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"आगम विद्या"

"आगम विद्या"

प्राचीन समय की बात है। वैशाली नगर में सुदामा नाम का एक गरीब विद्वान ब्राह्मण रहता था। किसी तरह पूजा-पाठ करवा कर अपना जीवन यापन करता था। कभी-कभी तो उसे भूखे पेट भी सोना पड़ जाता था। पंडित जी की विद्वता से प्रभावित होकर रामनगर निवासी जनक पंडित ने अपनी पुत्री का विवाह उनसे कर दिया। उन्होंने दहेज के रूप में बहुत सी सम्पत्ति पंडित जी को दिया। दोनों पति-पत्नी हँसी-खुशी जीवन बिताने लगे। धीरे-धीरे जब सारी सम्पत्ति समाप्त हो गयी तो पंडित जी के समक्ष फिर वही समस्या आ खड़ी हुई। आखिर एक दिन पंडिताइन ने कहा कि कब तक हमलोग इस तरह की जिन्दगी जीते रहेंगे। आप गाँव से बाहर जाकर नौकरी की तलाश क्यों नहीं करते? मेरी मोह - ममता को त्यागकर आप नौकरी की तलाश में जायें ।

पत्नी की बात सुनकर पंडित जी का स्वाभिमान जाग उठा। वे उसी समय नौकरी की तलाश में निकल पड़े। चलते-चलते पंडितजी एक पाठशाला में पहुंचे । पंडित जी स्कूल के गुरुजी से विनती करने लगे कि कोई भी नौकरी मुझे दीजिए। मैं मन लगाकर काम करूँगा। बदले में मुझे दो वक्त की रोटी चाहिए। गुरुजी को पंडित जी के ऊपर तरस आ गया । उनके पाठशाला में बच्चों को पानी पिलाने के लिए एक व्यक्ति की जरूरत थी। उन्होंने पंडितजी को यह नौकरी दे दिया। पंडित जी मन लगाकर अपना काम करने लगे । धीरे-धीरे समय बीतने लगा। करीब एक वर्ष बीत जाने पर पंडित जी को अपनी पत्नी की याद आयी। वे स्कूल से छुट्टी लेकर घर की ओर चल पड़े।

पंडित जी जब घर पहुंचे तो पत्नी को द्वार पर ही इंतजार करते पाया । पंडिताइन ने मुस्कुराते हुए अपने पति का स्वागत किया। अपने पति से शिकायत भरे लहजे में बोली, " स्वामी, आप तो मुझे बिल्कुल ही भूल गये थे। इतने दिनों के बाद लौटे हैं तो अवश्य ही मेरे लिए ढेर सारा रूपया लाए होंगे। पत्नी की बात सुनकर पंडित जी थोड़ा मुस्कुराए और बोले, "भाग्यवान, मैं रूपया कमाने नहीं बल्कि 'आगम विद्या' सीखने गया था।" पति की बात सुनकर वह काफी निराश हो गयी। वह पति से पूछी कि यह कौन सी विद्या है। पंडितजी बोले कि इस विद्या के प्रभाव से मैं भूत एवं वर्तमान की बातें बता सकता हूँ। चाहो तो तुम मेरी परीक्षा ले सकती हो। इतना कहकर पंडितजी घर से बाहर चले गये ।

पंडित जी चुपके से घर के पिछवाड़े में छिपकर बैठ गये और यह देखने लगे कि पंडिताइन क्या-क्या करती है। पंडित जी के बाहर जाने के बाद वह खाना बनाने लगी। आटा गूंधकर उसने सात रोटी बनाई । थोड़ी देर के बाद पंडितजी स्नान करके भोजन करने आये। पंडिताइन ने पंडितजी से बोली , "स्वामी ,आप अपनी विद्या का चमत्कार दिखाइए और यह बताइए कि मैंने आज खाने में क्या बनाया है?" पंडिताइन को मूर्ख बनाने के लिए उन्होंने यूँ ही आँख मूंदकर मंत्रोचारण किया। कुछ देर मंत्रोचारण करने के उपरान्त वे बोले , " सात सतन्ते, रोटी बनन्ते"-अर्थात् तुमने सात रोटियाँ बनायी है। पति की बात सुनकर वह आश्चर्यचकित रह गयी। उसे विश्वास हो गया कि उसके पति ने अवश्य ही 'आगम विद्या' सीखी है। पंडिताइन ने यह बात सारे गाँव में फैला दी कि उसके पति "आगम विद्या" जानते हैं।

