गीता' को जीने वाले महान चिंतक कवि थे हृदय नारायण

- कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय और कवयित्री अभिलाषा सिंह को दिया गया 'हृदय नारायण-कल्याणी स्मृति सम्मान', आयोजित हुआ कवि-सम्मेलन ।
पटना, २४ अगस्त। प्रज्ञ-चिंतक और मनीषी साहित्यकार हृदय नारायण, हिन्दी की सेवा करने वाले पिछली सदी के महान चिंतक कवियों में अग्र-पांक्तेय थे। उन्होंने गीता को न केवल समझा था, अपितु उसे वाणी और आचरण में उतारा था। वे गीता को जीने वाले चिंतक कवि थे। वे मानते थे कि भारतीय-दर्शन में आधुनिक-समाज की सभी समस्याओं का निदान और सभी प्रश्नों के उत्तर अंतर्निहित हैं।
यह बातें रविवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती-समारोह एवं कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि हृदय नारायण जी हिन्दी-साहित्य के साधु-पुरुष थे। उनकी आध्यात्मिक और साहित्यिक साधना साथ-साथ चली। भारतीय दर्शन पर उन्होंने तीन दर्जन से अधिक ग्रंथों की रचना की, जो आनेवाली पीढ़ियों का मार्ग-दर्शन करते रहेंगे।
इस अवसर पर, गीति-धारा के चर्चित कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय एवं कवयित्री अभिलाषा सिंह को, हिन्दी भाषा और साहित्य के उन्नयन में अत्यंत मूल्यवान सेवाओं के लिए, 'प्रज्ञ चिंतक हृदय नारायण-कल्याणी स्मृति सम्मान' से विभूषित किया गया। समारोह के उद्घाटन-कर्ता और पूर्व केंद्रीय मंत्री डा सी पी ठाकुर तथा मुख्य-अतिथि और राज्य उपभोक्ता संरक्षण आयोग, बिहार के अध्यक्ष न्यायमूर्ति संजय कुमार ने दोनों अभिनन्दित मनीषियों को प्रशस्ति-पत्र, स्मृति-चिन्ह, वंदन-वस्त्र एवं पुष्पहार समेत दो हज़ार एक सौ रुपए की सम्मान-राशि प्रदान कर सम्मानित किया।
अपने उद्घाटन-संबोधन में डा सी पी ठाकुर ने कहा कि कवि हृदय नारायण जी का व्यक्तित्व प्रेरणादायक है। ऐसे ही महान व्यक्तियों से संसार शक्ति पाता है।
मुख्य-अतिथि न्यायमूर्ति संजय कुमार ने कहा कि हृदयनारायण जी पर महात्मा गांधी का और गीता का गहरा प्रभाव था। वे जीवन भर देश, साहित्य और समाज की सेवा करते रहे। उनका जीवन अनुकरणीय है।
अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने कहा कि हृदय नारायण एक ऐसे महापुरुष थे जिनके सद्गुणों को ग्रहण करना चाहिए। उनसे लगभग ४० वर्षों का साहचर्य रहा। वे एक बड़े चिंतक, कवि और स्वतंत्रता-सेनानी थे। उनका सामाजिक सरोकार भी बहुत व्यापक था। समाज-सेवा के भी बड़े-बड़े कार्य और आयोजन करते थे।
स्मृति शेष कवि के पुत्र और सुप्रसिद्ध शिशुरोग विशेषज्ञ डा निगम प्रकाश नारायण ने भावुक स्वर में अपने पिता को स्मरण किया और कहा कि हृदय नारायण जी ने एक छोटे से गाँव से अपनी संघर्षपूर्ण जीवन की यात्रा आरंभ की। कृष्ण उनके आदर्श थे। मेरी माँ कल्याणी नारायण ने एक समर्पित गृहिणी की तरह उनका पग-पग पर साथ दिया। यह गौरव का विषय है कि साहित्य सम्मेलन के तत्त्वावधान में इन दोनों विभूतियों के नाम से, प्रति वर्ष एक विदुषी और एक विद्वान सम्मानित किए जाते हैं।
विशिष्ट अतिथि डा शाह अद्वैत कृष्ण, सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, हृदय नारायण जी के दूसरे पुत्र डा निर्मल प्रकाश नारायण, डा निकुंज प्रकाश नारायण, पुत्रवधू डा संगीता नारायण, किरण नारायण, डा विनीता नारायण तथा वीणा प्रसाद ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र की वाणी-वंदना से हुआ। वरिष्ठ कवि डा रत्नेश्वर सिंह, आचार्य विजय गुंजन, श्याम बिहारी प्रभाकर, डा मीना कुमारी परिहार, पूनम सिन्हा श्रेयसी, शुभचंद्र सिन्हा, ईं अशोक कुमार, डा विद्या चौधरी, अनिल अम्बर, सुनीता रंजन, सूर्य प्रकाश उपाध्याय, विनोद कुमार झा, इंदुभूषण सहाय, अर्जुन प्रसाद सिंह, डा कुंदन लोहानी, अरुण वर्मा आदि कवियों और कवयित्रियों ने काव्य-पाठ कर समारोह को रस और आनंद प्रदान किया। मंच का संचालन डा मनोज गोवर्द्धनपुरी ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।
वरिष्ठ व्यंग्यकार बाँके बिहारी साव, सम्मेलन के भवन अभिरक्षक प्रवीर पंकज, विश्व मोहन चौधरी संत, छाया सिन्हा, उमाकांत ओझा, रवि शर्मा, प्रो राम ईश्वर पण्डित, दीपक कुमार गुप्त, अश्विनी कविराज, पप्पू शर्मा, भास्कर त्रिपाठी आदि बड़ी संख्या में प्रबुद्ध जन उपस्थित थे।
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