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रक्षाबंधन

रक्षाबंधन

भाई बहन का प्यार ,
रक्षाबंधन का त्यौहार ,
लाता खुशियाॅं अपार ,
प्रेम बंधन का ये सार ।
लिए बहुमूल्य उपहार ,
वस्त्र संग लिए शृंगार ,
मिठाई संग हो तैयार ,
भ्रात खड़े श्वसा द्वार ।
मुख खुशियों का रंग ,
भ्रात देख बहना दंग ,
अंदर लाई निज संग ,
ये पावनता जैसे गंग ।
थाल सजा श्वसा लाई ,
भ्रात आरती दिखाई ,
राखी बाॅंधी है कलाई ,
भ्रात खिलाए मिठाई ।
पावन राखी का बयार ,
सजा राखी से बाजार ,
सावन आए बारंबार ,
बहन आशीष दे हजार ।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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