काव्यात्मक डायरी है रीत कृत "आस"
डॉ अवधेश कुमार अवध
आज का कलमकार बढ़ चढ़कर अपना वृहद परिचय लिखता है वही उत्तर प्रदेश के बरेली की कवयित्री डॉ ऋतु गोड़ियाल रीत ने लीक से हटकर स्वयं को गुमनाम- सा रखा है। रीत कृत "आस" 84 कविताओं का ऐसा संग्रह है जिसमें "दादी", "बाबा आप सूरज थे" और "मां" कविताएं रक्त संबंधी पूर्वजों के प्रति हार्दिक आभार पर आधारित हैं। कविता "सरलता" को भगवान कान्हा के प्रति साख्य- भक्ति- वात्सल्य रस- त्रयी के रूप में देखा जा सकता है। शेष 80 कविताएं प्रियतम संग प्यार, शृंगार, अभिसार, तिरस्कार, दुत्कार, अत्याचार, व्यभिचार, हुंकार, ललकार, कुंठा, पश्चाताप और प्रतिशोध व श्राप से संबंधित हैं।
नैराश्य और संतोष रूपी दो आयामों के बीच "आस" के कथानक को झूलते हुए महसूस किया जा सकता है। दैहिक और आत्मिक प्रेम के बीच की खाईं लगभग हर कविताओं में स्पष्टतः दृष्टिगोचर है। प्रायः पुरुष - प्रेम देह- मार्ग से आत्मा में प्रविष्ट होता है इसके विपरीत नारी - प्रेम आत्मा-मार्ग से देहोन्मुख होता है। इन दो विपरीतोन्मुख मार्ग ही पुरुष और नारी के मध्य समझ के दो ध्रुव रचते हैं। अपने-अपने ध्रुव पर अटल रहकर कोई युगल एकाकार नहीं हो सकता। अतएव आवश्यक है कि प्रेम पथिक एक-दूजे की नैसर्गिक उन्मुखता और रुझान को समझते हुए सहयोगी भाव से सहर्ष स्वीकार करें। ये मुश्किल तो होता है पर असंभव नहीं। "मैं" शैली में लिखी गई अधिकाधिक कविताओं में कवयित्री इसी विसंगति से जूझती हुई दिखती है। "आस" की नायिका जो स्वयं कवयित्री भी है, प्रियतम में नारीत्व गुण खोजती है और न मिलने पर खींजती है। जिस प्रकार कि एक नारी नहीं हो सकती पुरुष, ठीक उसी प्रकार से एक पुरुष भी नारी नहीं हो सकता। हमें एक- दूसरे की विविधता को आगे बढ़कर स्वीकार करना चाहिए। ध्यान रहे कि यही विविधताएं ही आकर्षण, प्रेम जन्य और संतति-वृद्धि कारक भी हैं।
"तुम भ्रमित रहे" कविता की कुछ पंक्तियों को रखने का मोह संवरण नहीं कर पा रहा हूं। देखें-
"तुम भ्रमित रहे जीवन भर
जो तुम ढूंढ़ रहे थे वो सब था मेरे पास
लेकिन तुम मेरे पार सब खोजते रहे।"
"स्त्रियां मन पढ़ लेती हैं" कविता में नारी की छठी इंद्री का उल्लेख किया गया है। छठी इंद्री को नारी और सिर्फ नारी का प्रधान और एकाधिकारी गुण माना गया है। सच भी है। विचारणीय तब हो जाता है जब इस गुण को आयुध बनाकर पुरुष पर प्रयोग किया जाए। इसको अमोघ मानते हुए अहंकार पाला जाए तब प्रेम भला कैसे पनपेगा!
अतुकांत कविताएं तभी प्रभावशाली होती हैं जब नैसर्गिक रूप से सुंदर हों क्योंकि ये छंद रूपी शृंगार से परे होती हैं। कवयित्री इस विधा में निष्णात है। गजब की पकड़ है शब्दों पर और गजब की पकड़ है लयात्मकता पर भी। नारी और पुरुष के संयुक्त मनोविज्ञान पर महारथ हासिल है कवयित्री को। प्रायः ऐसे विषय पर दो-चार कविताओं से अधिक सृजन मुश्किल है, कवयित्री ने साढ़े छः दर्जन से अधिक कविताओं से सुसज्जित "आस" रच दिया। वह आस जो लाख यातनाओं, यंत्रणाओं और वर्जनाओं के बाद भी बीज रूप में अमर होकर अमरत्व प्रदात्री है।
कवयित्री का यह उद्घोष कि, "मेरी कविताएं बोझ हैं हृदयहीन व्यक्ति के लिए" पूर्णतः सटीक है। भावी युगल और निवर्तमान युगल के लिए "आस" रामबाण हो सकती है। कवयित्री की सधी तूलिका से विनिर्मित आवरण अत्याकर्षक है। मेरी उम्मीद है कि सहृदय पाठक "आस" को पढ़कर कभी निराश नहीं होगा।
डॉ अवधेश कुमार अवध
साहित्यकार व अभियंता
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews #Divya Rashmi News, #दिव्य रश्मि न्यूज़ https://www.facebook.com/divyarashmimag
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com