आर्य प्रतिनिधि सभा गौतम बुध नगर द्वारा शहीद भगत सिंह के जन्म दिवस पर आयोजित ऐतिहासिक कार्यक्रम हुआ संपन्न

ग्रेटर नोएडा। अमृत महोत्सव के इस काल में ऋषि दयानंद की 200 वीं जयंती और आर्य समाज के 150 वें स्थापना दिवस को समर्पित रहा ' स्वतंत्रता सेनानी परिवारों को सम्मानित करने का आर्य प्रतिनिधि सभा जनपद गौतमबुद्ध नगर का कार्यक्रम ' संपन्न हो गया है। यह कार्यक्रम आर्य समाज चूहड़पुर की ओर से आर्य प्रतिनिधि सभा जनपद गौतम बुद्ध नगर के आह्वान पर आयोजित किया गया। जनपद गौतम बुध नगर के इतिहास में पहली बार इस प्रकार का कार्यक्रम आयोजित किया गया है, जब जनपद गौतम बुध नगर ही नहीं, पश्चिम उत्तर प्रदेश के किसी भी जिले के ( 1857 से लेकर 1947 तक के ) क्रांतिकारियों / बलिदानियों / स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों को सम्मानित करने का एक संस्था ने निर्णय लिया। इस दृष्टिकोण से आर्य प्रतिनिधि सभा जनपद गौतम बुद्ध नगर द्वारा आयोजित यह कार्यक्रम ऐतिहासिक रहा है।

मुख्य वक्ता के रूप में अपने विचार व्यक्त करते हुए आर्य प्रतिनिधि सभा जनपद गौतम बुद्ध नगर के यशस्वी अध्यक्ष डॉ राकेश कुमार आर्य ने कहा कि इस ऐतिहासिक कार्यक्रम के साथ इस जनपद की एक बहुत ही महत्वपूर्ण बलिदानी गाथा जुड़ी हुई है, जब यहां के अनेक क्रांतिकारियों को उठाकर 1857 की 27 सितंबर को अंग्रेजों ने बुलंदशहर के काले आम पर सार्वजनिक रूप से लटकाकर फांसी दे दी थी। यहां के वीरों ने हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चूम लिया था, लेकिन अंग्रेजों के सामने सिर नहीं झुकाया था। उन्होंने कहा कि राव उमराव सिंह के नेतृत्व में यहां के सैकड़ो नहीं हजारों क्रांतिकारियों ने क्रांति की धूम मचाई थी। मेरठ की ओर से धन सिंह कोतवाल जी के साथ हजारों की संख्या में लोग दिल्ली की ओर बढ़ रहे थे तो यहां से राव उमराव सिंह के नेतृत्व में लोग आगे बढ़ रहे थे। गाजियाबाद में हरनंदी नदी के किनारे पर अंग्रेजों के साथ क्रांतिकारियों की सेना की मुठभेड़ हुई थी। जिसमें अनेक क्रांतिकारियों का बलिदान हुआ था। जब अंग्रेज अंतिम मुगल बादशाह सम्राट बहादुर शाह को रंगून के लिए ले जा रहे थे तो यहां के वीर क्रांतिकारियों ने मुगल बादशाह को कोट के पुल पर अंग्रेजों से मुक्त कराने का असफल प्रयास किया था, परंतु उस प्रयास में भी अनेक लोगों को अपना बलिदान देना पड़ा था।
डॉ आर्य ने मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए कहा कि 1857 की 28 सितंबर को क्षेत्र के 300 क्रांतिकारियों ने गाजियाबाद की हरनंदी नदी के किनारे पर अंग्रेजों से टक्कर लेते हुए अपना बलिदान दिया था। उन्होंने कहा कि इसके अतिरिक्त भी जनपद के ऐसे सैकड़ो क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी रहे हैं जो 1857 से 1947 के बीच विभिन्न आंदोलनों में भाग लेते रहे। 27 सितंबर 1857 को हमारे अनेक क्रांतिकारियों को बुलंदशहर में काले आम पर फांसी पर लटका दिया गया था।
डॉ आर्य ने कहा कि सरदार भगत सिंह के चाचा सरदार अजीत सिंह 37 वर्ष तक विदेश में जाकर देश की स्वाधीनता के लिए काम करते रहे । अगस्त 1947 को जब वे देश में लौट कर आए तो देश के विभाजन को सहन नहीं कर पाए और 15 अगस्त की सुबह उन्होंने अपने प्राण स्वेच्छा से त्याग दिए । ऐसे क्रांतिकारी परिवार में जन्मे सरदार भगत सिंह से आज हम सभी प्रेरणा ले सकते हैं।
