दर्शन
भगवत पूजन तुम करो ,तुम्हारी पूजन मैं करूॅं ।
भगवत दर्शन हो तुम्हें ,
तुम्हारा दर्शन मैं करूॅं ।।
तुम जाओ नित्य मंदिर ,
मैं तेरे मन झाॅंका करूॅं ।
तेरे मन प्रभु दर्शन पाऊॅं ,
मन में ये ऑंका करूॅं ।।
जो पद जाए मंदिर में ,
पद वापसी पखारा करूॅं ।
तेरे मन बहे जो भाव ,
पावन मन स्वीकारा करूॅं ।।
जाते आते मन पावन हो ,
मैं तुझमें प्रभु पाया करूॅं ।
तुम पाओ प्रभु को मंदिर ,
मैं नित्य ये निभाया करूॅं ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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