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ट्रेन टू बिहार

ट्रेन टू बिहार

भारत आज गर्व के साथ दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में खड़ा है। 4.2 ट्रिलियन डॉलर की जीडीपी के साथ हमने जापान को पीछे छोड़ दिया है और 2027 तक तीसरे स्थान पर पहुँचने की राह पर हैं। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के प्रेरणादायी और गतिशील नेतृत्व में 2014 से अब तक हमारी अर्थव्यवस्था लगभग दोगुनी हो चुकी है। 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने का हमारा संकल्प है। उस समय भारत की जनसंख्या लगभग 1.7 अरब होगी और हमारी जीडीपी 35 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँच सकती है, जबकि प्रति व्यक्ति आय मौजूदा 2.5 लाख रुपये से बढ़कर लगभग 18 लाख रुपये वार्षिक होने का अनुमान है।

लेकिन सवाल है—इस विकास यात्रा में बिहार कहाँ होगा? क्या यह राज्य अग्रणी बनेगा या फिर दूसरों पर निर्भर ही रहेगा?

बिहार की वर्तमान स्थिति

बिहार की अर्थव्यवस्था इस समय 100 अरब डॉलर से कुछ कम है और लक्ष्य है कि 2047 तक इसे 1 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँचाया जाए। तुलना कीजिए—दिल्ली की एसजीडीपी बिहार के बराबर है जबकि उसकी आबादी बिहार की मात्र पाँचवाँ हिस्सा है। यदि बिहार की आबादी प्रति वर्ष 2% की दर से बढ़ती रही तो 2047 तक यह 21 करोड़ के आसपास होगी। उस समय प्रति व्यक्ति आय लगभग 4 लाख रुपये पहुँच सकती है, जबकि आज यह करीब 60,000 रुपये है।

फिर भी यह स्तर राष्ट्रीय औसत से बहुत पीछे रहेगा और बिहार श्रम आपूर्ति करने वाला राज्य ही बना रहेगा। भारत की कुल जनसंख्या में 10% से अधिक हिस्सा होने के बावजूद बिहार की अर्थव्यवस्था आज कम-से-कम 400 अरब डॉलर की होनी चाहिए थी, पर यह बहुत पीछे है। सवाल यह नहीं है कि इस दिशा को बदलना चाहिए या नहीं—बदलना ही होगा। सवाल यह है कि कैसे बदला जाए।

ट्रेनों का प्रतीकात्मक अर्थ


ध्यान दीजिए, जब भी कोई नई ट्रेन बिहार से जुड़ती है तो घोषणा हमेशा “बिहार से वहाँ” की होती है—जैसे “जयनगर से बेंगलुरु।” शायद ही कभी इसका उल्टा होता हो। यह इस बात का प्रतीक है कि बिहार से लोग रोजगार और जीवनयापन की तलाश में बाहर जाते रहे हैं।

यह परंपरा नई नहीं है। 1857 के विद्रोह के बाद से ही गिरमिटिया मजदूरों के रूप में यह प्रवासन शुरू हुआ और आज़ादी के बाद भी जारी रहा। पहले लोग बंगाल, झारखंड और महाराष्ट्र जाते थे, फिर पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, गुजरात और राजस्थान की ओर बढ़े। यह प्रवासन आज भी जारी है, भले ही रफ़्तार कुछ धीमी हुई हो। हर ऐसी यात्रा अपने साथ पुश्तैनी मिट्टी को छोड़ने का दर्द लेकर जाती है। लेकिन अब समय है कि इस प्रवृत्ति को पलटा जाए।

गौरवशाली विरासत, उपेक्षा की अवधि


बिहार केवल एक राज्य नहीं है, बल्कि सभ्यता की जननी है। यही भूमि माता सीता की जन्मभूमि है, यही गौतम ऋषि की कर्मभूमि, यही बुद्ध के ज्ञानप्राप्ति का स्थल और महावीर का घर। यही वह धरती है जहाँ चाणक्य ने राजनीति का शास्त्र लिखा, जहाँ चन्द्रगुप्त और अशोक ने साम्राज्य रचे।

