारंभ किया था। ध्यान रहे कि इन बोडो लोगों की पहचान को बाहरी प्रवासियों ने आकर धुंधला कर दिया था। उनकी पैतृक भूमि पर इन बाहरी प्रवासियों का धीरे-धीरे कब्जा हो गया था। अपनी ही जमीन पर और अपने ही घर में ये बोडो लोग अल्पसंख्यक हो गए। उसके बाद इन पर एक दूसरे समुदाय ने अपनी तानाशाही चलानी आरंभ की।
अपने अस्तित्व और अपनी पहचान की रक्षा के लिए तब बोडो लोगों ने आंदोलन का मार्ग अपनाया। अपने आंदोलन के माध्यम से इन लोगों ने यह स्पष्ट कर दिया कि उनका यह आंदोलन अपनी पहचान की रक्षा, राजनीतिक और आर्थिक अधिकारों की स्थापना को लेकर है। जिसमें भाषा और संस्कृति के संरक्षण का विषय भी सम्मिलित है। आजादी से भी पहले अंग्रेजों के शासनकाल में कभी यहां पर एक बाहरी समुदाय ने तेजी से जाकर बसना आरंभ किया था। उस समय असम का बहुत सा जंगल वीरान पड़ा हुआ था। तब नेहरू की अदूरदर्शी सोच ने इस संकट को और भी गहराने दिया था। कांग्रेस के नेता नेहरू ने तब कहा था कि खाली स्थान की ओर हवा अपने आप ही भाग लेती है। सावरकर ने नेहरू की इस सोच और नीति का विरोध किया था।
कांग्रेस की यह प्रवृत्ति रही है कि वह अपने नेताओं की अदूरदर्शी सोच का खुलासा होने के उपरांत भी उसी के साथ खड़ी रहती है। वह नहीं चाहती कि किसी नीति के गलत परिणाम आने के बाद इतना साहस दिखाया जाए कि अतीत में जो कुछ हुआ वह गलत था और अब हम सामने खड़ी समस्या का राष्ट्रहित में उचित समाधान करना चाहेंगे।
अपनी इसी सोच के कारण कांग्रेस ने बोडो लोगों की वास्तविक समस्या की ओर से आंख बंद कर लीं और उन्हें सामने खड़ी समस्या से अकेले जूझने के लिए उन्हीं के भाग्य पर छोड़ दिया। बोडो लोगों के सामने यदि खाई थी तो पीछे कुंआ था। ऐसी स्थिति में उन्होंने अपने अस्तित्व को बचाने के लिए आंदोलन का मार्ग पकड़ा। असम राज्य में स्थित बोडोलैंड की यह समस्या 1960 से सुलगनी आरंभ हुई। 1980 के दशक में यह समस्या तेजी से बढ़ी। परिणाम यह निकला कि बोडोलैंड की मांग के समर्थन में चल रहा आंदोलन हिंसक हो गया। तब 2003 में एक समझौता हुआ। जिसके परिणामस्वरूप जो संगठन अलग बोडो राज्य की मांग को लेकर हिंसक आंदोलन कर रहे थे, उन्होंने हिंसा के रास्ते को छोड़कर राष्ट्र की मुख्यधारा के साथ जुड़कर काम करने के प्रति वचनबद्धता व्यक्त की। सरकार ने स्वायत्त बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद का गठन कर बोडो निवासियों को यह आभास कराया कि उनकी उचित मांगों का सरकार उचित सीमा तक समाधान करने के लिए तत्पर है। यद्यपि यह मौलिक प्रश्न इसके उपरांत भी निरुत्तरित रह गया कि बोडो लोग जिस प्रकार अवैध प्रवासन और सांस्कृतिक मिश्रण के कारण अपनी जातीय पहचान के लिए संकट अनुभव कर रहे थे, उस संकट का समाधान कैसे होगा ?
