संतोष
सब लोग के इहे सोच धइले बा,दुनिया में काहे अइसन दिन आ गइल।
बाकिर केहू खियाल करत नइखे कि,
सबका दिल से संतोष ओरा गइल।।
आपन केहू के निमन लागत नइखे,
दूसरा के तरफ हरदम नजर गढ़वले बा।
एही से सब लोग हरदम बेचैन बाटे,
अपना जीवन से सुख शांति भगवले बा।।
गौरैया जब चलली खोढ़लिच के चाल,
तब उनकर आपन चाल भी भुला गइल।
दूसरा के देखा देखी करे में उनकर,
देखते देखते ही बुरा दिन आ गइल।।
भगवान् सबके अलग अलग बनवले बाड़े,
ओकरे अनुरूप रंग रूप सब देहले बाड़े।
फिर आदमी संतोष काहे करत नइखे,
इ भाव जीवन में कहाँ आवत बा आड़े।।
जैसे सब अंगुली एक बराबर ना होला,
फिर भी सब कर आपन महत्व होला,
इ बात सबका गांठ बांध राखे के पड़ी।
देखा देखी करे में नाहक जिंदगी तबाह होई,
दिल में संतोष ना भइले,अइसहीं झेले के पड़ी।।
जय प्रकाश कुवंर
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