शारदीय नवरात्र-2025
श्री मार्कण्डेय शारदेयःऊँ नमश्चण्डिकायै
शारदीय नवरात्र-2025
(22 सितम्बर से 02 अक्तूबर तक)
इस बार भगवती का आगमन हाथी पर तथा प्रस्थान पालकी पर हो रहा है।ये दोनों (आगमन और प्रस्थान) शुभ हैं।कारण कि हाथी पर आना सुवृष्टि प्रदान करनेवाला बताया गया है तो पालकी पर जाना शुभता एवं सुख का कारक कहा गया है।
पूजा-विवरण
- 0१ - 22.09.025 (सोमवार) आश्विन शुक्ल
- प्रतिपदा (रात्रि 1.19 तक) कलश-स्थापन एवं शैलपुत्री-पूजन
(इस दिन देवी को केश-संस्कारक वस्तुएँ, आँवला, शेम्पू आदि अर्पित करें।)
- ०२- 23.09.025 (मंगलवार) द्वितीया तिथि (रात्रि 2.48 तक) ब्रह्मचारिणी-पूजन
(इस दिन देवी को केश बाँधने के लिए रीबन, फीता व चोटी अर्पित करें।)
- ०३- 24.09.025 (बुधवार) तृतीया तिथि (रात्रि व प्रातः 4.37 तक) चन्द्रघण्टा-पूजन
(इस दिन देवी को दर्पण, सिन्दूर, आलता आदि अर्पित करें)
- ०४-. 25.09.025 (गुरुवार) चतुर्थी तिथि
(अहोरात्र) कूष्माण्डा-पूजन (इस दिन देवी को बिन्दी, काजल, मधुपर्क (दही, घी तथा शहद) अर्पित करें।)
- ०५- 26.09.025 (शुक्रवार) चतुर्थी तिथि (प्रातः 6.40 तक) कूष्माण्डा-पूजन
(इस दिन पूर्ववत् पूजन-अर्पण करें)
- ०६ - 27.09.025 (शनिवार) पंचमी तिथि (पूर्वाह्न 8.47 तक) स्कन्दमाता-पूजन
(इस दिन देवी को उबटन, मेहदी, यथाशक्ति अलंकार अर्पित करें।)
- ०७- 28.09.025 (रविवार) षष्ठी तिथि (पूर्वाह्न 10.43 तक) कात्यायनी-पूजन
(इस दिन देवी का प्रबोधन, आमन्त्रण, अधिवासन एवं सायंकाल में बिल्वाभिमन्त्रण करें।)
- ०८- 29.09.025 (सोमवार) सप्तमी तिथि (मध्याह्न 12.26 तक) कालरात्रि-पूजन
(इस दिन सप्तमी तिथि में पण्डालों में मूर्ति-स्थापन, पत्रिका-प्रवेश, बिल्वपूजन एवं मध्यरात्रि में निशापूजा)
- ०९- 30.09.025 (मंगलवार) अष्टमी तिथि (मध्याह्न 1.45 तक) महागौरी-पूजन
(इस दिन महाष्टमी, अष्टमी का व्रत, छत्र-चामर आदि राजोपचारों से भगवती की पूजा करें।)
- १०- 01.10.025 (बुधवार) नवमी तिथि (मध्याह्न (2.35 तक) सिद्धिदात्री-पूजन
(इस दिन दुपहर 2.35 के पहले पूजन, हवन, कुमारी-पूजन आदि करें।)
- ११ - 02.10.025 (गुरुवार) दशमी तिथि (मध्याह्न 2.56 तक) विजया-पूजन, अपराजिता एवं शमी-पूजन, मूर्ति-विसर्जन तथा जयन्ती-धारण
विशेष
- नौ रात्रियों के समूह को नवरात्र कहते हैं।आश्विन के नवरात्र का सर्वाधिक महत्व इसलिए भी है कि यह महापूजा है।इस बार यह पूजा दस दिनों की है।
- इसमें घर-घर, गाँव-गाँव उत्सव मनाने की बात कही गई है।इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को उत्साह-पूर्वक तन, मन, धन से दुर्गोत्सव में सम्मिलित होना चाहिए।
- इसमें नित्य दुर्गा-सप्तशती का पाठ होता है।नित्य सम्पूर्ण पाठ (शाप-विमोचन, कवच, अर्गला, कीलक, रात्रिसूक्त, न्यास, नवार्ण-जप, सप्तशती के प्रथम से त्रयोदश अध्याय तक पाठ के साथ-साथ पुनः न्यास, नवार्ण-जप के बाद देवीसूक्त, रहस्य (प्राधानिक, मूर्ति, वैकृतिक) के अनन्तर कुंजिका स्तोत्र एवं क्षमाप्रार्थना होने से नवावृत्ति कहते हैं।
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