इतने गौरवशाली इतिहास के बावजूद दशकों तक कुप्रशासन और उपेक्षा ने बिहार को गरीबी और निर्भरता की स्थिति में पहुँचा दिया। पिछले दो दशकों में सुधार की राह खुली है, और अब समय है कि बिहार विकास की उड़ान भरे।

बिहार की क्षमता का ताला खोलना


बिहार को बदलने के लिए सरकार और जनता दोनों को मिलकर काम करना होगा। आर्थिक विकास के लिए पाँच आधारभूत तत्व आवश्यक हैं—विचार, पूँजी, श्रम, कच्चा माल और भूमि। बिहार के पास श्रमशक्ति और भूमि तो प्रचुर मात्रा में है, ज़रूरत है पूँजी निवेश और कच्चे माल तक पहुँच की।

हजारों हेक्टेयर परती और एक फसल वाली ज़मीन को उत्पादक बनाया जा सकता है। नीदरलैंड, जो समुद्र तल से नीचे स्थित है, हर साल 160 अरब डॉलर से अधिक का कृषि निर्यात करता है। जब वहाँ संभव है तो बिहार की दीयारा और ताल भूमि को भी कृषि की शक्ति-गृह में बदला जा सकता है।

बिहार के युवाओं ने अपनी प्रतिभा पहले ही साबित की है। बेंगलुरु, हैदराबाद, पुणे और नोएडा जैसे शहरों में बिहारी इंजीनियर और आईटी पेशेवर उद्योगों का नेतृत्व कर रहे हैं। प्रतिभा बिहार में है, बस उपयुक्त पारिस्थितिकी तंत्र की कमी है।

आगे की राह

  • अब समय है कि निजी उद्यम और संस्थागत निवेश बिहार की ओर आएँ। यहाँ अपार संभावनाएँ हैं:
  • इस्पात, सीमेंट, एल्युमिनियम और कॉपर संयंत्र
  • ऑटोमोबाइल क्लस्टर और आईटी हब
  • ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (GCCs), सेमीकंडक्टर और इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण
  • वस्त्र और रक्षा उद्योग
  • उपभोक्ता टिकाऊ और घरेलू उपकरण निर्माण केंद्र
  • एयरोस्पेस और न्यूक्लियर ऊर्जा उद्योग
  • सभी ज़िलों में मेट्रो रेल, अंतर-शहरी रैपिड रेल और बुलेट ट्रेन नेटवर्क

हवाई अड्डों का जाल

सरकारी समर्थन, नीतिगत सक्रियता और संस्थागत ढाँचे की मजबूती आवश्यक है। लेकिन उतना ही ज़रूरी है निजी पूँजी और उद्यमशीलता। इन दोनों के सम्मिलित प्रयास से बिहार की अर्थव्यवस्था 2047 तक सिर्फ 1 ट्रिलियन नहीं, बल्कि 4 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँच सकती है।

एक नई कहानी की ओर


जब यह परिवर्तन होगा तो ट्रेनों का प्रतीक भी बदलेगा। तब ट्रेनें बिहार से बाहर नहीं जाएँगी बल्कि बिहार आने लगेंगी—निवेशकों, उद्यमियों और पेशेवरों को लेकर। तब प्रवासन मजबूरी नहीं, विकल्प होगा।

वास्तविक अर्थों में भारत के विकसित होने का सपना तभी पूरा होगा जब बिहार भी विकसित होगा। एक समृद्ध भारत बिना समृद्ध बिहार के अधूरा है। कार्रवाई का समय अभी है।


(पवन कुमार सिंह भारतीय डाक सेवा के अधिकारी हैं, इंजीनियरिंग पृष्ठभूमि से हैं और वर्तमान में पोस्टमास्टर जनरल, उत्तर क्षेत्र, मुजफ्फरपुर के पद पर कार्यरत हैं।)

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