"आज का युवा: मंज़िल के बाद भी मंज़िल की तलाश"
लेखक – डॉ. राकेश दत्त मिश्र"सफलता वही है, जिसमें खुशी भी मिले, न कि सिर्फ़ अगली दौड़ की शुरुआत हो।"
आज का भारत युवा ऊर्जा से भरपूर है। देश की सड़कों से लेकर वैश्विक मंच तक, हर जगह हमारे युवा अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रहे हैं। वे UPSC पास कर रहे हैं, IIT से निकलकर विश्वस्तरीय कंपनियों में जा रहे हैं, सेना में देश की रक्षा कर रहे हैं, और विज्ञान-तकनीक में नए कीर्तिमान बना रहे हैं।
लेकिन एक चुपचाप पनपती प्रवृत्ति भी है—असंतोष का रोग।
UPSC से राजनीति तक, IIT से BPSC तक
सोचिए, UPSC जैसी कठिन परीक्षा पास करने वाला युवक, जब प्रतिष्ठित प्रशासनिक सेवा में पहुँचता है, तो कुछ वर्षों बाद उसकी नज़र राजनीति पर टिक जाती है। वह कहता है—“अब असली बदलाव तो नेता बनकर ही लाया जा सकता है।”
इसी तरह, IIT से निकलने वाला छात्र, जहाँ दुनियाभर में नवाचार और अनुसंधान के अवसर हैं, वहाँ जाने के बजाय SSC या BPSC की तैयारी में जुट जाता है। कारण—सरकारी नौकरी की स्थिरता, सामाजिक प्रतिष्ठा, या दूसरों को देखकर प्रभावित होना।
यहाँ तक कि SP, DIG, DGP जैसे शीर्ष पुलिस अधिकारी भी अपने कार्यकाल के अंतिम वर्षों में सोचने लगते हैं कि अब राजनीति में कदम रखकर “जनसेवा” करनी चाहिए। मानो कानून-व्यवस्था का पहरा देना, लोगों के अधिकारों की रक्षा करना, और समाज में न्याय सुनिश्चित करना सेवा का पूर्ण रूप न हो।
यह असंतोष क्यों?
- तुलना का जाल – सोशल मीडिया पर दिखती दूसरों की ‘हाइलाइट रील’ हमें अपनी उपलब्धियां छोटी लगने लगती हैं।
- स्पष्ट उद्देश्य का अभाव – करियर की शुरुआत में तय नहीं होता कि किस मंज़िल पर ठहरना है।
- शक्ति और प्रतिष्ठा की लालसा – पद से ऊपर कुछ और पाने का आकर्षण।
- भविष्य की अनिश्चितता – ऊँचे पद पर भी यह डर कि कल क्या होगा।
खतरनाक नतीजे
- जब मंज़िल केवल अगली मंज़िल का सीढ़ी बन जाए, तो मानसिक तनाव बढ़ता है, करियर अस्थिर हो जाता है, और असली उपलब्धि का आनंद खो जाता है।
- जीवन में यह समझना जरूरी है कि संतोष का अर्थ ठहराव नहीं, बल्कि उपलब्धि का सम्मान है।
संतुलन का मंत्र
- स्पष्ट लक्ष्य तय करें—करियर की शुरुआत में ही सोचें कि कहाँ तक जाना है और क्यों।
- उपलब्धि का आनंद लें—सिर्फ़ आगे बढ़ने की नहीं, बल्कि किए गए काम में गर्व महसूस करने की आदत डालें।
- चाह को सार्थकता में बदलें—अगला कदम सिर्फ़ बड़ा न हो, बल्कि बेहतर हो।
महात्मा गांधी ने कहा था—
"संतोष धन है, जो भीतर से आता है; बाहरी पद और शक्ति सिर्फ़ उसकी चमक बढ़ा सकते हैं।"
अंतिम बात
आज के युवाओं में अद्भुत ऊर्जा और क्षमता है। बस जरूरत है यह समझने की कि हर उपलब्धि, चाहे वह UPSC हो, IIT हो, या कोई भी प्रतिष्ठित पद, अपने आप में एक नई जिम्मेदारी है, न कि सिर्फ़ अगली दौड़ का आरंभ।
यदि हम हर मंज़िल पर रुककर अपनी सफलता को महसूस करेंगे, तभी जीवन की असली यात्रा का आनंद ले पाएँगे।
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