बोडो लोगों को अपनी पैतृक भूमि पर अपना नियंत्रण स्थापित करना था। उन्हें इस प्रकार की सुरक्षा की एक भावना अपने चारों ओर विकसित होते हुए देखनी थी, जिसके अंतर्गत वे अपनी परंपराओं, धार्मिक रीति रिवाजों तथा अपनी सभ्यता और संस्कृति को बचाने में सफल हो सकते हैं। इसके उपरांत भी लोग आंदोलन को छोड़कर राष्ट्र की मुख्यधारा के साथ एक बार चलना चाहते थे।
कांग्रेस देश में तुष्टिकरण की नीति की जनक रही है। यदि कहीं पर उसकी नीतियों के कारण बहुसंख्यक समाज को लाभ पहुंच रहा हो तो वह ऐसे लाभ के प्रति अपने ' राजधर्म' का परिचय देते हुए या तो मौन हो जाती है या कोई ऐसी नीति अपना लेती है जो बहुसंख्यक समाज के लिए घातक हो। यही कारण था कि कांग्रेस अपने शासनकाल में कभी बोडो निवासियों की समस्याओं को उचित नहीं कह पाई।
यह बहुत ही सौभाग्य की बात है कि इस समय असम का नेतृत्व हिमांताकुमार विश्वास के रूप में एक ऐसा चेहरा कर रहा है जो अपनी साहसिक कार्य शैली के लिए जाना जाता है। उनकी निर्णायक क्षमता अतुलनीय है। बड़े से बड़े संकट के समक्ष भी वे सीना तानकर खड़े हो जाते हैं। यही कारण है कि इस सुदूरवर्ती पूर्वोत्तर राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में वे लगभग सारे देश में जाने जाते हैं।
हमारे देश के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी भी "बोडो समस्या" का स्थाई समाधान चाहते हैं। प्रधानमंत्री मोदी बोडो निवासियों के बारे में वह सब कुछ जानते हैं जो अब से पूर्व के प्रधानमंत्री या तो जान नहीं पाए थे या उन्होंने जानने का प्रयास नहीं किया था। कश्मीर की विवादित धारा 370 सहित अनेक ऐसी समस्याएं रही हैं, जिन्हें पूर्व के प्रधानमंत्री सुलझाने के प्रति गंभीर नहीं दिखाई दिए थे। उनकी मान्यता थी कि यह समस्या मेरे कार्यकाल में सुलझ नहीं पाएगी। आज हमारे देश भारत के लिए कई प्रकार की चुनौतियां अपने पड़ोसी देशों से मिलती हुई दिखाई दे रही हैं।आज जब सारा विश्व समाज चाहे पड़ोसी म्यांमार, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका और अफगानिस्तान हो या दूरस्थ सूडान, यमन, इज़राइल–फिलिस्तीन सत्ता और राजनीतिक व्यवस्थाओं से असंतोष के चलते युवाओं के भीतर असंतोष का भाव व्याप्त है। तब अपने बोडोलैंड में वहां के मुख्यमंत्री और देश के प्रधानमंत्री व गृहमंत्री मिलकर जिस प्रकार के शान्ति प्रयास कर रहे हैं, उसके अच्छे परिणाम हमें देखने को मिल रहे हैं। सोशल मीडिया पर वहां के पृथकतावादी तत्वों के जुलूस को दिखाकर देश में यह भ्रम फैलाने का प्रयास किया जा रहा है कि ये लोग भारत के विरोध में और विशेष रूप से प्रधानमंत्री के विरोध में नारे लगा रहे हैं। जबकि यह सच नहीं बताया जा रहा है कि ये वही लोग हैं, जो असम के बोडो क्षेत्र में आकर यहां के मूल निवासियों के लिए कभी समस्या बने थे और आज भी बने हुए हैं। यदी आज उस समस्या का उपचार हो रहा है (और उससे पीड़ा रोग को हो रही है ना कि रोगी को ) तो उस ,पीड़ा को भी इस प्रकार दिखाया जाना देशद्रोह से कम नहीं है कि यह पीड़ा एक दिन हमारे देश के प्रधानमंत्री और असम के मुख्यमंत्री को ही उखाड़ कर फेंक देगी। इस समय देश में राजनीतिक विभ्रम फैलाकर सत्ता हथियाने के लिए कई गिद्ध भांति भांति के प्रयास कर रहे हैं। उनसे देशवासियों को सावधान रहने की आवश्यकता है। ध्यान रहे की रोग का सही उपचार हो रहा है । हमें इसके अच्छे परिणाम की कामना करनी चाहिए।
- (लेखक डॉ राकेश कुमार आर्य सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं )
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