किया आजाद भारत को
मार्कण्डेय शारदेय :लहू से सींचकर हमने, किया आजाद भारत को।
गँवाएँ हम न आजादी, रखें आबाद भारत को।।
शहीदों की शहादत को कभी हिन्दी न भूलेंगे,
उन्हीं की राह पर चलकर लहू की लाज रख लेंगे,
परख मर्दानगी सबसे मिली है दाद भारत को।
लहू से सींचकर हमने, किया आजाद भारत को।।
जहाँ बच्चे जवाँ होते, जहाँ बूढ़े जवाँ होते,
जवानी में जवानों को जरा सोचो कहाँ होते,
समझ लो हर करम में है, रहा उस्ताद भारत को।
लहू से सींचकर हमने, किया आजाद भारत को।।
अगर कोई कभी हमसे कहीं पर ताल ठोंकेगा,
चखा देंगे मजा उसको दिखाकर पीठ भागेगा,
निभाता दुश्मनी–दोस्ती करो यों याद भारत को।
लहू से सींचकर हमने, किया आजाद भारत को।।
(मेरी यह रचना २०२१ में प्रकाशित मेरे काव्यसंग्रह 'वाग्मिनी' में संकलित है।)
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