इस अवसर पर विशिष्ट वक्ता के रूप में अपने विचार व्यक्त करते हुए ब्रह्मचारी आर्य सागर ने कहा कि यह एक सुखद संयोग है कि आज हम अमर शहीद क्रांतिकारी भगत सिंह की जयंती भी मना रहे हैं। इस तिथि से जब इस जनपद का क्रांतिकारी इतिहास जाकर जुड़ता है तो सोने पर सुहागा हो जाता है। उन्होंने कहा कि हमारा इतिहास जानबूझकर छुपा दिया गया है। अमर शहीद भगत सिंह के जीवन के कई प्रसंग सुनाते हुए उन्होंने कहा कि वह आर्य समाज की पृष्ठभूमि से जुड़े थे। ऋषि दयानंद की सेना के सिपाही थे। उनका सारा परिवार क्रांतिकारियों का परिवार था। उनके कम्युनिस्ट होने की कहानी पूर्णतया झूठ पर आधारित है। उनकी देशभक्ति आज भी पंजाब और देश के सभी युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत है। क्योंकि उन्होंने देश की एकता के लिए काम किया। इस अवसर पर जनपद के ही नहीं समस्त पश्चिम उत्तर प्रदेश के क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानियों के सैकड़ों परिजनों को आर्य प्रतिनिधि सभा की ओर से सम्मानित भी किया गया।
उन्होंने कहा कि सरदार भगत सिंह मूल रूप से आर्य परिवार से जुड़े हुए थे। उनके भीतर आर्य समाज के क्रांतिकारी संस्कार थे। उन्हीं से प्रभावित होकर उन्होंने देश, धर्म और संस्कृति की रक्षा का संकल्प लिया था। उनका पूरा परिवार क्रांति में संलिप्त था। उनके पवित्र देशभक्ति को आज का युवा अपने लिए प्रेरणा का स्रोत।मानता है।
इस कार्यक्रम में देवमुनि जी महाराज ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि भारत क्रांतिकारियों की भूमि है, जो सनातन का एक विशेष गुण है। इसी गुण के कारण हमने विदेशी हुकूमत से सैकड़ो वर्ष तक आजादी की लड़ाई लड़ी । आजादी किसी एक व्यक्ति की देन नहीं है बल्कि इसके लिए लाखों लोगों ने अपना खून बहाया है।
बहन अलका आर्या ने भजनों के माध्यम से लोगों का ओजस्वी मार्गदर्शन किया। उन्होंने अनेक ऐतिहासिक प्रसंग सुनाकर लोगों को रोमांचित कर दिया। इसके अतिरिक्त वीर रस के भजनों से भी लोग झूम उठे। उन्होंने कहा कि माता निर्माता होती है।इसलिए आज माता को ही वीरांगना बनना पड़ेगा ।देश धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए समय की आवाज को समझाना पड़ेगा।
युवा वक्त के रूप में उपस्थित रही श्रेया आर्या ने दहेज को एक सामाजिक अभिशाप बताया। उन्होंने कहा कि इस समय जिस प्रकार संबंधों में कटुता और कुंठा बढ़ती जा रही है वह चिंता का विषय है। आज समाज को संस्कार आधारित शिक्षा के लिए संघर्ष करने की आवश्यकता है। यदि हम समय रहते हुए नहीं चेते तो जो समुदाय सनातन को मिटाने का काम कर रहे हैं, वह अपने मिशन में सफल हो सकते हैं। इसलिए हमें सामूहिक प्रयास करने की आवश्यकता है। इसके लिए सभी को सनातन के एक झंडे के नीचे आना होगा। जातिवाद को मिटाकर हमें एक शक्ति के रूप में खड़ा होना होगा। इसके लिए आज का युवा और मातृशक्ति अपना विशेष योगदान दे सकती है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ समाजसेवी सतीश नंबरदार ने की। उन्होंने शहीदों की चित्रावली के लिए विशेष सहायता राशि भी प्रदान की। इस अवसर पर वरिष्ठ आर्य समाजी नेता मास्टर ज्ञानेंद्र सिंह आर्य, बलबीर सिंह आर्य ,राम सिंह आर्य, विजेंद्र सिंह आर्य, भजनोपदेशिका अलका आर्या ,महावीर सिंह आर्य ,पंडित धर्मवीर आर्य, महेंद्र सिंह आर्य, गजराज आर्य, रामप्रसाद आर्य ब्रह्म प्रकाश आर्य शिव मुनि जी यशपाल आर्य, सुभाष आर्य, प्रधान टीकम सिंह, नरेंद्र सिंह आर्य, शीशपाल आर्य, माता भगवती आर्या, राघवेंद्र सोलंकी, आर्य बेगराज नागर आदि आर्य जन उपस्थित थे।
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