"मनःशान्ति का परम महत्व"
मानव जीवन की समस्त यात्राओं का अंतिम गन्तव्य यदि किसी एक शब्द में संक्षेपित किया जा सके, तो वह है—शान्ति। ऐश्वर्य, वैभव, यश अथवा सत्ता—ये सब वस्तुतः बाह्याभूषण मात्र हैं। यदि इनके साथ अन्तःकरण में अशान्ति का विष व्याप्त है, तो सम्पूर्ण उपलब्धियाँ निरर्थक प्रतीत होती हैं। जो प्राप्ति मनोव्याकुलता के मूल्य पर हो, वह वास्तव में वञ्चना है, उपलब्धि नहीं।
शास्त्रों में कहा गया है—“शान्तिरस्तु स्वात्मनि”। आत्मा की गहराइयों में प्रतिष्ठित शान्ति ही वह दिव्य निधि है जो जीवन को संतुलन, माधुर्य और व्यापकता प्रदान करती है। बाह्य जगत् की समस्त चकाचौंध क्षणभंगुर है, परन्तु मानसिक शान्ति अमूल्य निधि के समान स्थायी और अखण्ड है। जिस क्षण मनुष्य अपने अन्तर्मन को कलुष, ईर्ष्या, लोभ अथवा भय से आच्छादित होने देता है, उसी क्षण उसकी साधनाएँ विफल हो जाती हैं।
अतः जीवन की प्रत्येक उपलब्धि को उसी तराजू पर तौलना चाहिए कि वह हमारी आत्मिक शान्ति को पुष्ट करती है अथवा उसे खण्डित। यदि कोई सफलता, कितनी ही महान क्यों न हो, अन्तःकरण में व्यग्रता और क्लेश को जन्म दे, तो उसका त्याग ही सच्ची साधना है। मन की शान्ति को सर्वोच्च मानकर चलना ही आत्मोन्नति का प्रथम सोपान है, और यही साधारण जीवन को दिव्यता के पथ पर अग्रसर करने का सर्वोत्तम उपाय।
. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार)
पंकज शर्मा
(कमल सनातनी)
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