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हिन्दी,संस्कृत और बंगला भाषाओं के उद्भट विद्वान थे पं हंस कुमार तिवारी,

हिन्दी,संस्कृत और बंगला भाषाओं के उद्भट विद्वान थे पं हंस कुमार तिवारी,

  • हिन्दी सेवा के लिए सदैव याद किए जाएँगे पीर मुहम्मद मूनिस
  • जयंती पर साहित्य सम्मेलन में दोनों साहित्यिक विभूतियों को किया गया याद, आयोजित हुआ कवि-सम्मेलन

पटना, १३ अगस्त। हिन्दी, संस्कृत और बंगला भाषाओं के उद्भट विद्वान थे पं हंस कुमार तिवारी। अनुवाद-साहित्य में उनका महान अवदान है। आपने बंगला साहित्य के हिन्दी में अनुवाद के साथ ही कई अनेक मौलिक साहित्य का सृजन कर हिन्दी का भंडार भरा । राष्ट्रभाषा परिषद, बिहार के निदेशक के रूप में उनके कार्यों को आज भी स्मरण किया जाता है।

यह बातें बुधवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती समारोह एवं कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन-अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। जयंती पर, स्वतंत्रता-सेनानी और हिन्दी-सेवी पीर मुहम्मद मूनिस को स्मरण करते हुए, डा सुलभ ने कहा कि वे चंपारण-सत्याग्रह के प्रथम-ध्वजवाहकों में से एक थे। महात्मा गाँधी को चंपारण लाने में पं राज कुमार शुक्ल के साथ मूनिस जी की भी बड़ी भूमिका थी। उनकी हिन्दी-सेवा भी प्रणम्य है। सन १९१९ में बिहार में आहूत हुए १०वें अखिल भारत वर्षीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन के प्रमुख संयोजक थे मूनिस जी। वे बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के भी अध्यक्ष रहे।

समारोह के मुख्यअतिथि और राँची विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के पूर्व अध्यक्ष डा जंग बहादुर पाण्डेय ने कहा कि अपने जीवन की लम्बी आयु में गद्य और पद्य साहित्य समेत पत्रकारिता और आलोचना के माध्यम से हिन्दी की बड़ी सेवा की । किंतु अनुवाद-साहित्य के लिए वे पूरे देश में सम्मान पाते रहे । उन्होंने शरत चंद्र चट्टोपाध्याय और विमल मित्र समेत बंगाल के प्रायः सभी बड़े कीर्तिकारों की महत्त्वपूर्ण पुस्तकों का हिन्दी अनुवाद किया।

अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा ने कहा कि पं हंस कुमार तिवारी का व्यक्तित्व और कृतित्व जीवंत है। उन्होंने अनुवाद-साहित्य को सर्वाधिक बल दिया। उन्होंने बंगला साहित्य के अनेक ग्रंथों का हिन्दी में अनुवाद किया, उनमे रवींद्रनाथ ठाकुर की रचना 'गीतांजलि' भी सम्मिलित है।

इस अवसर परआयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र की वाणी-वंदना से हुआ। वरिष्ठ कवि सुनील कुमार ने आध्यात्मिक-चेतना का अपना एक गीत पढ़ते हुए कहा कि - "कहो सखे! पावन कूंभ नहाए! श्रद्धा, निष्ठा के उत्सव तट/ प्रज्ञा दीप जलाए।"। विशेष आग्रह पर उन्होंने अपनी ग़ज़ल पढ़ते हुए कहा- " बसी हुई है मेरी ज़िंदगी में तन्हाई/ कहीं से तेरी कोई आहटें नहीं आई"। 'दोहा' विधा के चर्चित युवा कवि सूर्य प्रकाश उपाध्याय ने कहा- बालक-मन है बाबरा / हठ करता भरमार/ कौन इसे समझाए रे, है झूठा संसार।"

वरिष्ठ कवियित्री विभारानी श्रीवास्तव, ईं अशोक कुमार, प्रेरणा प्रिया, इन्दु भूषण सहाय, अश्विनी कविराज, शिवानंद गिरि, भास्कर त्रिपाठी आदि कवियों और कवयित्रियों ने अपनी काव्य-रचनाओं से सभागार को सुगंधित कर दिया। मंच का संचालन सूर्य प्रकाश उपाध्याय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन सम्मेलन के भवन अभिरक्षक प्रवीर कुमार पंकज ने किया।

डा प्रेम प्रकाश, राज कुमार चौबे, विष्णु कुमार, सच्चिदानन्द शर्मा, दुःख दमन सिंह, नन्दन कुमार मीत, कुमारी मेनका, डौली कुमारी, मनोज कुमार आदि हिन्दी-प्रेमी समारोह में उपस्थित थे।

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