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जिउतिया व्रत 2025 : संतान की दीर्घायु का पर्व

जिउतिया व्रत 2025 : संतान की दीर्घायु का पर्व

लेखक  ज्योतिषाचा पं. प्रेम सागर पाण्डेय

भारतीय संस्कृति में व्रत-उपवास का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। यहाँ प्रत्येक व्रत केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं होता, बल्कि उसमें समाज और परिवार के उत्थान की गहरी भावना निहित होती है। इन्हीं व्रतों में से एक है जिउतिया व्रत जिसे जीवितपुत्रिका व्रत भी कहा जाता है। यह विशेष व्रत माताओं द्वारा अपनी संतान की दीर्घायु, उत्तम स्वास्थ्य और मंगलमय भविष्य के लिए किया जाता है। बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, नेपाल और पूर्वी भारत के कई हिस्सों में यह व्रत अत्यंत श्रद्धा और उत्साह से मनाया जाता है।

2025 में यह व्रत 14 सितम्बर (रविवार) को रखा जाएगा। तिथियों के आधार पर पंचांग गणना, व्रत की पौराणिक कथा, पूजा-विधान और इसके सामाजिक महत्व पर हम इस आलेख में विस्तार से चर्चा करेंगे।
1. तिथि और पंचांग विश्लेषण 2025

  • पंचांग के अनुसार, 2025 में जिउतिया व्रत की स्थिति इस प्रकार है:
  • सप्तमी तिथि: 14 सितम्बर (रविवार) प्रातः 8:41 बजे तक।
  • अष्टमी तिथि प्रारंभ: 14 सितम्बर को 8:41 बजे से।
  • अष्टमी तिथि समाप्ति: 15 सितम्बर (सोमवार) प्रातः 6:26 बजे तक।


धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि यदि अष्टमी सप्तमी से विद्ध हो तो वह त्याज्य मानी जाती है। परंतु इस वर्ष यदि 15 सितम्बर को व्रत रखा जाए, तो पारण दशमी में करना पड़ेगा, जो शास्त्रसम्मत नहीं है। अष्टमी का पारण केवल नवमी में ही उचित माना गया है। अतः विद्वानों और पंचांगकारों की सर्वसम्मति से 14 सितम्बर 2025 (रविवार) को ही व्रत रखना श्रेयस्कर और मान्य है।
2. व्रत का महत्व

जिउतिया व्रत माताओं का व्रत है। इसे करने से संतान को दीर्घायु प्राप्त होती है और उस पर आने वाले सभी संकट दूर हो जाते हैं। लोकमान्यता है कि इस व्रत का पालन करने वाली माता की संतान मृत्यु के मुख से भी बच जाती है।

यह व्रत केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि भावनात्मक और सामाजिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है:

यह मातृत्व की शक्ति और त्याग का प्रतीक है।

यह परिवार और समाज में संतान-सुरक्षा की सामूहिक भावना को मजबूत करता है।

इस दिन माताएँ कठोर तपस्या के समान उपवास रखती हैं, जो उनके आत्मबल और संकल्प को दर्शाता है।

जिउतिया व्रत संतान-सुरक्षा का पर्व है। लोकमान्यता है कि इस व्रत से संतान पर आने वाले सभी संकट दूर होते हैं।

संस्कृत ग्रंथों में संतान-सुरक्षा हेतु यह प्रार्थना मिलती है:

“दीर्घायुष्मान भव पुत्र, सौभाग्यं तेऽस्तु सर्वदा।”
(अर्थ: हे पुत्र! तू दीर्घायु हो, तुझे सदैव सौभाग्य प्राप्त हो।)

3. पौराणिक कथा

जिउतिया व्रत से जुड़ी कथा जीमूतवाहन गंधर्व की है, जो इस व्रत की आत्मा मानी जाती है।

बहुत समय पहले जीमूतवाहन नामक एक राजकुमार थे। वे अत्यंत परोपकारी और धर्मपरायण थे। उन्होंने सिंहासन त्यागकर वनों में रहकर दूसरों की सेवा करना ही जीवन का लक्ष्य बना लिया।

उसी समय नागवंश पर एक संकट था। प्रतिदिन एक नागकुल से बलपूर्वक एक नागपुत्र को गरुड़ के भोजन के लिए अर्पित करना पड़ता था। यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही थी। एक दिन जीमूतवाहन ने देखा कि एक वृद्ध नाग माता अपने पुत्र को विलाप करती हुई गरुड़ को सौंपने ले जा रही है। उनका हृदय करुणा से भर गया।

जीमूतवाहन ने नागमाता से कहा — “माता, आप अपने पुत्र को घर ले जाइए। उसकी जगह मैं स्वयं गरुड़ का आहार बनूँगा।”

वे स्वयं को वस्त्र से ढककर उस शिला पर लेट गए जहाँ गरुड़ भोजन लेने आता था। जब गरुड़ आया तो उसने जीमूतवाहन को पकड़ लिया। किंतु जीमूतवाहन के साहस और त्याग से प्रभावित होकर गरुड़ ने सत्य जाना और प्रतिज्ञा की कि अब वह कभी नागपुत्रों को नहीं खाएगा। इस प्रकार जीमूतवाहन के बलिदान से नागकुल की संतानें सुरक्षित हो गईं।

इसी कथा की स्मृति में माताएँ संतान की रक्षा के लिए जिउतिया व्रत करती हैं।

जीमूतवाहन के त्याग और बलिदान की कथा इस व्रत की आत्मा है।

संस्कृत श्लोक में इसका सार:

“स्वजनस्य हितं कुर्याद् यः प्राणानपि त्यजेत्।
स जीवन्मृतो वा स्याद् लोकत्रयवन्दितः॥”

अर्थ – जो दूसरों की रक्षा के लिए अपने प्राणों का भी त्याग कर दे, वह जीवित हो या मृत, तीनों लोकों में पूजनीय होता है।

4. व्रत की विधि (चरणबद्ध)
जिउतिया व्रत की पूजा विधि अत्यंत सादगीपूर्ण लेकिन नियमबद्ध होती है।
  • स्नान और संकल्प
  • प्रातः स्नान करके व्रत का संकल्प लें।
“मैं अपनी संतान की दीर्घायु और मंगल के लिए यह जीवितपुत्रिका व्रत कर रही हूँ” — इस भावना से उपवास का आरंभ करें।

प्रतिमा या चित्र स्थापना

जीमूतवाहन की मिट्टी की प्रतिमा बनाएं अथवा चित्र स्थापित करें।

इसके साथ दुर्गा माता और संतान के प्रतीक रूप में कलश की स्थापना की जाती है।

पूजन सामग्री
  • दूर्वा, पुष्प, फल, चंदन, अक्षत, दीपक और धूप का उपयोग करें।

घर की महिलाएँ मिलकर गीत गाती हैं, जो लोकभक्ति की सुंदर परंपरा है।

कथा श्रवण

व्रत के दौरान जीमूतवाहन की कथा सुनना अनिवार्य है।

कथा सुनते समय माताएँ संतान का नाम लेकर उसकी दीर्घायु की प्रार्थना करती हैं।


उपवास और नियम

इस व्रत में महिलाएँ निर्जला उपवास करती हैं। दिनभर जल तक का सेवन नहीं करतीं।

संध्या के समय भी वे केवल भगवान जीमूतवाहन की पूजा और भजन करती हैं।

पूजा के समय यह श्लोक प्रार्थना स्वरूप बोला जा सकता है:

“त्वमेव माता च पिता त्वमेव,
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव,
त्वमेव सर्वं मम देवदेव॥”

(अर्थ – हे देवी! आप ही मेरी माता हैं, आप ही पिता, आप ही बंधु और सखा हैं। आप ही विद्या हैं, आप ही धन हैं, आप ही सबकुछ हैं।)


पारण

अगले दिन अष्टमी समाप्त होने पर ही व्रत का पारण किया जाता है।

पारण के समय फलाहार या सामान्य भोजन ग्रहण किया जाता है।
5. लोकपरंपराएँ और सांस्कृतिक रंग

जिउतिया केवल पूजा का पर्व नहीं है, यह लोकजीवन का उत्सव है।

बिहार और झारखंड में महिलाएँ इस दिन सामूहिक रूप से तालाब या नदी में स्नान करती हैं और वहाँ व्रत कथा का पाठ होता है।

नेपाल में इसे अत्यंत धूमधाम से मनाया जाता है। वहाँ विशेष गीत गाए जाते हैं जिन्हें जिउतिया गीत कहा जाता है।

उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र में महिलाएँ संतान के नाम से विशेष गीत गाती हैं और मंगलकामना करती हैं।
6. जिउतिया व्रत के गीत और लोककथाएँ


गाँव-गाँव की महिलाएँ पारंपरिक गीत गाती हैं जिनमें जीमूतवाहन के त्याग का वर्णन होता है। इन गीतों में संतान के लिए माँ की प्रार्थना और मातृत्व की ममता झलकती है।


उदाहरणस्वरूप एक लोकगीत में कहा गया है:
“जीवत रहैं ललना, सुख समृद्धि पावैं,
माई के व्रत-ध्यान से, दुःख-दरिद्रता टारैं।”
7. मानसिक और आध्यात्मिक आयाम


इस व्रत का एक बड़ा पक्ष यह है कि माताएँ दिनभर कठोर उपवास रखकर संतान की मंगलकामना करती हैं। इससे उनका आत्मबल बढ़ता है और संतान के प्रति जिम्मेदारी का भाव और गहरा होता है।


यह व्रत केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं है, बल्कि यह मातृत्व और संतान-सुरक्षा की भावनात्मक अभिव्यक्ति है। यह हमें याद दिलाता है कि संतान माता-पिता के लिए कितना मूल्यवान है।
8. आधुनिक समाज में जिउतिया व्रत


आज के आधुनिक समाज में भी जिउतिया का महत्व कम नहीं हुआ है। गाँव हो या शहर, माताएँ पूरे नियम और श्रद्धा से यह व्रत करती हैं। यहाँ तक कि प्रवासी भारतीय भी विदेशों में यह व्रत आयोजित कर अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़े रहते हैं।

जिउतिया व्रत केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि मातृत्व की शक्ति और त्याग का उत्सव है। इसमें संतान के लिए माँ का समर्पण, समाज की सामूहिक चेतना और धर्मशास्त्रीय नियम सब एक साथ जुड़े हैं।

2025 में यह व्रत 14 सितम्बर (रविवार) को मनाया जाएगा। इस दिन माताएँ उपवास रखकर संतान की रक्षा और दीर्घायु की कामना करेंगी। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि जीवन में सबसे बड़ी शक्ति है माँ की ममता और आशीर्वाद।

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