एक दिन की बात है। एक धोबी का गदहा खो गया।वह दौड़ा - दौड़ा पंडित जी के पास आया और बोला , "पंडित जी, मेरा गदहा नहीं मिल रहा है।आप अपनी "आगम विद्या "से पता लगाकर बताइए कि वह कहाँ है? पंडित जी बड़ी मुश्किल में पड़ ‌गए। उन्होंने कहा कि ठीक है तुम शाम को आओ तो बता देंगे।

शाम को पंडित जी शौच क्रिया के लिए जंगल की तरफ गए। सहसा उनकी नजर जंगल में चर रहे धोबी के गदहे पर पड़ी। वे शौच क्रिया से निवृत्त होकर घर पहुंचे तो धोबी को इंतजार करते पाया। पंडित जी बोले कि तुम बैठो मैं मंत्रोचारण करके तुम्हारे गदहे का पता लगाता हूं। थोड़ी देर मंत्रोचारण करने के उपरान्त पंडित जी बोले :-
"सात सतन्ते, रोटी बनन्ते,गदहा जंगल बीच चरन्ते ।"
पंडित जी की बात सुनकर वह दौड़ा-दौड़ा जंगल पहुँचा। वहाँ उसे गदहा चरता हुआ मिल गया । गाँव लौटकर वह पंडित जी की जय जयकार करने लगा ।

पंडित जी की इस अनुपम विद्या की चर्चा राजा तक पहुँच गयी। राजा ने पंडित जी को अपने दरबार में बुलवा भेजा। राजा के बुलावा पर वे एकाएक दुःखी हो उठे। वे सोंचने लगे कि अब तो मेरी पोल खुल जाएगी। लेकिन राजा का आदेश वे ठुकरा भी नहीं सकते थे इसलिए मन मसोसकर वे राजा के दरबार में पहुंचे। राजा ने उनके रहने एवं खाने का प्रबंध राजमहल में ही करवा दिया। वे राजसी जीवन व्यतीत करने लगे।

एक दिन राजा और पंडित जी बाग की सैर करने निकले। सैर करने के दौरान ही राजा ने अपनी मुट्ठी में एक कीड़े को कैद कर लिया और वे पंडित जी से बोले, "बताइए पंडित जी, मेरी मुट्ठी में क्या है?" राजा की बात सुनकर पंडित जी घबरा उठे। वे सोंचने लगे कि आज मेरे प्राण नहीं बचेंगे। वे अपने दिमागी घोड़े को दौड़ाने लगे। सहसा उनके दिमाग में यह बात आई कि बाग-बगीचे में कीट-पतंगा ही ज्यादा मिलते है इसलिए हो सकता है कि कोई कीट पतंगा ही राजा की मुट्ठी में कैद हो गया होगा। यही सोंचकर वह राजा से बोला :-

"सात सतन्ते, रोटी बनन्ते, गदहा जंगल बीच चरन्ते हाथ में कीट पतंगा फसन्ते ।"

