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"अकेली परीक्षा, सार्वजनिक परिणाम"

"अकेली परीक्षा, सार्वजनिक परिणाम"

मित्रों मानव जीवन की प्रत्येक गति स्वयं में परीक्षा है, जो प्रायः निःशब्द एकांत में घटित होती है। वहाँ न कोई दर्शक होता है, न कोई तालियों का गान—केवल अंतरात्मा एवं उसका निष्कंप निर्णायक स्वर। किंतु स्मरणीय है कि इस गुप्त परीक्षा का परिणाम अंततः समाज के सम्मुख उद्घाटित होता है, मानो दीपक के ज्वलन से आलोक को छिपाया न जा सके।


क्षणिक वासना अथवा आवेगजन्य कर्म प्रायः लज्जा एवं पश्चाताप का कारण बनते हैं, जबकि विवेकपूर्ण आचरण व्यक्ति को चिरस्थायी गौरव का अधिकारी बनाता है। इसीलिए मनीषियों ने कहा है— “कर्मण्या एवाधिकारस्ते, मा फलेषु कदाचन”—अर्थात कर्म करो, परंतु कर्म करते समय उसके फल की शुचिता एवं प्रभाव का विचार अवश्य करो।


वस्तुतः कर्म ही बीज है एवं परिणाम उसका फल; बीज गुप्त कोख में बोया जाता है, पर फल वृक्ष की डाल पर सर्वसामान्य को उपलब्ध होता है। अतः यदि मनुष्य श्रेष्ठ फल चाहता है, तो उसे श्रेष्ठ बीज ही रोपना होगा। परीक्षा चाहे गहन एकांत में क्यों न हो, उसका प्रतिफल सर्वदा सार्वजनिक और अटल रहता है।


. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार) 
 पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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