पंडित जी की बात सुनकर राजा ने प्रसन्न होकर ढेर सारे उपहार दिए ।
एक दिन रानी का गिरमल हार चोरी चला गया। राजमहल में कोहराम मच गया। राजा ने फौरन पंडित जी को बुलवा भेजा। पंडित जी दौड़े-दौड़े राजदरबार में पहुँचे । राजा ने कहा, "पंडित जी, किसी ने रानी का गिरमल हार चुरा लिया है। आप अपनी विद्या से यह पता लगाकर बताइए कि हार किसने चुराया है?" राजा की बात सुनकर पंडित जी सोंचने लगे कि अभी तक तो ईश्वर की कृपा से किसी तरह बचते आ रहे थे लेकिन इस बार बचने की कोई संभावना नहीं है। वे राजा से बोले, " महाराज मुझे एक दिन का समय दिया जाय।" राजा ने पंडित जी को एक दिन का समय दे दिया।
घर आकर पंडित जी चादर तान कर सो गए। पंडिताइन जब खाने के लिए पूछी तो वे बोले कि मेरी तबियत खराब है। पंडित जी की आँखों की नींद गायब हो चुकी थी। वे नींद का आह्वान करने लगे


" निन्दि‌या ओ निन्दिया ,आओ रे निन्दिया,
होतऊ बिहनिया तो जतऊ परनिया ।"


राजा के यहाँ निन्दिया नाम की एक नौकरानी थी जो पंडितजी की पड़ोसन थी। पंडित जी अपनी बात को बार-बार दोहरा रहे थे। निन्दिया ने जब पंडित जी के मुख से अपना नाम सुनी तो वह घबरा उठी। रानी का हार उसने ही चुराया था। वह दौड़ी- दौड़ी पंडित जी के पास पहुंची और बोली , " पंडित जी आप मुझे बचा लीजिए। आपने अपनी विद्या से मेरा नाम जान चुके हैं। मैंने ही रानी का हार चुराया है। यदि राजा को आप मेरा नाम बता देंगे तो मुझे फाँसी लग जायेगी। पंडित जी निन्दिया की बात सुनकर मन ही मन काफी प्रसन्न हुए। वे नौकरानी से बोले, "ठीक है, मैं राजा से तुम्हारा नाम नहीं कहूँगा। तुम उस हार को राजमहल के नाली में छिपा देना ।
अगले दिन पंडित जी दरबार में उपस्थित हुए । पंडित जी अपना पतरा-पोथी निकालकर मंत्रोचारण करने लगे। कुछ देर मंत्रोचारण करने के बाद पंडित जी बोले , "महाराज अब मेरी आगम विद्या का प्रभाव नष्ट होने जा रहा है। गिरमल हार का पता बताने के बाद यह विद्या नष्ट हो जाएगी। राजा ने कहा कि कोई बात नहीं। आप पहले हार का पता बताइए । राजा की बात सुनकर पंडित जी बोले,


" सात सतन्ते, रोटी बनन्ते, गदहा जंगल बीच चरन्ते । हाथ में कीट पतंगा फसन्ते, गिरमल हार नाली में गिरन्ते ।"


इतना सुनते ही राजा ने नौकरों को आदेश दिया कि नाली से हार ढूंढ कर लाओ। सही में हार नाली में मिला। राजा ने खुश होकर पंडित जी को ढेर सारा धन देकर विदा किया । पंडित जी अपने गाँव लौटकर सुखीपूर्वक जीवन बिताने लगे।


इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि मुसीबत की घड़ी में घबराना नहीं चाहिए। अपने विवेक को केन्द्रित कर मुसीबत से छुटकारा पाने का उपाय ढूँढ़‌ना चाहिए। मुसीबत से घबराने वाले लोग कभी भी सफलता की सीढ़ी नहीं चढ़‌ पाते। बुद्धिमानी से बड़े-बड़े संकट को भी टाला जा सकता है। इस कहानी में पंडित जी अपनी बुद्धिमानी एवं चतुराई से ही अपनी मुसीबतों पर विजय पाते रहे। इसलिए हमें भी चाहिए कि अपनी समस्याओं का समाधान बुद्धि‌मानी पूर्वक निकालें |




➡️ सुरेन्द्र कुमार रंजन

( स्वरचित एवं अप्रकाशित लघुकथा)
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